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वनस्पति भी हैं सजीव, इनकी विराधना से बचें

पुरुषावाक्कम में प्रवीण ऋषि ने कहा

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Praveen rishi pravachan

वनस्पति भी हैं सजीव, इनकी विराधना से बचें

चेन्नई. पुरुषावाक्कम स्थित श्री एमकेएम जैन मेमोरियल में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने आचारांग सूत्र के माध्यम से वनस्पतिकाय के बारे में बहुत विस्तार से बताया गया है। उन्होंने कहा, आज से लगभग १०० वर्ष जब भारतीय वैज्ञानिक जगदीशचंद्र बसु ने वनस्पति में जीवन होने के प्रमाण दिए तो विज्ञान ने भी उसे स्वीकार किया, लेकिन इससे पहले विज्ञान इसे नहीं मानता था। जबकि हमारे तीर्थंकर परमात्मा ने तो आदिकाल में ही वनस्पतिकाय के सजीव होने के बारे में बहुत गहराई से सूक्ष्मतम विज्ञान बता दिया था जो आगम और जैन धर्म के ग्रंथों में लिखा हुआ है।

परमात्मा ने बताया है कि जिस प्रकार मनुष्य जन्मता है, वृृद्धि करता है और आयुष्य पूर्ण करता है वैसे ही पेड़-पौधे भी जन्मते हैं, बढ़ते हैं और अपनी आयु पूरी हो जाने पर मरते हैं। जिस प्रकार पंचेन्द्रिय जीवों के शरीर में अनेकों अनगिनत जीव होते हैं उसी प्रकार पेड़-पौधों में भी उस एक जीव के साथ अनेकों जीव होते हैं। पंचेन्द्रिय जीव को जीवित रहने के लिए आहार की जरूरत होती है और बढऩे के लिए अनुकूल दशा की आवश्यकता होती है वैसे ही वनस्पितिकाय को भी जीवित रहने के लिए खाद, पानी, मिट्टी के खनिज पदार्थों की जरूरत होती है और उसे भी यदि अनुकूल दशा नहीं मिले तो वह भी मृत हो जाता है। पेड़-पौधों को यदि कहीं बंद कर दिया जाए तो जहां से उसे जगह और अनुकूलता मिलती है तो उस ओर ही उसकी शाखाओं की वृद्धि होना शुरू हो जाती है। उसे काटने या कष्ट पहुंचाने पर उसमें भी भय की सौम्या होती है।
उपाध्याय प्रवर ने कहा कि हर पेड़ की अपनी औरा या ऊर्जा अलग होती है। भगवती सूत्र में इस बारे में विस्तार से बताया गया है कि कई पेड़ पूज्य होते हैं, किसी के नीचे बैठने और पूजा करने से भवी जीवों को अध्यात्मिक लाभ और शांति मिलती है। जीवत्व की सिद्धि ही जैन दर्शन की सबसे बड़ी विशेषता है। जैन ग्रंथों में ८४ लाख योनियों को विस्तार से वर्णन बताया गया है, जिसे आज का विज्ञान लगभग एक लाख तक ही शायद समझ पाया है। इतना सूक्ष्म विज्ञान देना तभी संभव है जब कोई सर्वज्ञ हो। जैन शास्त्रों का जीव विज्ञान बहुत गहरा है। इसलिए सचित का आहार मना है। इन्हें यदि आप सजीव मान लेंगे तो इनकी विराधना करने से बच जाएंगे, इन्हें कष्ट पहुंचाने से डरेंगे और इनका जीवत्व स्वीकारेंगे। उपाध्याय प्रवर ने कहा कि भोजन करने में संयम करते हुए उनोदरी तप करें तो अनेक प्रकार की बीमारियों से बचा जा सकता है और थाली में जूठन न छोड़ें तो अनेक लोगों के मन में अपने प्रति होने वाले सम्मान की कमी और घृणा से बचा जा सकता है।