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बुंदेली भाषा के प्रचार प्रसार का दायित्व हम सब पर है: पं धीरेंद्र शास्त्री

  देर रात तक मंच से बिखरती रही बुंदेली माटी की खुशबू

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कार्यक्रम में मौजूद लोग

कार्यक्रम में मौजूद लोग

छतरपुर. बागेश्वर धाम में बुंदेलखंड महाकुंभ चल रहा है। बुंदेलखंड में महाकुंभ हो और बुंदेली की बात ना हो ऐसा भी नहीं हो सकता। महाकुंभ के इस अवसर पर बीती शाम बुंदेली कलाकारों को मंच से सम्मानित किया गया। बुंदेली भाषा के साधकों ने अपनी प्रस्तुतियों से उपस्थित जन समूह को गुदगुदाया और आह्लादित किया। बागेश्वर धाम पीठाधीश्वर पं धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने बुंदेली कलाकारों को सम्मानित करते हुए कहा कि अपनी भाषा की पहचान हर स्तर तक करने की जिम्मेदारी आप सब कलाकारों की है। जिस तरह से अन्य क्षेत्रीय भाषाएं अपना प्रभाव जमाने में कामयाब हुई है इस प्रकार हमें भी अपनी बुन्देली भाषा को चोटी तक पहुंचाना है। सभी मिलकर यह प्रयास करें कि हम बोलचाल में अपनी भाषा को भी प्रमुखता दें।

बागेश्वर धाम के सांस्कृतिक मंच से बुधवार की शाम बुंदेली गीतों, भजनों,नाटकों की अद्भुत प्रस्तुतियां दी गई। बुंदेली कलाकार एवं साहित्यकार राजीव शुक्ला के नेतृत्व में बुंदेलखंड के जाने-माने कलाकारों ने अपनी अपनी प्रस्तुतियां दी। कार्यक्रम की शुरुआत देश विदेश में धूम मचाने वाले बुंदेली माटी के कलाकार आकाश दुबे एवं अवंतिका दुबे के भजनों से हुई। बुंदेलखंड के कम उम्र के प्रसिद्ध पखावज वादक अनमोल द्विवेदी ने अपने दादा अवधेश द्विवेदी के साथ संगत की। कृष्ण मोहन नायक ने बुंदेली गीत सुनाया। वहीं हिमालय यादव हरिया व साथियों ने जीजा आओ रे नाटक की मनमोहक प्रस्तुति दी। वाद्य यंत्र तमूरा के साथ संतोष वासुदेव ने बुंदेली भजन गाकर सबको रोमांचित कर दिया। बागेश्वर धाम पीठाधीश्वर महाराज ने श्री वासुदेव के भजन को दोबारा सुनवाया। इसी क्रम में वंश गोपाल यादव ने आल्हा गायन किया। कक्कू भैया, राजू शुक्ला ने हास्य प्रस्तुतियां दी। बृजेश तिवारी की टीम ने राधा कृष्ण पर आधारित नृत्य नाटिका प्रस्तुत की और बेटू सोनी वह ग्रुप की ओर से भी नृत्य नाटिका प्रस्तुत की गई। इस अवसर पर हरि रंगीला, अंजलि, लवली, कन्दू रैकवार, शिवपूजन अवस्थी, कमल चतुर्वेदी, कालीचरण अनुरागी, नन्ना भैया, विनोद भैया, डॉ रविकांत पाठक आदि ने अपनी प्रस्तुतियां। दी जल पुरुष पद्मश्री उमाशंकर पांडे ने लोगों को जल बचाने का संदेश दिया।

बागेश्वर धाम में इन दिनों धार्मिक आयोजनों की श्रंखला चल रही है। इसी क्रम में युग वक्ता प्रख्यात कवि डॉ. कुमार विश्वास पिछले तीन दिनों से अपने-अपने राम थीम में व्याख्यान दे रहे हैं। व्याख्यान के तीसरे दिवस उन्होंने जीवन का फलसफा सुनाते हुए कहा कि यदि देश में संत नहीं हैं तो उस देश की आत्मा का निर्माण नहीं हो सकता। राजनीतिज्ञ देश की भौगोलिक स्थिति निर्मित कर सकते हैं लेकिन उस देश में आत्मा का सृजन सिर्फ संत कर सकते हैं। कथा के अवसर पर परमपूज्य संजीव कृष्ण महाराज, इंद्रेश जी महाराज, बृजेश महाराज सहित पूज्यवर विशेष रूप से उपस्थित रहे।

अपने-अपने राम रोज की तरह भगवान श्रीराम के विग्रह के सामने दीप प्रज्जवलन के साथ शुरू हुआ। विगत दिवस की भांति डॉ. कुमार विश्वास ने प्रश्नों के उत्तर देने के साथ व्याख्यान की शुरूआत की। उन्होंने कहा कि एक संस्कृति जो अपने पिता को जेल में डालती है वह है और दूसरी संस्कृति जो पिता के वचन को निभाने के लिए बिना एक पल गंवाए वन की ओर निकल जाती है। यह भारत है जहां पुरखों को भी 15 दिनों तक जल समर्पित किया जाता है। उन्होंने भगवान श्रीराम और भरत के अनन्य प्रेम का चित्रण करते हुए कहा कि दोनों सबसे पहले मिलन और प्रणाम को आतुर हैं। भाई भरत चित्रकूट में भगवान श्रीराम को मनाने के दौरान चरण पकडऩा चाहते हैं लेकिन वहीं भरत जैसे चरित्र के लिए भगवान श्रीराम उन्हें हृदय से लगाने के लिए आतुर हैं। उन्होंने कहा कि हमेशा जनमत की बात सत्य नहीं होती लेकिन नीति सदा सत्य होती है। प्रेम करने के बाद पा न सको तो इसमें विफलता नहीं है क्योंकि प्रेम करना ही सफलता है। समाज की सजीवता का प्रतीक प्रेम और विश्वास है।

महापुरूषों की गाथाएं पढ़ें और बच्चों को पढ़ाएं
डॉ. विश्वास ने जनसमूह से कहा कि वे महापुरूषों की गाथाएं पढ़ें और अपने बच्चों को पढ़ाएं, आज के समाज में जिनके बच्चे फिल्म और इसी से जुड़े चरित्रों के पीछे भागते हैं उन्हें रामायण, महाभारत, गीता जैसे ग्रंथों को सुनाना पड़ेगा। सहज और सरल गुरू परंपरा की शिक्षा मिलने से युवा पीढ़ी चरित्रवान बनेगी। जन की भलाई के समान कोई भला कार्य नहीं है। यदि भाई के हित के लिए भाव नहीं बदला तो ऐसे घरों में महाभारत होती है।

मंदिरों के द्वार निराश्रितों, बेसहारों के लिए खुलें: पं. धीरेन्द्र शास्त्री
बागेश्वर धाम पीठाधीश्वर पं. धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ने प्रारंभिक उद्बोधन में कहा कि इस महाकुंभ का उद्देश्य उन गरीब, बेसहारा और निराश्रित बेटियों को नया जीवन देना है साथ ही इस आयोजन से यह संदेश देने का भी प्रयास किया जा रहा है कि मठ मंदिरों में आने वाली दानराशि से निराश्रितों का कल्याण हो। इस राशि से गुरूकुलम, अस्पताल जैसी व्यवस्थाएं निर्मित की जाएं तभी भारत विश्व गुरू बन सकेगा। भगवान श्रीराम के नाम से कौआ और बंदर को भी प्रसिद्धि मिली है भगवान का नाम इतना पावन है कि इसको लेने से कल्याण होता है।