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अधिकारियों ने नंदनम अंडरग्राउंड मेट्रो के स्टेशन बाक्स का किया निरीक्षण

मेट्रो रेल की तिमाही समीक्षा बैठक गुरुवार को कोयम्बेडु स्थित प्रशासनिक भवन में हुई। बैठक की अध्यक्षता आवासन एवं शहरी मामलों के...

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Officials inspect the station box of Nandanam Underground Metro

Officials inspect the station box of Nandanam Underground Metro

चेन्नई।मेट्रो रेल की तिमाही समीक्षा बैठक गुरुवार को कोयम्बेडु स्थित प्रशासनिक भवन में हुई। बैठक की अध्यक्षता आवासन एवं शहरी मामलों के सचिव दुर्गा शंकर मिश्रा ने की। बैठक में चेन्नई मेट्रो रेल लिमिटेड के प्रबंध निदेशक पवन कुमार बंसल के साथ देश के सभी मेट्रो रेल कार्यालयों के प्रबंध निदेशक उपस्थित थे।

अधिकारियों ने कोयम्बेडु स्थित चेन्नई मेट्रो रेल डिपो का निरीक्षण किया तथा आलंदूर मेट्रो स्टेशन से गलियारा 1 और 2 के इन्टर कोरिडोर की व्यवस्था का जायजा लिया। बाद में अधिकारी नंदनम मेट्रो स्टेशन पहुंचे। उन्होंने यहां नंदनम अंडरग्राउंड मेट्रो स्टेशन के स्टेशन बाक्स का निरीक्षण किया जिसकी खासियत यह है कि अन्य मेट्रो स्टेशनों की तुलना में छोटा है।

चरित्र और आचरण की नव परंपराओं का निर्माण करें

रायपेट्टा जैन स्थानक में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने कहा परमात्मा के मार्ग की विशेषता है कि जो भी परमात्मा के पास आता है वह बिना भाषा के भी बात को समझा जा सकता है। यह परमात्मा की वाणी का ही सामथ्र्य है कि बिना भाषा को समझे ही भावों को समझ जाता है।

दुनिया में दो प्रकार के धर्म हैं एक वे जो अनुशासन और सिस्टम है, जैसे ईसाई, मुस्लिम और सिख धर्म। दूसरे वे जिनमें बहुत अच्छी बातें हैं लेकिन कोई शिष्टाचार और कोई अनुशासन नहीं है, जैसे- जैन, हिन्दू और बौद्ध।

पहले प्रकार के धर्मों में कड़ा अनुशासन है और परंपराओं का कड़ाई से पालन किया जाता है। वहां कोई यह नहीं पूछता कि आपको अच्छा लगता है या नहीं। दूसरे प्रकार के धर्मों में कोई भी अनिवार्यता नहीं है कि उन्हें किन्हीं परंपराओं का पालन करना है या नहीं हर जगह छूट है। जब मन में आया मंदिर गए, नहीं भावना हो तो नहीं गए। उसी प्रकार यदि हमारे धर्म में भी कुछ अच्छे नियमों और अच्छी बातों को अनिवार्य करना होगा। हमारे समाज में कुछ अच्छी परंपराओं का निर्माण किया जाए तो आने वाली पीढ़ी को कभी सोचना नहीं पड़ेगा। घर, संस्थान या मंदिर बनाना आसान है लेकिन चरित्र और आचरण की परंपरा का निर्माण करना नहीं। बिना अनुशासन के चरित्र नहीं बनाया जा सकता।

उपाध्याय प्रवर ने कहा कि यदि आप कैसे भी रहोगे लेकिन भगवान महावीर से जुड़े रहोगे तो वे आपको जरूर संभालेंगे, परमात्मा शास्वत हैं। भगवान महावीर रूपी वटवृक्ष है तो साधु-साध्वियां उस वृक्ष के पत्ते हैं। यदि आप पेड़ से जुड़े रहोगे तो पत्ते हजार मिल जाएंगे लेकिन पत्ते से जुड़ोगे तो पतझड़ में मिट जाओगे। परमात्मा के शासन से इस तरह जुड़ें कि न जुडऩा चाहने वाला भी परमात्मा से जुड़े बिना न रह पाए।
आओ एक मंगल परंपरा का निर्माण करें ताकि पीढ़ी दर पीढ़ी आंख मंूदकर भी उस राह पर चल सके। सही राह पर जो चलते हैं वो चाहे ना चाहे तो भी मंजिल पर पहुंचही जाते हैं। अभवी जीव जिनेश्वर के मार्ग पर बिना श्रद्धा के चले तो भी मुक्ति पा जाते हैं।