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हाईकोर्ट ने कहा, बौद्ध धर्म में जाति नहीं होती

-एससी का प्रमाण-पत्र देने से किया इनकार

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चेन्नई. मद्रास हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि बौद्ध धर्म जातिरहित है इसलिए इस धर्म को अपनाने वालों को अनुसूचित जाति का लाभ नहीं दिया जा सकता। कोर्ट ने यह फैसला उस याचिका की सुनवाई करते हुए दिया है जिसमें याची ने नौकरी के लिए अनुसूचित जाति का प्रमाण-पत्र दिए जाने की मांग की थी। जस्टिस आर सुब्बैया और जस्टिस आर पोंगिअप्पन की बेंच ने कहा, संविधान के तहत निर्धारित अनुसूचित जाति सूची में बौद्ध धर्म की आदि द्रविड़ के रूप में कोई प्रविष्टि नहीं है। इस तरह का नोटिफिकेशन न होने के कारण इस समुदाय के लोगों को अनुसूचित जाति का प्रमाण-पत्र नहीं दिया जा सकता।
दरअसल याची जीजे तमिलरसु की ओर से ईरोड जिला कलेक्टर से अनुसूचित जाति का प्रमाण-पत्र मांगा गया था। इस आवेदन को 24 अगस्त 2017 को निरस्त कर दिया गया था। उसके बाद याची ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। तमिलरसु का जन्म 5 दिसंबर 1970 को हुआ था। उनके माता-पिता क्रिश्चियन थे और उन्होंने उनका नाम विक्टर जोसेफ रखा था। जब वह 11वीं कक्षा में पढ़ते थे तब उन्होंने 12 जून 1989 को खुद को क्रिश्चियन आदि द्रविड़ बताते हुए अनुसूचित जाति का प्रमाण-पत्र हासिल कर लिया था। उन्होंने धर्म परिवर्तन करके बौध धर्म अपना लिया और अपना नाम बदलकर जीजे तमिलरसु कर लिया।
इसके बाद 2 सितंबर 2015 को उन्होंने खुद को बौद्ध धर्म का आदि द्रविड़ बताते हुए अनुसूचित जाति के प्रमाणपत्र के लिए आवेदन किया। हालांकि प्रशासन ने उनका आवेदन यह कहते हुए निरस्त कर दिया कि उन्होंने सिर्फ अनुसूचित जाति का प्रमाण-पत्र पाने के लिए धर्म परिवर्तन किया है। आवेदन निरस्त होने के बाद उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। याची ने मांग की थी कि सरकार को निर्देशित किया जाए कि धर्म परिवर्तन करने वाले को अगर समुदाय के लोग अपना लेते हैं तो उन्हें उस जाति का प्रमाण-पत्र दिया जाए। इस पर सरकार की तरफ से कहा गया कि याची का जन्म क्रिश्चियन धर्म में हुआ था। उन्होंने अप्रैल 2015 तक क्रिश्चियन धर्म ही माना और यह समुदाय पिछड़ी जाति में आता है। उन्होंने यह भी कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति संशोधन एक्ट 1976 में भी बौद्ध धर्म को कहीं भी आदि द्रविड़ नहीं बताया गया है इसलिए उन्हें अनुसूचित जाति का प्रमाण-पत्र नहीं दिया जा सकता।