चेन्नई : राजेन्द्र भवन में आचार्य जयन्तसेनसूरि के शिष्य मुनि संयमरत्न विजय, भुवनरत्न विजय ने कहा कि लोभी प्राणी जिस प्रकार धन में आसक्त रहता है, वैसे ही पंडित पुरुष गुण-ग्रहण करने में ही सदैव तत्पर रहते है। गुण का संग करके जिस प्रकार बिखरे हुए मोती एक सुंदर माला बन जाती है, वैसे ही गुण के कारण मानव मालामाल बन जाता है। मुनि ने कहा कि जिस तरह धनुष में लगा हुआ धागा (गुण) दूसरों को पीड़ा देने में सहायक होता है, वैसे ही दुर्जन प्राणी में रहा हुआ गुण भी उसके लिए लाभकारी सिद्ध नहीं होता। पवित्र वेषभूषा बनाने के लिए निर्मल वस्त्र चाहिए, बुद्धि के वैभव से मनोहर विद्या की प्राप्ति होती है तथा दिव्य धन की प्राप्ति अत्यंत परिश्रम से होती है, किंतु वस्त्र, बुद्धि और उद्यम के परिचय से कभी भी गुणों का समूह प्राप्त नहीं होता।जिस धागे (गुण) के संयोग से पत्थर के टुकड़े भी मोती के आभूषण बनकर महिला के हृदयस्थल पर सुशोभित होते है, वैसे ही गुणों का संग करने वालों का जीवन शोभायमान होता है। गुणों का समूह जिस प्रकार की गौरवता को प्राप्त होता है।