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शिव व कृष्ण की महिमा को नृत्य, संगीत के माध्यम से मंच पर उतारा

मुक्ताकांशी मंच पर शिव के अर्धनारेश्वर स्वरुप का कराया दर्शन  

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Bringing the glory of Shiva and Krishna on stage through dance, music

Bringing the glory of Shiva and Krishna on stage through dance, music

खजुराहो. विश्व पर्यटन नगरी खजुराहो में चल रहे भारतीय शास्त्रीय नृत्यों पर आधारित अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त 48 वें खजुराहो नृत्य समारोह की चौथी शाम की शुरुआत प्रसिद्ध नृत्यांगना सोनिया परचुरे के कत्थक नृत्य से हुई। दूसरी प्रस्तुति में सुनील व पेरिस लक्ष्मी ने कथकली व भारतनाट्यम की मनोहारी छठा बिखेरी। वहीं तीसरी प्रस्तुति में रागिनी नायर ने कथक के जरिए शिव की स्तुति की।
पहली प्रस्तुति में नृत्यांगना सोनिया ने राग मधुवंती में अर्धनारेश्वर की प्रस्तुति दी। आधा शरीर भगवान शिव का और आधा शरीर देवी पार्वती के शक्ति स्वरूप का रुप प्रस्तुत किया। इसके बाद दूसरी प्रस्तुति में तीन ताल परंपरा के अनुसार कुछ ठाट,अमद,परन की शानदार प्रस्तुति दी। फिर राग किरवानी तीन ताल और झापताल के मेल पर भगवान कृष्ण की स्तुति प्रस्तुत करते हुए उनके रूपों का वर्णन किया।

समारोह की तीसरी प्रस्तुति में नृत्यांगना रागिनी नागर ने कत्थक नृत्य प्रस्तुत किया, जिसमें पहली प्रस्तुति नम: शिवाय से भगवान शिव की स्तुति की, जिसमें नृत्य के माध्यम से शिव को सृष्टि का संचालक और संघारक के स्वरूप का वर्णन बताया गया। इसके बाद ताल,तीन ताल में पारंपरिक तोड़े, टुकड़े तत्काल परन की प्रस्तुति दी गई। इसके बाद कालिया पर ठाड़े मोहन की प्रस्तुति में भगवान कृष्ण के कालिया मर्दन को दिखाया गया।
वर्ष 1975 से हो रहा आयोजन: मध्यप्रदेश शासन संस्कृति विभाग के उस्ताद अलाउद्दीन खॉ संगीत एवं कला अकादमी मध्य प्रदेश संस्कृति परिषद् द्वारा 1975 से प्रतिवर्ष होने वाले खजुराहो नृत्य समारोह को इस वर्ष आजादी का अमृत महोत्सव के तहत पश्चिमी मंदिर समूह के अंदर चंदेल कालीन कंदारिया महादेव तथा जगदम्बी मंदिर की अनुभूति के बीच मंच पर 20 से 26 फरवरी तक पर्यटकों तथा रसिकजनों के लिए निशुल्क आयोजित किया गया है जो शाम 7 बजे प्रारम्भ हो जाता है।

कृष्ण और गोपियों की रासलीला का दृश्य दिखाया
समारोह की दूसरी प्रस्तुति में नृत्यकार सुनील एवं पेरिस लक्ष्मी ने कथकली तथा भरतनाट्यम नृत्य प्रस्तुत किया। जिसमें कृष्ण और गोपियों की दिव्य रास लीला का एक दृश्य प्रस्तुत किया। इसके बाद कथकली नृत्य में द्रौपदी भगवान कृष्ण के पास आती है,उन्हें दुर्योधन से हुई हिंसा की याद दिलाती है और उन्हें अपनी रक्षा के लिए अपने वचन का सम्मान करने के लिए प्रेरित करती है। इसके बाद रागमालिका में कथकली नृत्य से गीथोपदेशम कुरुक्षेत्र के युद्ध के मैदान में जब अर्जुन अपने ही रिश्तेदारों को अपने दुश्मन के रूप में खड़ा देखकर अपना साहस खो देते हैं, तो कृष्ण उसे गीता और अपने लौकिक रूप का खुलासा करते हैं जिससे योद्धा युद्ध में वापस आ सके और अपने भाग्य को पूरा कर सके।