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राजीव गांधी ने अर्जुन सिंह से कहा-आरक्षण आंदोलन के छात्र नेताओं को कर दो रिहा, जानिए फिर क्या हुआ था तब

अतीत का झरोखा, पूरे प्रदेश के छात्रों ने अनिश्चितकाल के लिए बंद कर दिए थे कॉलेज  

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Rajiv Gandhi Arjun Singh Reservation Movement Student Leader Released

Rajiv Gandhi Arjun Singh Reservation Movement Student Leader Released

छतरपुर। वर्ष 1983-84 में पूरे मध्यप्रदेश में विश्वविद्यालय और कॉलेज के छात्र-छात्राएं आरक्षण के मुद्दे पर आंदोलन कर रहे थे। पूरे प्रदेश के कॉलेज आरक्षण व्यवस्था के विरोध में अनिश्चितकाल के लिए बंद हो गए थे। छतरपुर का महाराजा कॉलेज अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय का प्रमुख महाविद्यालय हुआ करता था। महाराजा कॉलेज में के छात्र भी आंदोलन के समर्थन में थे,लेकिन छात्रसंघ के अध्यक्ष के नाते मेरा (अशोक नायडू) सोचना था,कि आरक्षण का विरोध करने जब छात्रों के साथ छात्राएं भी आगे आएंगी,तभी आंदोलन किया जाए। जब सारे छात्र-छात्राएं आंदोलन के लिए तैयार हो गए, तो महाराजा कॉलेज के प्राचार्य को हमने छात्रसंघ के फैसले को लिखित में दे दिया। हमने लिखकर दिया कि आंदोलन शांतिपूर्ण तरीके से किया जाएगा और कॉलेज अनिश्चितकाल के लिए बंद हो गया।
पहले बनाया दबाव,फिर धमकाया
आरक्षम के मुझे कांग्रेस नेता सत्यव्रत चतुर्वेदी और छात्र संघ के उपाध्यक्ष देशराजसिंह को शंकर प्रताप सिंह का करीबी माना जाता था। फूलनदेवी और मलखान सिंह को सरेंडर कराने वाले आइपीएस राजेन्द्र चतुर्वेदी छतरपुर के एसपी थे। उन्होंने मुझे और हमारी छात्र संघ के उपाध्यक्ष को बुलाया ,सत्यव्रत चतुर्वेदी और शंकर प्रताप सिंह की ओर से लिखा गया पत्र दिया,जिसे वो हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहे थे,उन्होंने कहा कि अब आप लोग फैसला कर लें। हमने कहा कि हमे छात्रों ने चुना है,हम सबसे पहले उनके लिए जबावदार हैं। यह सुनते ही एसपी ने हमें धमकाया,लेकिन हम नहीं माने और वहां से चले आए।
लड़कियों तक को लाठी से पीटा गया
पुलिस ने आंदोलन कर रहे छात्रों पर लाठिंया बरसाईं,यहां तक कि छात्राओं को लाटी से पीटा गया। मेरा तो पैर ही फैक्चर हो गया था। आंदोलन तो पूरे मध्यप्रदेश में चल रहा था,लेकिन छतरपुर के आंदोलन को बीबीसी ने कवर किया था। हमें प्रसन्नता इसलिए थी,क्योकिं पहली बार न केवल लड़के,लड़कियां बल्कि अभिभावक,व्यापरी,समाजसेवी घर से निकल कर हमारे समर्थन में आए थे। इधर,पुलिस मुझे, राकेश जैन, राजेन्द्र रुसिया,पूर्व मंत्री केदारनाथ रावत के पुत्र विनोद रावत,दिनेश निगम त्यागी,पंकज चतुर्वेदी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। हमें बिजावर के मजिस्ट्रेट के घर पर पेश किया गया,उन्होंने नाराजगी व्यक्तत करते हुए कहा कि अपनी बात रखने के लिए शांतिपूर्ण आंदोलन करना कोई अपराध नहीं है,इन्हें रिहा कर दीजिए। लेकिन वहां मौजूद एसडीओपी ने एसपी से बात करने के बाद मुझे और मेरे दो साथियों को सागर जेल ले भेज दिया,बाकी को ईशानगर थाने में रखा गया।
सागर में राजीव गांधी ने कहा-रिहा कर दो
सागर,जेल में हमें पता चला कि कल राजीव गांधी की सभा है,हमने एक पत्र सागर के छात्रसंघ तक पहुंचाया कि, राजीव गांधी की सभा में लोगों की भीड़ मत जुटने दीजिए,ताकि उन्हें पता चल सके कि, बुंदलेखंड में आरक्षण को लेकर क्या चल रहा है। सागर के छात्र नेताओं ने वही किया भी,सभा स्थल पर पहुंचे,राजीव गांधी ने हैलीकॉप्टर में ही अर्जुन सिंह से पूछा कि लोग क्यों नहीं है। तब अर्जुन सिंह ने आरक्षण आंदोलन की पूरी कहानी बताई। राजीव गांधी ने सभी आंदोलनकारी छात्रों को रिहा करने का आदेश दिया।
्फिर एसपी को हटवाने की चली मुहिम
सागर जेल से रिहा होने के दिन मप्र बंद था,सागर से बड़ामलहरा तक पुलिस की वैन,जिसमें हम बैठे थे,उसके अलावा कोई वाहन सड़क पर नजर नहीं आया था। बड़ामलहरा में लोगों ने हमें देखा,जिसकी सूचना छतरपुर पहुंच गई। हमारे पहुंचने पर छतरपुर में गांधी चौक पर ऐतिहासिक सभा हुई। कदम रखने की जगह भी नहीं थी। अगले दिन एक डेलीगेशन भोपाल गया। मुकेश नायक एनएसयूआई के प्रदेश अध्यक्ष थे। उनसे हम मिले,उन्हें पूरी बात बताई। अगले दिन हम नायक के साथ अर्जुन सिंह से मिले और दो मांगे रखी। पहली छात्रों की सुरक्षा और दूसरी एसपी को हटाया जाए। चूकिं राजेन्द्र चतुर्वेदी की पत्नी राजीव गांधी के साथ एयर होस्टेज रहीं थी, उनके संबंध थे,इसलिए अर्जुन सिंह के सामने समस्या थी कि छतरपुर चार्ज लेगा कौन, तब अनिल एम नवानी राजी हुए। नवानी ने एक तरफा चार्ज लिया और राजेन्द्र चतुर्वेदी पीएचक्यू अटैच किए गए।
(जैसा वरिष्ठ पत्रकार अशोक नायडू ने धर्मेन्द्र सिंह को बताया)