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पिपरमेंट की बोबनी की हुई शुरुआत, कम लागत में अधिक मुनाफा की वजह से बढ़ा क्रेज

मेंथा यानि पिपरमेंट की खेती के प्रति किसानों का रुझान बढ़ता जा रहा है। कम लागत में होने वाली इस व्यावासायिक फसल से किसानों की आमदनी बढ़ी है। जिससे पिछले एक दशक में बुंदेलखंड में मेंथा की खेती का चलन बढ़ा है।

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पिपरमेंट की खेती

छतरपुर. मेंथा यानि पिपरमेंट की खेती के प्रति किसानों का रुझान बढ़ता जा रहा है। कम लागत में होने वाली इस व्यावासायिक फसल से किसानों की आमदनी बढ़ी है। जिससे पिछले एक दशक में बुंदेलखंड में मेंथा की खेती का चलन बढ़ा है। पिपरमेंट की खेती से आय बढऩे पर जिले के महाराजपुर, गढ़ीमलहरा, लवकुशनगर, गौरिहार, बमीठा, राजनगर, ईशानगर के ग्रामीण अंचलों में पिपरमेंट के प्लांट लग गए हैं। सूखे बुंदेलखंड में लोग अधिक पानी वाली इस फसल को केवल इस लिए उगा रहे हैं क्योंकि उन्हें कम लागत में अच्छा मुनाफा होता है।

गढ़ीमलहरा-महाराजपुर के किसानों की बनी पसंद


जिले में मेंथा की खेती राजनगर गढ़ीमलहरा बिजावर, महाराजपुर, ईशानगर और लवकुशनगर में किसानों द्वारा की जा रही है। खासकर मैथा की खेती की शुरुआत गड़ीमलहरा होना बताया जा रहा है। जिले में मेंथा का सर्वाधिक उत्पादन गढ़ीमलहरा के बाद महाराजपुर और राजनगर में हो रहा है। यहां के किसानों के आर्थिक बदलाव को देखने के बाद अब जिले भर में मेथा की खेती की शुरुआत होने लगी है।

इसलिए बढ़ रहा किसानों का रुझान


बुंदेलखंड में किसानों का लाखों रुपए कर्ज अदा होने के साथ तमाम किसान समृद्ध भी हुए है। इतना ही नहीं कई किसानों ने लाखों रुपए लागत का पिपरमेंट प्लांट भी लगा लिया है। ग्राम डिगरिया निवासी मोहन सिंह यादव के ऊपर भूमि विकास बैंक का पंपिंग सेट मशीन का 50 हजार और साधन सहकारी समिति का 20 हजार रुपए कर्ज था। जिसे पिपरमेंट की खेती करने के बाद चुका दिया। भगवानदास कुशवाहा ने पिपरमेंट की खेती के बाद तीन लाख रुपए जमा करके नया ट्रैक्टर उठा लिया। साथ ही छह लाख रुपए का पिपरमेंट प्लांट भी लगा लिया। सकुन कुशवाहा पर एक लाख रुपए साहूकारों का, 50 हजार रुपए पंपिंग सेट मशीन और 25 हजार रुपए साधन सहकारी समिति का कर्ज था, जिसे अदा कर दिया गया। सुरेंद्र यादव ने पिपरमेंट की कृषि को अपनाकर पांच लाख रुपए का मकान बनवा लिया और बाइक भी खरीद ली। सतीश कुशवाहा ने छह लाख रुपए का पिपरमेंट प्लांट लगा लिया और कर्ज भी अदा कर दिया। दो साल के अंदर पिपरमेंट की खेती से किसान खुशहाल हुए हैं।

कम लागत में अधिक मुनाफा का है गणित


कम लागत में अधिक मुनाफा होने से अब किसानों का रुझान पिपरमेंट की खेती की तरफ तेजी से बढ़ रहा है। हालत यह है कि एक बीघे में 40 हजार रुपए की फसल होती है। जबकि लागत प्रति बीघा 8 हजार रुपए आती है। पिपरमेंट की खेती तीन माह में तैयार हो जाती है। इसमें सबसे ज्यादा पानी की जरूरत पड़ती है। तीन माह में पिपरमेंट की फ सल आ जाने पर किसान खेतों में तीन-तीन फ सल ले रहे हैं। दो फ सल में पिपरमेंट और एक फ सल गेहूं, चने की करते हैं। बारिश और ठंड में पिपरमेंट की फ सल सबसे ज्यादा मुफीद है। किसानों द्वारा गांव-गांव में पिपरमेंट के प्लांट लगा लेने से अब इनका तेल भी गांव में ही खरीदा जाता है।

नकद फसल होने से बढ़ी रुचि


पिपरमेंट के पौधों से निकाले गए तेल को बाजार में चाहे जब बेचकर सीधा नगदी पैसा मिलता है। किसान ने बताया कि पिपरमेंट की अच्छी किस्म की जड़ 900 से 1300 सौ रूपए क्विंटल मिलती है। एक बीघा में 80 किलो जड़ का प्रयोग होता है। यानि चार क्विंटल जड़ में पांच बीघा खेत की लिए पिपरमेंट की जड़ डाली जाएगी। उन्होंने कहा पिपरमेंट का उपयोग कई चीजों में होता है। जिसका सर्वाधिक प्रयोग पान में होता है। किसान ने बताया कि प्लांट के टैंक में एक ट्राली पिपरमेंट (मैंथा) और 50 लीटर पानी को पकाया जाता है। इस दौरान टैंक से भाव के सहारे निकले तेल को एक बर्तन में एकत्रित करते हैं। चार घंटे के अंदर एक ट्राली मेंथा से 25 से 30 लीटर तेल तैयार हो जाता है। बाजार में यह तेल 1200 से 1800 रुपए लीटर बिक जाता है।