17 दिसंबर 2025,

बुधवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

स्मार्ट क्लास फेल…स्कूलों में इंटरनेट नहीं, 168 स्कूलों के हाईटेक पैनल बंद पड़े, एलईडी बोर्ड भी बेकार हो गए

प्रत्येक पैनल पर 1.20 लाख की लागत से कुल 2.01 करोड़ खर्च किए गए, लेकिन जिन स्कूलों में यह तकनीक पहुंची, वहां जरूरी आधारभूत व्यवस्था इंटरनेट कभी नहीं पहुंच सका।

2 min read
Google source verification
smart class

स्मार्ट क्लास फाइल फोटो

शिक्षा के डिजिटलाइज्ड की दिशा में छतरपुर जिले में भले ही करोड़ों रुपये खर्च कर दिए गए हों, लेकिन जमीनी हकीकत बेहद निराशाजनक है। 168 शासकीय माध्यमिक व हाई स्कूलों में 65 इंच के इंटरेक्टिव एलईडी पैनल तो लगा दिए गए, लेकिन इंटरनेट कनेक्शन न होने के कारण ये बोर्ड बेकार पड़े हैं। न केवल छात्र इससे वंचित हैं, बल्कि शिक्षकों को इसे चलाने का प्रशिक्षण तक नहीं दिया गया।

2.01 करोड़ खर्च किए गए, नतीजा शून्य

प्रत्येक पैनल पर 1.20 लाख की लागत से कुल 2.01 करोड़ खर्च किए गए, लेकिन जिन स्कूलों में यह तकनीक पहुंची, वहां जरूरी आधारभूत व्यवस्था इंटरनेट कभी नहीं पहुंच सका। यही कारण है कि इंटरएक्टिव बोर्ड केवल दीवार पर जड़े डिजिटल पोस्टर बनकर रह गए हैं। 408 छात्रों वाले पहाडग़ांव स्कूल में बोर्ड 2022-23 में लगाया गया था, आज तक उपयोग में नहीं आ पाया। देवरान और ढड़ारी गांव के स्कूलों में भी इंटरनेट की अनुपलब्धता के चलते पैनल कभी नहीं चले।

प्रशिक्षित शिक्षक नहीं, रखरखाव भी नहीं

एलईडी बोर्डों को लेकर दूसरी बड़ी चूक यह रही कि शिक्षकों को संचालन का प्रशिक्षण नहीं दिया गया। कई स्कूलों में मामूली तकनीकी दिक्कत आने पर भी बोर्ड बंद कर दिए गए, क्योंकि उन्हें सुधारने की प्रक्रिया या जिम्मेदार कोई नहीं था। कुछ स्कूलों में शिक्षकों को बोर्ड चलाना आता है, पर वे कहते हैं जब इंटरनेट ही नहीं है, तो क्या चलाएं?

छात्रों को यह मिलता लाभ इन स्मार्ट बोर्डों की खास बात यह थी कि छात्र वीडियो, चित्र और 3डी एनिमेशन के जरिए विषयवस्तु को बेहतर समझ सकते थे। शिक्षक बोर्ड पर इंटरएक्टिव क्विज,वर्चुअल प्रयोग, सीधे एनसीईआरटी कंटेंट चला सकते थे। यह तकनीक कम समय में ज्यादा और प्रभावी शिक्षा देने में मदद कर सकती थी।

ढांचागत प्लानिंग की असफलता

शिक्षा विभाग ने पहले पैनल भेजे, बाद में पूछा इंटरनेट है या नहीं। ये वही स्थिति है जैसे किसी गांव में पानी की टंकी बना दी जाए, लेकिन पाइपलाइन और पानी का इंतज़ाम न हो। स्मार्ट शिक्षा के नाम पर यह पूरा सिस्टम अभी विनियोग पहले, सुविधा बाद में की विफल नीति का उदाहरण है।

जिम्मेदार क्या कह रहे?

आरपी प्रजापति जिला शिक्षा अधिकारी छतरपुर का कहना है मैंने सभी स्कूलों को आदेश दिया है कि वे इंटरनेट कनेक्शन लें। जहां तकनीकी खराबी है, वहां सुधार भी करवाया जाएगा।