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कोर्ट व्यक्तिगत नैतिकता के आधार पर ऑनलाइन गेम पर प्रतिबंध लगाने का आदेश नहीं दे सकता: कोर्ट

मद्रास हाईकोर्ट ने गुरुवार को कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि बच्चों को आनॅलाइन गेम और मोबाइल का लत लग गया है

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कोर्ट व्यक्तिगत नैतिकता के आधार पर ऑनलाइन गेम पर प्रतिबंध लगाने का आदेश नहीं दे सकता: कोर्ट

कोर्ट व्यक्तिगत नैतिकता के आधार पर ऑनलाइन गेम पर प्रतिबंध लगाने का आदेश नहीं दे सकता: कोर्ट


चेन्नई. मद्रास हाईकोर्ट ने गुरुवार को कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि बच्चों को आनॅलाइन गेम और मोबाइल का लत लग गया है, लेकिन अदालतें याचिकाकर्ता या न्यायाधीशों की व्यक्तिगत नैतिकता के आधार पर ऐसे मुद्दों के नियमन का आदेश नहीं दे सकती हैं।

मुख्य न्यायाधीश संजीव बैनर्जी और न्यायाधीश सेंथिलकुमार रामामूर्ति की पहली बेंच ने कहा कोर्ट ऐसे मामलों में किसी प्रकार के प्रतिबंध का आदेश नहीं दे सकती है। हालांकि कार्यपालिका इस संबंध में किए गए किसी भी अभ्यावेदन पर कार्रवाई करने में विफल रहती है तो अदालत कदम उठा सकती है। इसमें कोई शक नही कि आजकल बच्चे और युवा व्यस्क अपने फोन के आदी हैं और उनकी दुनिया उनके मोबाइल फोन के इर्द गिर्द घूमती नजर आती है।

कोर्ट ने कहा परिवार का पूरा सदस्य टेबल पर बैठा नजर तो आता हैं, लेकिन प्रत्येक व्यक्ति अपने अपने मोबाइल में व्यस्त दिखता हैं। खाना खाते समय भी लोगों की यही आदत बन चुकी है। अदालतों को व्यक्तिगत शिकायतकर्ता या संबंधित न्यायाधीशों की नैतिकता की व्यक्तिगत भावना पर ऐसे क्षेत्रों में प्रवेश करने में धीमा होना चाहिए।
कोर्ट ने कहा अदालत द्वारा एक आदेश जारी करने के बजाय, नीति के ऐसे मामलों को जनता का प्रतिनिधित्व करने वालों के विवेक पर छोड़ दिया जाना चाहिए।

चुनी हुई सरकारों को इस संबंध में निर्णय लेना चाहिए। ई मार्टिन जयकुमार नामक व्यक्ति द्वारा दायर जनहित याचिका पर कोर्ट ने यह जवाब दिया। अपनी याचिका में याचिकाकर्ता ने केंद्र सरकार को बच्चों और युवा व्यस्कों के लिए हानिकारक ऑनलाइन गेम को विनियमित करने का निर्देश देने की मांग की थी।