-2013 में दोस्त के साथ मिलकर की नम देशम फाउंडेशन की शुरुआत
चेन्नई.
महानगर की उपनगरीय ट्रेनों में दृष्टिहीन व्यक्तियों को अपने हाथों में अदरक और मूंगफली की बर्फी लेकर बेचते हुए तो आपने खूब देखा होगा लेकिन क्या कभी आपने यह सोचा है कि महानगर में कोई ऐसा आदमी भी है जो इनकी मदद करके इन्हें अपनी बेबसी का रोना रोने की बजाय अपने पैरों पर खड़ा होकर शान से जीना सिखाता है। दरअसल वेस्ट माम्बलम निवासी सामाजिक कार्यकर्ता एस. चंद्रशएखर की बदौलत की दृष्टिबाधित दिव्यांग मूंगफली की मिठाई और दूसरे सामान बेचकर अपना पेट पालने के साथ-साथ अच्छी कमाई भी कर रहे हैं। मात्र 33 साल की उम्र में जिस तरह से उन्होंने सैकड़ों दृष्टिहीनों को सकारात्मक सोच की दृष्टि प्रदान की उसका कोई तोड़ नहीं है।
दयालुता मनुष्य का विशेष गुण
अपने इस नेक कार्यों के चलते आज वे दिव्यांगों के लिए राहत की मिशाल बन चुके हैं। अपने नम देशम अर्थात हमारा देश के नाम से संचालित फाउंडेशन के माध्यम से उन्होंने कई दिव्यांगों की जिंदगी बदल कर रख दी। दिव्यांग जनों की सहायता से जुड़ी अपनी यात्रा के बारे में बताते हुए वे कहते हैं कि 2013 में अपने दोस्त सुरेश गोपाल के साथ मिलकर उन्होंने नम देशम फाउंडेशन की शुरुआत की। इसके बाद वे वंचित पृष्ठभूमि के दृष्टिहीनों की पहचान करके उन्हें मदद पहुंचाने में जुट गए। उन्होंने कहा कि 2015 में उन्होंने 300 दृष्टिहीनों की पहचान कर उनके लिए वॉलीबॉल टूर्नामेंट का आयोजन किया। कोविड-19 के लॉकडाउन के दौरान फाउंडेशन ने अधिक से अधिक दिव्यांगों तक पहुंचकर उनका सहारा बनने का प्रयास किया और इस वैश्विक विपत्ति के बाद उन्होंने दृष्टिहीनों के लिए स्थायी आजीविका का प्रबंध करने पर अपना ध्यान केंद्रित किया।
किसी के लिए कुछ करने से अच्छा है उसे कुछ करना सिखाना
किसी के लिए कुछ करने से अधिक अच्छा उसे कुछ करना सिखाना है। उन्होंने बताया कि दिव्यांगों को अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए वे बर्फी, रूमाल, हेडसेट और पेन आदि खरीदने के लिए दो-तीन हजार रुपए प्रदान करते हैं। इससे सामान खरीदने के बाद उसे बेचकर वे कुछ ही दिनों में अपनी आमदनी को कई गुना बढ़ा लेते हैं। कुछ लोगों को वे कुर्सी बनाने का काम भी देते हैं। इस तरह से उन्होंने अभी तक तकरीबन 600 दृष्टिहीनों के अपने पैरों पर खड़ा करने का काम किया है।
चंद्रशेख के प्रति आभार प्रकट करते हुए एस. रूबन नामक एक लाभार्थी ने कहा कि उनके 2000 रुपए की मदद की बदौलत आज मैं रेलवे स्टेशनों, बस स्टैंडो और भीड़-भाड़ वाले इलाकों में बर्फी आदि बेचकर रोजाना 400-500 रुपए तक कमा लेता हूं। रूबन ने बताया कि वे एमए, बीएड हैं और सरकारी नौकरी पाने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने बैंक, टीईटी तथा टीएनपीएससी समेत अभी तक आठ परीक्षाएं लिखी हैं। इन परीक्षाओं के लिखने के लिए सहयोगी की व्यवस्था भी चंद्रशेखर ने ही की। साथ ही साथ रूबन की बेटी की स्कूल फीस भी उन्होंने ही भरी।
दिव्यांगों की मदद के अलावा चंद्रशेखर की समाज सेवा किशोरगृहों तक भी फैली हुई है। वे बच्चों को पराइ नामक पारंपरिक संगीत सिखाते हैं। उन्होंने बताया कि वे इंफोसिस, मुथूट फाइनेंस और कुछ अन्य निगमों के साथ मिलकर कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) फंड का प्रभावी ढंग से उपयोग करते हैं।