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आरटीई दाखिला : बकाया भुगतान और कम पुनर्भरण से निजी स्कूल परेशान, लागू करने में सरकार भी उदासीन

RTE news

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पी. एस. विजयराघवन

शिक्षा का अधिकार (RTE) लागू करने में जहां निजी स्कूलों की उदासीनता के अपने कारण हैं तो वहीं सरकारी जिजीविषा भी नहीं के बराबर है। हाल में मद्रास हाईकोर्ट में सरकार ने स्पष्ट कर दिया कि वह सीबीएसई और आईसीएसई बोर्ड वाली स्कूलों में आरटीई को लागू नहीं कर सकती है। उसके गिनाए प्रमुख कारणों में से एक इन स्कूलों की फीस का ढांचा है, जिसका निर्धारण सरकार ने नहीं किया है।

बता दें कि तमिलनाडु की निजी स्कूलों की फीस का निर्धारण राज्य सरकार की समिति करती है। निजी स्कूलों के प्रबंधन से जब राजस्थान पत्रिका ने संपर्क किया तो लगभग सभी का यही कहना था कि समिति जो फीस तय करती है, उस हिसाब से स्कूल चलाना मुश्किल है। यही वजह है कि हर साल स्टेट बोर्ड वाली कई निजी स्कूलें सीबीएसई मान्यता के लिए आवेदन कर देती हैं। तमिलनाडु में सीबीएसई बोर्ड की 1500 स्कूलें हैं।

सीबीएसई बोर्ड का विकल्प

मैटि्रकुलेशन सीनियर सेकंडरी स्कूल के न्यासी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि राज्य सरकार आरटीई कानून के तहत स्कूल में दाखिल विद्यार्थियों के अनुपात में जो पुनर्भरण राशि देती है वह बहुत ही कम है। साथ ही सरकार से मिलने वाली यह राशि भी विलम्ब से मिलती है। स्कूलों में राज्य सरकार के दखल से बचने के लिए भी निजी स्कूल सीबीएसई बोर्ड का विकल्प चुनने लगे हैं। वे मानते हैं कि फीस निर्धारण समिति शुल्क तय करते समय सकल लागत का ध्यान नहीं रखती। इस वर्ष उनकी स्कूल में आरटीई के तहत 22 विद्यार्थियों को प्रवेश मिला है।

फीस निर्धारण का मसला

सीबीएसई स्कूल मैनेजमेंट एसोसिएशन की कार्यकारिणी के सदस्य विकास सुराणा के अनुसार हाईकोर्ट में सरकार का यह कहना कि वह सीबीएसई और आईसीएसई बोर्ड वाली स्कूलों में आरटीई लागू नहीं कर सकती, की वजह यह है सरकारी शुल्क ढांचा इन स्कूलों में लागू नहीं है। ऐसे में अगर आरटीई लागू कर भी दी जाए तो निजी स्कूलों का फीस स्ट्रक्चर राजकोष पर भारी पड़ेगा। इसी मसले पर एक अन्य शिक्षाविद का कहना था कि आरटीई दाखिले और पुनर्भुगतान से आ रही लागत से भी सरकार इस कानून को लेकर उदासीन हो रही है। यह बात और है कि हर साल आरटीई आवेदन खूब बढ़ रहे हैं। इस साल 2023 के 1.1 लाख आवेदनों की तुलना में 1.58 लाख आवेदन मिले। सभी आवेदकों को सीट तो नहीं मिल पाती लेकिन उनके अभिभावक अपने बच्चों को निजी स्कूल में पढ़ाने के सपने के तहत आवेदन अवश्य कर रहे हैं।