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हर परिस्थिति का आनंद उठाएं

राष्ट्रसंत ललितप्रभ महाराज ने कहा छोटी-छोटी बातों पर अशांत होने की बजाय हर परिस्थिति का आनंद उठाएं।

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religion and sprituality

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कृष्णगिरि. राष्ट्रसंत ललितप्रभ महाराज ने कहा कि भगवान जो करता है अच्छा करता है और वह वही करता है जो जीवन में होना होता है इसलिए छोटी-छोटी बातों पर अशांत होने की बजाय हर परिस्थिति का आनंद उठाएं। दूध फटने पर वे ही लोग दुखी होते हैं जिन्हें रसगुल्ला बनाना नहीं आता। भगवान ने हमें जो दिया है वह हमारे भाग्य से ज्यादा दिया है इसलिए जो नहीं है उसका रोना रोने की बजाय जो है उसका आनंद उठाएं। सदा याद रखें, जो मेरा है वह जा नहीं सकता और जो चला गया समझो वह मेरा नहीं था। संतप्रवर शुक्रवार को कृष्णगिरि स्थित पाश्र्व पद्मावती शक्ति पीठ जैन तीर्थ में आयोजित कार्यक्रम में श्रद्धालुओं को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि मन में पलने वाली बेवजह की उधेड़बुनें ही मन की अशांति का कारण बनती है। व्यक्ति उस हर व्यक्तिए वस्तु, स्थान और परिस्थिति से बचे जो उसके टेंशन का कारण बनती हो। दूसरों का मूल्य है, पर मन की शांति से बढ़कर किसी का मूल्य नहीं है। कोई काम हमारे मन के अनुकूल नहीं हुआए किसी ने हमारा कहना न माना अथवा जैसा सोचा था उसके विपरित हो गया तो उसको लेकर व्यर्थ की सिरपच्ची न पालें। उन्होंने कहा कि बेटा बहू की, बेटी जंवाई की और शरीर शमशान की अमानत है। सोचो, अपना कौन है। हम अपनी संभालें और शेष जंजालों को भगवान के भरोसे छोड़ डालें।
मन अशांत है तो छप्पन भोग भी फीके
उन्होंने कहा कि मन की शांति जीवन की सबसे बड़ी दौलत है। मन अशांत है तो छप्पन भोग भी फीके नजर आते हैं और मन शांत है तो दाल-रोटी भी बड़ी स्वादिष्ट लगती है। अगर हमारे सामने एक पल पर दुनिया का वैभव हो और दूसरे पल पर मन की शांति हो तो वैभव लेने की बेवकूफी कभी मत करना क्योंकि मन की शांति से बढ़कर दुनिया का कोई वैभव नहीं होता। सिकन्दर के पास सब कुछ था, पर मन की शांति नहीं थी और महावीर के पास कुछ नहीं था, पर मन की शांति थी परिणाम यह आया कि सिकन्दर जीते जी पूजा गया, पर महावीर आज भी पूजे जा रहे हैं।
शांति को बरकरार रखना जीवन की असली साधना
उन्होंने कहा कि भारत के लोग बहुत ईमानदार हैं पर तभी तक जब तक बेईमानी करने का मौका नहीं मिलता ठीक वैसे ही हम बहुत शांत नजर आते हैं, पर तभी तक जब तक कोई अशांति का निमित्त नहीं आता। दो कड़वे शब्द सुनते ही शांतिचंदजी तुरंत अशांतिचंदजी बन जाते हैं। मंदिर में, धर्मस्थानक में और संतों के पास रहते हुए शांति रखना बहुत सरल है पर वातावरण बिगड़ जाने अथवा विपरित निमित्त मिलने के बावजूद शांति को बरकरार रखना जीवन की असली साधना है।
इससे पूर्व राष्ट्रसंत ललितप्रभ, चन्द्रप्रभ और मुनि शांतिप्रिय सागर के यहां पहुंचने पर अनेक भक्तों द्वारा गुरुजनों का स्वागत किया गया। कार्यक्रम में डॉ. वसंतविजय महाराज, संत सुमतिप्रकाश, विशालमुनि सहित कई संत व साध्वियां मौजूद थी।