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लुंगी पर समय के थपेड़ों की गहरी मार

-बदले जमाने में नहीं मिल रहे लिवाल- उत्पादन घटा, निर्यात में भी कमी- व्यापारी दूसरे बिजनेस की ओर हो रहे डाइवर्ट        

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Lungi production is continuously decreasing, Export now almost closed

Lungi production is continuously decreasing, Export now almost closed

चेन्नई. बदले जमाने में लोगों का लुंगी से मोह भंग हो गया है। लुंगी के लिवाल न मिलने से व्यापारी दूसरे बिजनेस की तरफ मुड़ रहे हैं। पिछले करीब एक दशक से जहां निर्यात में कमी आई हैं वहीं उत्पादन भी लगातार घट रहा है।
अब निर्यात लगभग बन्द
कभी तमिलनाडु के हैण्डलूम की लुंगी मलेशिया, इंडोनेशिया, सिंगापुर, दुबई, श्रीलंका जाती थी लेकिन अब लगभग निर्यात बन्द हो चुका है। पहले श्रीलंका से भी खूब खरीदार लुंगी के लिए आते थे लेकिन पिछले डेढ दशक से यह कम हो गया है। अपने देश की बात करें तो यहां बिहार, पश्चिम बंगाल, आसाम व महाराष्ट्र में लुंगी की सर्वाधिक खपत हो रही है। अभी सर्वाधिक लुंगी कोलकाता भेजी जा रही है।
बुनकरों के सामने रोजी-रोटी का संकट
तमिलनाडु के हजारों घरों में पहले हैण्डलूम यानी हाथ से लुंगी बनाई जाती थी। बाद में इसकी जगह पावरलूम ने ले ली। अब लुंगी की डिमांड घट जाने से उत्पादन कम रह गया है। डिमांड घटने से कई बुनकर बेरोजगार हो गए हैं। उनके सामने रोजी-रोटी का संकट पैदा हो गया है।
नई पीढ़ी को नहीं पसंद हैं लुंगी
व्यापारी बताते हैं कि कटारी डिजाइन, चेक्स डिजाइन समेत लुंगी की दर्जनों वैरायटी है लेकिन अब लोग लुंगी को कम पसंद करते है। इसकी जगह बरमुडा, पायजामा, हाफ पेन्ट ने ले ली है। यही वजह है कि लुंगी का बाजार धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा है। नई पीढ़ी लुंगी को बिल्कुल पसंद नहीं करती। पिछले एक दशक में कोई नई उत्पादन इकाई भी नहीं लगी है।
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अन्य बिजनेस की तरफ हो रहे डाइवर्ट
मैं पिछले चालीस वर्ष से लुंगी के बिजनेस में हूं। एक जमाना था जब लुंगी खरीदने के लिए व्यापारियों की लाइन लगती थी। ईद, बकरीद व गर्मी के सीजन में लुंगी की खूब डिमांड रहती थी। अब नई पीढ़ी लुंगी से परहेज करती है। ऐसे में लुंगी की बिक्री लगातार तेजी से घटती जा रही है। व्यापारी अन्य बिजनेस की तरफ डाइवर्ट होने लगे हैं। कई व्यापारी शोर्ट कोटन फैब्रिक चूड़ीदार के बिजनेस में कूद चुके हैं।
बहादुरसिंह धुरियासनी, लुंगी को होलसेल व्यापारी, चेन्नई।