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एसएनसीयू में हर साल घट रही मृत्यु दर, डॉक्टर व स्टाफ की मेहनत ला रही रंग

एसएनसीयू में पड़ोसी जिलो का भी भार, संसाधन की कमी के वाबजूद मृत्य दर में आई कमी

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एसएनसीयू जिला अस्पताल

एसएनसीयू जिला अस्पताल

छतरपुर. जिला अस्पताल के नवजात शिशु गहन चिकित्सा इकाई (एसएनसीयू) में पड़ोसी जिलों का भी भार पड़ रहा है, जबकि संसाधन एक जिले के हिसाब से जुटाए गए हैं। कम संसाधनों में भी पिछले पांच साल में एसएनसीयू में प्री-मैच्योर डिलेवरी में मौत का प्रतिशत 17 से घटकर ७ फीसदी पर आ गया है। वर्ष 2019 में मौत का प्रतिशत 17 फीसदी था, जो हर साल घटते हुए 16, 15 और फिर 13 फीसदी पर आया। पिछले चार साल से मृत्यु दर 10 फीसदी दर्ज हुई है। जबकि मंथली दर अब ६.७ फीसदी हो गई है। सीमित संसाधन व पड़ोसी जिले महोबा, हमीरपुर, बांदा, पन्ना व टीकमगढ़ जिले के अतिरिक्त भार के वाबजूद एसएनसीयू में मौत का आंकड़ा सराहनीय रुप से कम बना हुआ है।

मशीनों की कमी के बीच हो रहा काम
जिला अस्पताल में सीपेप मशीन दस साल पुरानी है, जो अब सुधारी नहीं जा सकती है। वहीं, नई मशीन की खरीदी के लिए चार चाल से हर दो महीने पर पत्र लिखा जा रहा है, लेकिन अभी तक मशीन नहीं मिली है। वहीं, एबीजी मशीन भी खराब पड़ी हुई है, हालांकि पीआइसीयू से मशीन लेकर बच्चों की जान बचाई जा रही है। वहीं, एसएनसीयू के सेटअप में स्वीकृत लैब टैक्नीशियन का पद भी खाली है, जिससे परेशानी हो रही है। हालांकि नए एसएनसीयू में दो वेटिंलेटर की व्यवस्था हो गई है। जिससे प्री मैच्योर डिलीवरी में मौत का प्रतिशत 10 फीसदी पर बना हुआ है। विभागीय निर्देश के मुताबिक भी 10 फीसदी से ज्यादा मौत नहीं होनी चाहिए।

हर महीने आते हैं 300 बच्चे
वर्तमान में एसएनसीयू वार्ड में 2० वार्मर हैं। इनमें से 1 वार्मर ओटी और 1 वार्मर लेबर रूम में रखा है। 2० वार्मरों के सहारे एसएनसीयू यूनिट का संचालन किया जा रहा है। शहर के अधिकांश नर्सिंग होम में एसएनसीयू यूनिट न होने और पड़ोसी जिलों से भी गंभीर बीमारियों से ग्रसित नवजात शिशुओं के आकर भर्ती होने के कारण एसएनसीयू में अन्य जिलों का भार भी है। एसएनसीयू में महीने भर में औसतन 250-300 बच्चे भर्ती होते हैं। कभी कभी ये संख्या बढ़ जाती है। जैसे अगस्त माह में ३८४ बच्चे एसएनसीयू में एडमिट हुए थे।

इनकी मेहनत से आ रही चेहरे पर मुस्कान
जिला अस्पताल के नवजात शिशु गहन चिकित्सा इकाई (एसएनसीयू) में नवजात बच्चों को जीवित बचाकर माता-पिता के चेहरे पर मुस्कान लाने वालों में डॉ. साकेत गुप्ता, डॉ. नीरज द्विेदी, ऋषि द्विेदी शामिल है। इन डॉक्टर्स के साथ 19 नर्से,वार्ज ब्याय, वार्ड आया, स्वीपर समेत पूरे स्टाफ की मेहनत का ही असर है कि जिला अस्पताल का एसएनसीयू जिंदगी में खुशहाली ला रहा है। तमाम मुश्किलों के वाबजूद मृत्यु दर में कमी आई है। जिला अस्पताल के एसएनसीयू में ऐसे नवजात बच्चों का भी इलाज हो रहा है। जिनके फेंफड़े विकसित नहीं हो पाए है। दवा डालकर बच्चों को जीवित रखना और उनके फेंफड़ों को स्वस्थ रखने की यह तकनीक आमतौर पर जिला स्तर पर कम ही उपलब्ध है।

फैक्ट फाइल
स्टाफ
डॉक्टर - 3
नर्स-१९
वार्ड ब्याय- 0४
वार्ड आया- ०३
स्वीपर-0२
गार्ड- 3

संसाधन
वेंटीलेटर- 02
सीपेप मशीन - 02 (खराब)
एबीजी मशीन- 01 (खराब)
रेडियंड वार्मर- २०
ऑक्सीजन क न्संट्रेटर- 09
मेडिसिन- सभी तरह की उपलब्ध

इनका कहना है
मशीनों की कमी को दूर करने के लिए लगातार पत्राचार किया जा रहा है। मौजूदा संसाधन व स्टाफ के जरिए बेहतर करने का प्रयास जारी है। मृत्यु दर में कमी आना हमारे लिए हर्ष की बात है क्योंकि कई जिलों के मरीज हमारे यहां बड़ी उम्मीद से आते हैं।
डॉ. साकेत गुप्ता, प्रभारी, एसएनसीयू