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मिट्टी में उपलब्ध तत्वों की कराएं जांच, तब बोएं रबी की फसल, बढ़ेगा उत्पादन

जिले में गेंहू और चना रवि की मुख्य फसलें

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Main crops of wheat and gram

Main crops of wheat and gram

छतरपुर. जिले में रबी की मुख्य फसलों में गेहूं और चना का नाम सबसे पहले आता है। ज्यादातर किसान गेहूं और चना की फसल बोते हैं। रवि की बुवाई के लिए गेहूं और चना बोते समय कुछ विशेष बातों का ध्यान रखा जाए तो अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है। रवि फसल के लिए सबसे अहम है, मिट्टी का परीक्षण,पीरक्षण से ही पता चलता है कि मिट्टी में किस तत्व की कमी है और कौन सा तत्व भरपूर मात्रा में उपलब्ध हैं। मिट्टी में जिस तत्व की उपलब्धता हो, उसके अनुसार ही फसल बोने से पैदावार अच्छी होती है। इसके साथ ही उर्वरक उपयोग क्षमता का विशेष ख्याव रखने की जरूरत होती है। उर्वरक उपयोग क्षमता से तात्पर्य है कि प्रयोग किए गए उर्वरक से फसल अधिक से अधिक उपज दे और कम से कम पोषक तत्वों की हानि हो। उर्वरक उपयोग क्षमता, उर्वरकों के प्रयोग करने की विधियां, उनका चुनाव, उनके प्रयोग करने का समय एवं मात्रा आदि पर निर्भर करती है। इस पर मृदा की किस्म एवं गुण, मृदा में नमी, जलवायु सम्बन्धी कारक जैसे तापमान व वर्षा, फसल की किस्म व अनेक कृषि क्रियाओं का भी प्रभाव पड़ता है।
5 नबंवर तक कर लें चने की बुवाई
चने की बुवाई के लिए 25 अक्टूबर से 5 नवंबर तक का समय सबसे बेहतर है,अगर बुवाई पिछड़ रही है, तो भी 25 नवंबर तक कर लेना ठीक है। चने की उन्नत किस्म का बीज 18 किलो प्रति बीघा की दर से बोना चाहिए। चने की फसल में जडग़लन व उखेड़ा की रोकथाम के लिए बीज को 10 ग्राम ट्राईकोडरमा हरजेनियम या 1.5 ग्राम कार्बेण्डाजिम (50 डब्ल्यू पी) प्रति किलो बीज के हिसाब से बीजोपचार करने से ये समस्या नहीं होती है। दीमक प्रभावित खेतों में बिजाई से पूर्व बीज को 2 मिली इमिडाक्लोप्रिड (17.8 एसएल.) को 50 मिली पानी में घोल बनाकर प्रति किलो बीज के हिसाब से प्रयोग करने से दीमक लगने का खतरा नहीं रहता है। पीएसबी एवं राईजोबियम कल्चर की स्ट्रेन एसजीएन 94 से बीजोपचार से चने की उपज में बढ़ोतरी होती है। दीमक व कटवर्म के प्रकोप से बचाव के लिए क्विनालफॉस (1.5 प्रतिशत) चूर्ण 15 किलो प्रति एकड़ आखरी जुताई के समय खेत में डाल देने से दीमक का प्रकोप नहीं होता है। चने की अच्छी पैदावार के लिए 5 किलोग्राम नाइट्रोजन, 11 किलो यूरिया, 10 किलो फास्फोरस प्रति बीघा की दर से बीज बोने से पहले ड्रिल करें। चने में डीएपी की तुलना में सिंगल सुपर फॉस्फेट का प्रयोग करना ज्यादा फायदेमंद होता है।
10 नबंवर के बाद गेंहू की बुवाई
