
new medical collage will be in Basti
धर्मेन्द्र सिंह
छतरपुर। नशे की आदत वाले लोगों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। खासकर युवा वर्ग नशे की गिरफ्त में हैं। कई तरह के नशा हैं, जो आसानी से मिल रहे हैं,इसलिए नई पीढ़ी इनकी आदी हो रही है। छतरपुर जिले में इंजेक्शन और स्मैक जैसे खतरनाक नशा का प्रचलन बढ़ा है,जो युवाओं को अपनी गिरफ्त में ले रहा है। जिले में चिन्हित किए गए नशे के आदी लोगों में 30 वर्ष से कम आयु के युवाओं की संख्या सबसे ज्यादा है। जो कभी यारी दोस्ती या कभी स्टेटस सिंबल,कभी प्रेम में असफलता, कभी पेरैंट्स से कम्युनिकेशन गैप के कारण नशे की गिरफ्त में फंसते जा रहे हैं। इससे जहां युवाओं में स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां पैदा हो रही हैं वहीं वे अपराध की दुनिया में कदम रख रहे हैं। देश का भविष्य माने जाने वाले युवा नशे के अंधकार में डूब रहा है।
छतरपुर जिले में युवा पीढ़ी में शौक के कारण नशा की आदत बढ़ रही है। शुरु में शौक में नशा करने के बाद ये शौक धीरे-धीरे लत में बदल जा रहा है। जिला अस्पताल में ओपियोइड सबटीट्यूट थेरपी (ओएसटी) सेंटर के अनुसार जिले के युवाओं में इंजेक्शन से नशा करने वालों की संख्या सबसे ज्यादा है। इसके अलावा स्मैक,गांजा,टैबलेट व कफ सीरप के जरिए नशा की आदत भी युवाओं में बढ़ी है। इंजेक्शन के नशे की आदी व्यक्ति की पहचान आसानी से नहीं हो पाती है,इसके साथ ही इंजेक्शन के नशे की कीमत कम होने के साथ ही आसानी से मेडिकल स्टोर्स पर मिल जाते हैं। इसलिए युवाओं में इस नशे की आदत बढ़ी है।
हर महीने आते हैं नए मरीज:
छतरपुर के ओएसटी सेंटर में अबतक 333 लोगों का पंजीयन हुआ है। इसमें से १३१ लोग ऐसे हैं,जिन्हें इंजेक्शन और स्मैक का नशा करने की लत है। इनमें से 5 लोग ऐसे में जिनका इलाज पिछले एक साल से चल रहा है। इलाज के बाद इनमें से 4 लोग नशे की आदत छोडऩे में सफल रहे,लेकिन एक,नशे से दूर नहीं जा सका,इसलिए उसका दोबारा इलाज किया जा रहा है। इलाज कराने वाले लोगों में सभी 30 वर्ष की आयु से कम उम्र के युवा हैं। हैरानी की बात ये है कि इनमें एक महिला भी है,जो दर्द निवारक इंजेक्शन लेने के कारण नशे की आदी हो गई। इस केस से एक बात तो साफ हो गई कि दर्द की दवाएं ज्यादा लेने से भी नशे की लत लग जाती है। बिना दर्द निवारक दवा लिए मरीज बेचैन रहता है।
इन दवाओं का हो रहा नशे में इस्तेमाल:
