
मन, वचन और काया से हिंसा करने से स्वयं की आत्मा होती है दंडित
चेन्नई. माधावरम में जैन तेरापंथ नगर स्थित महाश्रमण सभागार में विराजित आचार्य महाश्रमण ने कहा हिंसा एक दंड है। किसी भी प्रकार की हिंसा दंड मानी जाती है। दंड के दो भेद होते हैं-द्रव्य दंड और भाव दंड। कोई पदार्थ जो हिंसा का कारण बने। जैसे-लाठी आदि-आदि हिंसा के साधन बन सकते हैं। लाठी आदि द्रव्य दंड हो जाता है और भाव दंड का अर्थ होता है आदमी अपने मन में विचार मात्र भी कर लेता है किसी को मारने का, किसी को कष्ट पहुंचाने का अथवा किसी का अहित करने का तो वह भाव दंड हो जाता है। दूसरों को कष्ट के बारे में सोचने वाला अथवा दूसरों को कष्ट देने वाला आदमी स्वयं की आत्मा को दंडित कर लेता है। भाव दंड के तीन भेद बताए गए हैं-मनो दंड, वचन दंड और काय दंड। मन से दंड, वचन से दंड और काया से दंड करने से आत्मा दंडित होती है। आदमी को ऐसे किसी भी प्रकार के दंड और स्वयं की आत्मा को दंडित होने से बचाने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्य ने 'ठाणंÓ आगमाधारित प्रवचन में कहा मन के कारण मनुष्य इतना पाप कर सकता है जितना कोई अन्य बिना मन वाला प्राणी नहीं कर सकता। मन से मनुष्य इतनी साधना भी कर सकता है जो सीधे मोक्ष को भी प्राप्त कर सकता है, जैसा कोई अन्य प्राणी नहीं कर सकता। यह कहना चाहिए कि आत्मा को दंड करने में सबसे ज्यादा हाथ मन का होता है इसलिए आदमी को अपने मन को नियंत्रित करने का प्रयास करना चाहिए।
इस मौके पर अखिल भारतीय युवक परिषद द्वारा आयोजित मंत्र दीक्षा में उपस्थित बालक-बालिकाओं को प्रेरणा देते हुए कहा उपस्थित बालक-बालिकाएं खिलते हुए फूल के समान हैं। इनमें संस्कारों, सच्चाई व अहिंसा का सुवास हो,। नैतिकता के अनुपालन की सुवास हो तो इनका जीवन और सुवासित हो सकता है। आचार्यश्री ने उन बालक-बालिकाओं को मंत्र दीक्षा दी। तत्पश्चात् चेन्नई तेयुप मंत्री मुकेश खिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष विमल कटारिया ने विचार व्यक्त किए। चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति-चेन्नई के अध्यक्ष धर्मचंद लूंकड़, महामंत्री रमेशचंद बोहरा एवं अन्य टीम के सदस्यों ने श्रीचरणों में पावस-प्रवास व फड़द लोकार्पित की एवं आचार्य से आशीर्वाद लिया।
Published on:
30 Jul 2018 07:33 pm
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