गेहूं की समय पर बुवाई के लिए 10 नवम्बर से 20 नवम्बर और पिछडऩे पर बुवाई के लिए 25 नवम्बर से 15 दिसम्बर तक का समय उचित माना जाता है। लेकिन यदि मौसम और मिट्टी में नमी हो तो 15 अक्टूबर के बाद भी गेहूं बोया जा सकता है। गेहूं की उन्नत किस्म का प्रमाणित बीज ही उपयोग में लेना चाहिए। समय पर बुआई के लिए 62 किलोग्राम प्रति एकड़ और पिछड़ी बुवाी के लिए 85 किलोग्राम प्रतिएकड़ बीज का इस्तेमाल किया जाना उचित माना जाता है। दीमक प्रभावित क्षेत्रों में 400 मिली क्लोरोपायरीफॉस (20 इसी) या 250 मिली इमिडाक्लोप्रिड (600 एफएस) को 5 लीटर पानी में घोलकर 100 किलो बीज के हिसाब से उपचारित करना चाहिए। जिन खेतों में दीमक का प्रकोप अधिक हो, उनमें बुवाई के समय क्विनालफॉस (1.5 प्रतिशत) चूर्ण 15 किलो प्रति एकड़ के हिसाब से भूमि में अंतिम जुताई के समय मिलाने से दीमक का प्रकोप नहीं रहता है। गेहूं में समय पर बुवाई होने पर 20 से 23 सेमी की दूरी पर कतार हों और बीज 5 सेमी से अधिक गहरे में न डालें। बुवाई के समय ५५ किलो डीएपी, ५० किलो यूरिया प्रति एकड़ इस्तेमाल किए जाने से फसल अच्छी होती है। पहली सिंचाई के समय 75किलोग्राम यूरिया प्रति एकड़ उपयोग करना लाभकारी होता है। खड़ी फसल में जिंक की कमी के लक्षण प्रकट होने पर डेढ़ किलो जिंक सल्फेट एवं 750 बूझा चूना 100-125 लीटर पानी में डालकर प्रति बीघा के हिसाब से छिड़काव करने से फसल में जिंक की कमी दूर होती है।
रबी फसलों के लिए बुवाई के समय ध्यान देने योग्य बातें
बुवाई के पहले खेत की मिट्टी की जांच कराना चाहिए। मिट्टी परीक्षण के मुताबिक फसल चक्र अपनाते रहना चाहिए, लगातार एक ही फसल की बोने से उत्पादन अच्छा नहीं होता है। हमेशा उन्नत किस्मों के प्रमाणित बीज का इस्तेमाल किया जाना ही उचित है। बीज की सिफारिश की गई मात्रा का इसेतमाल करते हुए भूमि व बीज उपचार करने से उत्पादन अच्छा होता है। इसके साथ ही फसल बोते समय खेत में खरपतवार नहीं होना चाहिए ।
ऐसे चुने खाद
मृदा परीक्षण कराने के बाद भूमि में जिस तत्व की कमी हो उस भूमि में उसी तत्व युक्त उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए। छतरपुर जिले में अम्लीय मृदा है,इसलिए नाइट्रोजन वाले उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए,जो मिट्टी में पर अपना क्षारीय प्रभाव डाले। घुलनशील फास्फेटिक उर्वरकों का प्रयोग करना लाभप्रद होता है। इसके अलावा खेत में जो फसल उगाने जा रहे हैं, उससे पहले कौन-सी फसल उगाई गई थी, उसमें कितनी मात्रा में खाद का प्रयोग किया गया था, खेत खाली था या नहीं, आदि बातों को ध्यान में रखते हुए खाद एवं उर्वरकों का चुनाव करना चाहिए।
समय से करें बुवाई
15 अक्टूबर के बाद मौसम,मिट्टी में नमी को देखते हुे बुवाई की जा सकती है। यदि खेत में खरीफ की फसल खड़ी है, और रबी की बुवाई लेट हो रही है,तो लेट बुबाई वाली किस्म बोना उचित होता है। कृषि विज्ञान केन्द्र, मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला की मदद लेक र बुवाई करें, तो उत्पादन अच्छा हो सकता है।
डॉ.वीणापाणी श्रीवास्तव,वरिष्ठ वैज्ञानिक ,कृषि विज्ञान केन्द्र