नशा करने वाले युवा तीनों तपके से संबंध रखते हैं। धनाढ्य,मध्यम वर्गीय और गरीब,सभी तरह के परिवारों के युवा नशे की गिरफ्त में हैं। ये युवा तनाव, बेरोजगारी,पैसे की कमी या फिर जीवन में आनंद उठाने के लिए नशे का इस्तेमाल करते हैं। इसके लिए फोर्डबिन,एबिल,नार्फिन के इंजेक्शन, नींद की दवाइयां जैसे नाइटरसिट, एलेप्रेस्कस, काम्पोज, वेलियम प्राक्सम, विभिन्न सीरप में खांसी की दवाइयां बेनाड्रिल, कोरेक्स व एलोपैथिक दवाएं जिन्हें असंतुलित मात्रा में ग्रहण कर मस्त हो जाते हैं,जिससे इनका तनाव कम होता है और चिंता से मुक्ति मिल जाती है। इस तरह के नशे को करने वाले की पहचान आसानी से नहीं हो पाती है,जिस तरह से शराब पीने वालों की पहचान हो जाती है। इसलिए नशा करने वाले युवा मेडिकेटेड नशे की ओर खिंच रहा है। छोटी-बड़ी जगहों में मेडिकल वाले आसानी से अपने ग्राहकों को ये नशा उपलब्ध कराते हैं। नशे की ये दवाइंया आसानी से मिलने की वजह से ही इनका इस्तेमाल बढ़ा है। डॉक्टर की पर्ची के बिना न दी जाने वाली ये दवाएं मेडिकल स्टोर्स पर बिना डॉक्टर के पर्चे के मिल जाती है।
नशे के ये होते है दुष्प्रभाव:
नशा करने की शुरुआत होने पर तो दुष्प्रभाव समझ नहीं आता है,न पहचान हो पाती है। लेकिन लगातार नशा करने से कुछ असामान्य लक्षण सामने आते हैं। हर प्रकार के नशे के अलग-अलग दुष्प्रभाव होते हैं,ज्यादातर मरीजों में चिड़चिड़ाना, हकलाना, लोगों में अरूचि उत्पन्न होना, अध्ययन के प्रति विरक्ति, याददाश्त कमजोर होना, बात बात पर क्रोधित होना, रक्तचाप में असामान्य वृद्धि, अंगों का कंपकंपाना, नशा न लेने की स्थिति में बेचैनी बढऩा, हिंसात्मक व्यवहार, बहकी-बहकी बातें करना, नजरों का कमजोर होना,आंखों से आंसू आना,नाक वहना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।
निशुल्क होता है इलाज:
ऐसे मरीज जिनकों इंजेक्शन या स्मैक के नशे की आदत है,उनमें एचआइवी की आशंका होती है। इसके लिए नाको द्वारा जिला स्तर पर ओएसटी सेंटर चलाकर इनके मरीजों का कांउसलिंग की जाती है। इसके साथ ही कम से कम एक साल तक इनका इलाज किया जाता है। ओएसटी आने वाले मरीजों की पहचना गोपनीय रखी जाती है। नशे की आदत छुड़ाने के लिए इन्हें विप्रोनार्फिन की टैबलेट रोज दी जाती है,जिससे उन्हें नशा करने की जरुरत महसूस नहीं होती है। निशुल्क मिलने वाला ये इलाज एक साल तक किया जाता है। किसी किसी मरीज का इलाज जरुरत के हिसाब से एक साल से भी ज्यादा किया जाता है।
कांउसलिंग जरुरी है:
बच्चों और परिवार के बीच कम्यूनीकेशन गैप नहीं रहना चाहिए,उनकी गतिविधि पर माता-पिता को ध्यान देना चाहिए,ताकि वे नशे से दूर रहें। नशा की आदत पडऩे के बाद कांउसलिंग जरूरी है।
बृजेश चतुर्वेदी,काउंसलर,ओएसटी
झिझके नहीं,इलाज कराएं:
किसी भी कारण से यदि किसी को नशे की लत लग गई है तो,इलाज कराने आने में झिझकें नहीं,ओएसटी सेंटर पर मरीज का नाम गोपनीय रखकर उनका इलाज किया जाता है। मशा के आदी युवाओं को तिरस्कार नहीं सहयोग देकर नशे की गिरफ्त से बाहर लाया जा सकता है।
डॉ.एसएस चौरसिया,नोडल अधिकारी
Published on:
25 Sept 2018 02:42 pm
बड़ी खबरें
View Allछतरपुर
मध्य प्रदेश न्यूज़
ट्रेंडिंग
