
madhya pradesh high court judgments
धर्मेन्द्र सिंह
छतरपुर। शहर की सरकारी जमीनों को भू-माफियाओं ने सरकारी रिकॉर्ड में हेर-फेर करके निजी बना लिया और रातों-रात बेचकर कॉलोनियां आबाद कर डाली। प्लाट बेचे और धीर-धीरे सरकारी जमीनों पर बस्तियां आबाद होती चली गईं, लेकिन शासन-प्रशासन के नुमाइंदों ने सरकारी जमीनें बचाने कोई भी प्रयास नहीं किया। कुछ जागरुक लोग जमीनों को बचाने के लिए हाईकोर्ट पहुंचे और उन्होंने कोर्ट का आदेश लाकर भी प्रशासन को दिया, लेकिन हर बार स्थानीय प्रशासन भू-माफियाओं के साथ खड़ा नजर आया। ताजा मामला एक और सरकारी जमीन पर हुए निजीकरण को लेकर हाईकोर्ट के आदेश का है, जिसमें हाईकोर्ट ने जमीन को मप्र शासन के नाम दर्ज करने का आदेश दिया है। लेकिन हाईकोर्ट के आदेश का पालन करने में प्रशासन की कोई रुचि नहीं है।
शहर के बगौता पटवारी हल्का की कई जमीनों को फर्जी तरीके से निजी लोगों के नाम दर्ज करने के मामले में हाईकोर्ट में एक के बाद एक कई जनहित याचिका लगाई गई थीं। बगौता मौजा की सागर रोड पर वन विभाग के ऑफिस से नाला तक रोड की जमीन, पन्ना नाका पर कलेक्टर बंगेल के सामने डेरा पहाड़ी के गेट से लेकर रेडियो कॉलोनी तक और सटई रोड पर गुलाब मैरिज हाउस से लेकर ग्रीन एवेन्यू कॉलोनी तक की शासकीय जमीन को फर्जी तरीके से निजी जमीन राजस्व के रिकॉर्ड में दर्ज किया गया था। इन सभी मामलों में हाईकोर्ट ने अलग-अलग जनहित याचिकाओं पर सुनवाई के बाद इन जमीनों को मध्यप्रदेश शासन के नाम दर्ज करने के आदेश दिए, लेकिन जिला प्रशासन ने इन आदेशों का पालन आज तक नहीं किया है। पन्ना नाका और सागर रोड वाली जमीन में कोर्ट के आदेश के अवमानना का केस भी चला, जिसमें अधिकारियों ने आदेश का पालन जल्द कराने का हवाला देकर समय मांगा, लेकिन अधिकारी के बाद अधिकारी बदलते रहे और हाईकोर्ट के आदेश का पालन आज तक नहीं हो सका है।
सागर रोड पर पटवारी ने परिजनों के नाम कर दी सरकारी जमीन :
सागर रोड पर बिजावर नाका पर वन विभाग के ऑफिस से लेकर पूर्व एसडीएम बीएल मिश्रा के घर तक खसरा नबंर ५९४, ५९५, ५९६, ५९७, ५९८, ५९९, ६००, ६०१, ६०२, ६०३, ६०४ और 784 कुल रकबा लगभग 30 एकड़ जमीन, सन 1943-44 के बंदोबस्त के समय शासकीय रिकॉर्ड में मध्यप्रदेश शासन की जमीन दर्ज थी। इस जमीन को तात्कालीन पटवारी ने 1952-53 में अपने और अपने परिजनों के नाम सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज कर ली। इस मामले में वर्ष 2011 में जनहित याचिका हाईकोर्ट में लगाई गई। जिस पर सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने 18 दिसंबर 2015 को फैसला देते हुए मध्यप्रदेश शासन के नाम भूमि दर्ज करने और अतिक्रमण हटाने के आदेश दिए। लेकिन इस मामले में भी हाईकोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया गया। जिस पर हाईकोर्ट में कोर्ट की अवमानना का केस सन् २०१६ में लगाया गया। जिस पर अधिकारी ने माफी मांगते हुए आदेश का पालन करने की बता कही, लेकिन आज तक न अतिक्रमण हटाया गया और न ही जमीन को मध्यप्रदेश शासन के नाम दर्ज किया गया है। आज भी इस जमीन पर मकान बने हुए हैं और लोग रह रहे हैं।
पन्ना नाका पर बेच दी श्मशान की जमीन :
