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जागरण ही प्रगति का प्रथम सोपान

जयधुरंधर मुनि ने कहा कि जिनवाणी हर साधक को मोह निद्रा से जाग्रत करने वाली है।

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जागरण ही प्रगति का प्रथम सोपान

चेन्नई. आलंदुर जैन स्थानक में विराजित जयधुरंधर मुनि ने कहा कि जिनवाणी हर साधक को मोह निद्रा से जाग्रत करने वाली है। अनादि काल से यह जीव मोह की नींद में सोया हुआ है। धर्म हर जीव को अपने कर्तव्य के प्रति जाग्रत करता है। भगवान महावीर ने प्रमाद का त्याग करते हुए हर साधक को सदैव जाग्रत रहने के लिए प्रेरित किया। सोने वाला खोता है और खोने वाला पाता है। हर क्रिया करते समय सावधान रहना चाहिए। धर्मी जीव के लिए जागना अच्छा है, लेकिन पापी जीव को सोना अच्छा है ताकि पाप की वृद्धि न हो। संत के आने पर लोगों का सोए हुए भाग्य भी जाग जाता है। व्यक्ति को जागने के निमित्त तो अनेक मिलते हैं, उनका फायदा उठाना जरूरी है। जो सोता है उसका भाग्य भी सो जाता है और जो चलता है उसका भाग्य भी उसके आगे चलता है। केवल द्रव्य से ही नहीं भाव से भी जाग्रत होना जरूरी है। जब जागो तभी सवेरा उक्ति के अनुसार जागृति कभी भी आ सकती है। जागरण ही प्रगति का प्रथम सोपान है। जागरण अधर्म के प्रति नहीं अपितु धर्म के प्रति होना चाहिए। उन्होंने प्रसुप्त, सुप्त, जागृत, उत्थित, समुत्थित इन पांच प्रकार की आत्माओं का वर्णन किया। जय कलश मुनि ने उठो नर नारियो, जागो जगाने संत आए हैं गीत प्रस्तुत किया।