
Security of prisoners is heavy, policemen have to do all the work
छतरपुर. जितनी सेवा हमें इन कैदियों की करनी पड़ती हैं, उतनी अगर माता-पिता की करें तो जीवन सफल है। यह पीड़ा उन पुलिसकर्मियों की हैं, जिनकी ड्यूटी कैदी वार्ड में लगी हैं। जो यहां पहुंचने वाले कैदी के निस्तार कार्य से लेकर भोजन तक की व्यवस्था में लगे नजर आते हैं। दरअसल, जिला अस्पताल के कैदी वार्ड में भर्ती कैदियों की देखरेख के लिए अस्पताल की तरफ से कोई स्टाफ नहीं हैं। जबकि कैदियों के परिजनों को यहां पहुंचने की अनुमति नहीं होती है। ऐसे में कैदियों की देखरेख का पूरा जिम्मा यहां लगे पुलिसकर्मियों पर ही होता हैं। जो अलग-अलग शिफ्टों में यहां ड्यूटी करते हुए कैदियों की भी देखरेख करते हैं। अनेक बार तो उन्हें काफी गंदे कार्य तक करने विवश होना पड़ता हैं।
पत्रिका ने जब कैदी वार्ड के हाल जाने तो वह बेहद की खराब थे। यहां भर्ती हर कैदी मरीज की अलग-अलग आवश्यकता होती हैं। जिससे उन्हें राहत मिल सके। इसके लिए वार्ड में एक वार्ड व्बॉय और स्वीपर होना चाहिए। जो कि कैदियों की नित्यक्रिया से लेकर अन्य कार्यों को कर सकें, लेकिन यहां ऐसी व्यवस्था नहीं हैं। जिससे सभी कार्य इन पुलिसकर्मियों को ही करना पड़ रहे हैं। पुलिसकर्मियों के अनुसार चोटिल कैदियों को तो टॉयलेट तक लाना- लेजाना पड़ता हैं। इसके अलावा दिन-रात उनकी देखभाल करना, दवाइयां देना, भोजन देना, कपड़े बदलना से लेकर अन्य सभी कार्य करने पड़ते हैं। इसके अलावा सुरक्षा का भी ध्यान रखना होता हैं।
कैदी वार्ड के नाम पर स्टाफ कर देता हैं न
पिछले दिनों ही एक तस्वीर सामने आई थी। जिसमें वार्ड व्बॉय की न के बाद जेल से आए पुलिसकर्मी स्वयं ही एक कैदी मरीज को स्ट्रैचर से उठाकर वार्ड तक लाए थे। मामले में बताया गया था कि कैदी वार्ड के नाम पर अस्पताल के स्टाफ द्वारा न में ही जवाब दिया जाता हैं। जिससे मजबूरन जेल से आने वाले पुलिसकर्मियों को ही इनका ख्याल रखना पड़ता हैं। पुलिसकर्मियों के अनुसार के जितनी सेवा हमसे इन कैदियों की कराई जा रही हैं, उतनी हम अपने माता-पिता की भी नहीं कर पाते हैं। इस व्यवस्था में बदलाव होना चाहिए।
Published on:
25 Feb 2020 07:18 am
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