
जिससे समाधान मिले वही है समाधि:महाश्रमण
चेन्नई.अंर्तद्वीप क्षेत्र के पुरुष। इन क्षेत्रों में महान पुरुष पैदा नहीं होते। तीर्थंकर, चक्रवर्ती, साधु महापुरुष पन्द्रह कर्म भूमियों में ही पैदा होते हैं। ऋद्धि और अऋद्धि ये अपनी सम्पदा हैं, सामथ्र्य का विकास है। सम्पदा दो प्रकार की होती है- आन्तरिक और बाह्य। बाह्य सम्पदा है - पद, प्रतिष्ठा और पैसा। जो गृहस्थ के लिए आवश्यक है।
महाश्रमण ने कहा कि साधु की बाह्य सम्पदा है - शरीर, जो आत्म साधना में सहायक होता है। शरीर, संकल्प और प्रयोग से आत्मा की सम्पदा को बढ़ाने का प्रयास करे। विनय, श्रुत, तप और आचार ये चार समाधि है।जिससे समाधान मिले, वह समाधि होती है। विनय की समाधि आध्यात्मिक सम्पदा है। हमारा विनय यथार्थ के प्रति हो। श्रुत से समाधि मिलती है। ज्ञानाराधना, स्वाध्याय, आगम पठन, मनन और चितारने से श्रुत की समाधि प्राप्त हो सकती है। अर्थ का बोध हो जाने से शांति मिल सकती है, ज्ञान निर्मल रहता है। हर दिन का सूर्य विकास की दिशा में आगे बढऩे का साक्षी है। उन्होंने आगे कहा कि तपस्या समाधि भी सम्पदा है। छोटे छोटे तप नवकारशी, पोरसी, एकाशन, आयम्बिल, विगय वर्जन से आत्मा का घड़ा भरता रहे। उन्होंने नवदीक्षितों को संदेश दिया कि वे इन चार समाधियों को धारण करें, आत्मसात करें। गृहस्थी भी ध्यान दे, बाह्य संपदाएं इस जीवन तक रहे न रहे, आध्यात्मिक संपदाएं आगे काम आ सकती है। इसे बढ़ाने का प्रयास करे। कभी आपदा भी आ जाए तो समता का भाव रखें। आपदा और सम्पदा दोनों बहनें हैं जैसे सूर्य उदय और अस्त काल में लालिमा युक्त होता है। न खुश, न उदास, दोनों समय रक्तिमा रहती है। महान व्यक्ति दोनों परिस्थितियों में सम रहता है। साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा ने कालू यशोविलास का विवेचन करते हुए जयपुर और चूरू चातुर्मास की घटनाओं का प्रतिपादन किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार ने किया।
Published on:
27 Oct 2018 01:17 pm
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