10 दिसंबर 2025,

बुधवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

तीर्थंकर के वचन फूलों से भी कोमल.उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि

प्रवर प्रवीणऋषि ने कहा कि भक्ति के रास्ते पर आस्था से जाने वाले फूलों को ही चुनते हैं

2 min read
Google source verification
Praveen rishi says ..

तीर्थंकर के वचन फूलों से भी कोमल.उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि

चेन्नई. वेपेरी में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने कहा कि सूर्योदय उनका होता है जिनकी आंखों में उजाला हो। जिनकी आंखों में उजाला नहीं उनके लिए तो हजारों सूर्य भी काम के नहीं हैं। वे अंधियारे में भी उजाला महसूस करते हैं। तीर्थंकर, गुरु, परमात्मा कब होंगे कब नहीं होंगे, इस पर हमारा नियंत्रण नहीं है, वे हमारे चाहने से नहीं होते, हमारा नियंत्रण अपने स्वयं पर होता है। हम वस्तु को देखते हैं। आप उन परिस्थितियों में देखते हैं जब पदार्थ देने वाले का भाव बराबर न हो। आप भावों को गाते तो रोज हैं, पर जीते कभी नहीं। शब्द किसी के शाश्वत नहीं होते लेकिन भाव शाश्वत रहते हैं।

प्रवर प्रवीणऋषि ने कहा कि भक्ति के रास्ते पर आस्था से जाने वाले फूलों को ही चुनते हैं, कांटो को नहीं। तीर्थंकर के वचन तो फूलों से भी कोमल हैं। हम बुरी बात को बहुत जल्दी फैलाते हैं लेकिन अच्छी बातों को नहीं। जब भी अच्छी बातों का विरोध होता है तो चुप रह जाते हैं। जिसे हम अच्छा मानते हैं उसके खिलाफ बाहर कुछ होता है तो हम चुप रह जाते हैं। अगर गलत बोलने वालों के खिलाफ आप बोलेंगे कि यह गलत बोल रहा है तो दूसरे लोगों पर भी उसका गलत प्रभाव नहीं होगा। आदमी की सबसे बड़ी विशेषता और कमजोरी है वह जैसा सुनता है वैसा सोचता है। जिसके पास कान है उसी के पास मन है। कान के बाद भी मन की यात्रा शुरु होती है। मन को संभालने की जरूरत नहीं है, जिसने कान को संभाल लिया उसका मन संभल गया। मन को संभालने के कितने ही प्रयास करे मन संभलता नहीं है। अपने परिवार और बच्चों का मन संभालना चाहते हो कि वे गलत नहीं सोचे तो उनके कानों पर गलत बात न जाने पाए। भाषा वही सीखी जाती है जो सुनी जाती है। इस कला में माहिर हो जाएं तो एकलव्य के समान भोंकने वालों का मुंह बंद कर दें और दुनिया सुधर जाए।