पन्ना नाका पर कलेक्टर बंगला के सामने डेरा पहाड़ी जैन मंदिर के गेट से लेकर रेडियो कॉलोनी के नाला तक खसरा नंबर १७३१, रकबा 14 एकड़ 52 डिसीमल, श्मशान भूमि थी, जिसका सन 1956 में पट्टा सुरेन्द्र जैन के नाम बनाया गया। फिर प्रेमचंद्र जैन ने ये जमीन खरीदकर प्लॉटिंग कर दी। रेडियो कॉलोनी के आगे नाला खसरा नंबर १८०९, रकबा 1 एकड़ 24 डिसीमल में 18२२ की रजिस्ट्री वाले लोगों को प्रेमचंद्र जैन ने कब्जा दे दिया। वहीं डेरा पहाड़ी के खसरा नंबर ३२१४ और 3215, रकबा ३ एकड़ 65 डिसीमल जमीन पर प्रेमी जैन ने खसरा नबंर 1731 की रजिस्ट्री करवाने वाले लोगों को कब्जा दे दिया। इस मामले में सन 2000 में हाईकोर्ट में ६८७६ नबंर की जनहित याचिका लगाई गई, हाईकोर्ट ने 1 अप्रैल 2004 को इस पर फैसला सुनाते हुए सरकारी जमीन से अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया। इस मामले में होईकोर्ट के आदेश का पालन नहीं होने पर 2006 में कोर्ट की आवमानना का केस दायर किया गया। जिस पर तात्कालीन कलेक्टर अजातशत्रु श्रीवास्तव ने एक साल का समय कोर्ट से मांगा। फिर कलेक्टर बदल गए, लेकिन आदेश का पालन आज तक नहीं हो पाया।
सटई रोड पर निजी कर दी सरकारी जमीन
सटई रोड पर गुलाब मैरिज हाउस से लेकर ग्रीन एवेन्यू कॉलोनी तक शासकीय जमीन खसरा नबंर १८२२, रकबा २६ एकड़ 80 डिसीमल जमीन वर्ष १९६०-६१ में निजी लोगों के नाम चढ़ा दी गई। इसके अलावा मध्यप्रदेश शासन की जमीन खसरा नबंर १८७४, रकबा 19 एकड़ में से 10 एकड़ १९५५-५६ में बिना सक्षम अधिकारी के आदेश के पटवारी ने निजी लोगों के नाम दर्ज कर दी। खसरा नबंर १८२२ के मामले में हाईकोर्ट ने जनहित याचिका पर वर्ष 20०४ में फैसला सुनाते हुए अतिक्रमण हटाने और जमीन को शासकीय दर्ज करने के आदेश दिए थे। वहीं खसरा नबंर १८७४ को निजी जमीन दर्ज करने के मामले में हाईकोर्ट में जनहित याचिका क्रमांक ३३८६ वर्ष 2009 में लगाई गई थी। जिस पर कोर्ट ने 11 जुलाई 2014 को फैसला सुनाते हुए अतिक्रमण हटाने और जमीन को मध्यप्रदेश शासन के नाम दर्ज करने के आदेश दिए। लेकिन इस मामले में भी हाईकोर्ट के आदेश का पालन अधिकारियों ने नहीं किया है।
प्रशासन की उदासीनता ने भूमाफियाओं को मिला बढ़ावा :
शहर में सरकारी जमीन की सौदेबाजी के मामले में जिला प्रशासन की उदासीनता और अघोषित संरक्षण के कारण यहां के भूमाफियाओं को खूब बढ़ावा मिला। यही कारण है कि शहर में स्थित सागर रोड और पन्ना रोड की चरनोई भूमियों पर भी कब्जा हो गया और फर्जी दस्तावेज बनकर तैयार होते चले गए। जमीनें लगातार बिकती रहीं, तहसीलदार से लेकर पटवारी और आरआई व एसडीएम से लेकर कलेक्टर तक की जानकारी में यह सब खेल होते रहे। पिछले तीन साल से शहर में पदस्थ तहसीलदार आलोक वर्मा ने सरकारी जमीनों के मामलों में जो खेल किया है, वह सभी अपराध की श्रेणी में ही आ रहे हैं। लेकिन दुर्भाग्य कि प्रशासन ने अब तक सरकारी जमीनों को बचाने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किया।
कोर्ट के आदेश का पालन होगा
माननीय हाईकोर्ट के सभी आदेशों का पालन किया जाएगा। कोर्ट के आदेशानुसार तहसीलदार को कार्रवाई करने के निर्देश दिए गए हैं। एक बार फिर आदेश जारी किए जाएंगे।
रमेश भंडारी, कलेक्टर
सुनवाई चल रही है
हाईकोर्ट ने नजूल अधिकारी को आदेश दिए थे,नजूल अधिकारी ने कलेक्टर को लिखा,कलेक्टर ने धारा 115.116 के तहत कार्रवाी के निर्देश दिए हैं। धारा 116 विलोपित हो गई है,इसलिए सागर रोड वाले मामले में तहसील न्यायालय में सुनवाई चल रही है। 16 तारीख को इस मामले में सुनवाई है।
आलोक वर्मा,तहसीलदार
Published on:
15 Oct 2018 10:04 am
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