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शहर की हवा हो रही प्रदूषित: नियमों को ताक पर रखकर आसपास के गावों में चल रहे ईंट भट्टे

नियमों को दरकिनार कर ईंट भट्टे धड़ल्ले से संचालित हो रहे हैं। इन भट्टों से निकलने वाला जहरीला धुआं न केवल वायुमंडल को प्रदूषित कर रहा है, बल्कि स्थानीय नागरिकों के स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर खतरा बन चुका है।

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eit bhatta

शहर के पास ढडारी में ईट भट्टा

प्रदेश सरकार एक ओर पर्यावरण संरक्षण को लेकर विभिन्न स्तरों पर अभियान चला रही है, वहीं दूसरी ओर ज़मीनी हकीकत इससे बिल्कुल अलग नजर आ रही है। छतरपुर शहर और इसके आसपास के इलाकों में नियमों को दरकिनार कर ईंट भट्टे धड़ल्ले से संचालित हो रहे हैं। इन भट्टों से निकलने वाला जहरीला धुआं न केवल वायुमंडल को प्रदूषित कर रहा है, बल्कि स्थानीय नागरिकों के स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर खतरा बन चुका है।

सरकार की पहल और जमीनी सच्चाई में अंतर

हाल के वर्षों में प्रदेश सरकार ने वायु प्रदूषण को रोकने के लिए कई योजनाओं की शुरुआत की है। इसके तहत प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को सख्त निर्देश दिए गए हैं कि वायु प्रदूषण फैलाने वाले औद्योगिक इकाइयों और वाहनों पर कड़ी कार्रवाई की जाए। लेकिन यह गंभीर सवाल बना हुआ है कि ईंट भट्टों पर अब तक कोई ठोस गाइडलाइन क्यों नहीं लागू की गई? शहर में सागर रोड, महोबा रोड, नारायणपुरा रोड, सौरा रोड, देरी रोड और ढड़ारी जैसे इलाकों में धड़ल्ले से ईंट भट्टे चल रहे हैं। ये भट्टे न केवल पर्यावरण नियमों की अनदेखी कर रहे हैं, बल्कि आवासीय क्षेत्रों के समीप चलकर लोगों की जान से भी खिलवाड़ कर रहे हैं।

5 किलोमीटर के दायरे में नियमों को धता बताते हुए चल रहे हैं भट्टे

एक मोटे अनुमान के अनुसार, शहर के शहरी क्षेत्र में आधा दर्जन से अधिक तथा आसपास के ग्रामीण इलाकों में लगभग दो दर्जन से अधिक ईंट भट्टे संचालित हो रहे हैं। इनमें से अधिकांश भट्टे आवासीय क्षेत्र और सार्वजनिक स्थलों के बेहद नजदीक स्थित हैं। ढड़ारी, ललौनी, गठेवरा क्षेत्रों में खुलेआम नियमों का उल्लंघन कर भट्टे चलाए जा रहे हैं। यहां से उठने वाला काला धुआं आसमान में घुल जाता है, जिससे शहर की हवा की गुणवत्ता खतरनाक स्तर तक गिर जाती है।

स्थानीय लोगों की पीड़ा: हमारी सांसें भी दूषित हो गई हैं

स्थानीय निवासी प्रेमचंद्र साहू, मन्नू साहू और दिनेश कुशवाहा ने बताया कि ईंट भट्टे में कोयले के साथ-साथ रबर के टायर, गीली लकड़ी, बुरादा, नमक और रासायनिक पदार्थों का उपयोग किया जा रहा है, जिससे उठने वाला धुआं जानलेवा साबित हो रहा है।

कस्तूरी अहिरवार और वैभव कुशवाहा बताते हैं कि ईंट भट्टे के कारण स्थानीय लोगों में श्वास संबंधी समस्याएं, आंखों में जलन, घुटन और घबराहट जैसी बीमारियां आम होती जा रही हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि उन्होंने कई बार प्रशासन और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से शिकायतें कीं, लेकिन अब तक न तो कोई जांच हुई और न ही कोई कार्रवाई।

क्या कहता है नियम और कानून?

सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार ईंट भट्टों को आबादी क्षेत्र से बाहर होना अनिवार्य है। भट्टा संचालन के लिए पर्यावरणीय अनुमति और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एनओसी लेना अनिवार्य है। मिट्टी खनन के लिए खनिज विभाग की अनुमति अनिवार्य है। भट्टा किसी स्कूल, अस्पताल, आवासीय बस्ती या नदी के समीप नहीं होना चाहिए। लेकिन इन नियमों की खुलेआम अवहेलना करते हुए कई इलाकों में बिना अनुमति और बिना पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों के ईंट भट्टे संचालित हो रहे हैं।

प्रशासन और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की भूमिका पर उठे सवाल

स्थानीय प्रशासन और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की निष्क्रियता पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। जहां एक ओर विभागीय अधिकारी कागजों पर जागरूकता अभियान चला रहे हैं, वहीं दूसरी ओर जमीन पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है। इससे साफ होता है कि या तो इन भट्टों को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है या फिर प्रशासनिक लापरवाही का नतीजा है।

पत्रिका व्यूइ

स समय सबसे बड़ी आवश्यकता यह है कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड तत्काल जांच शुरू करे और बिना अनुमति व नियमों के विपरीत चल रहे ईंट भट्टों पर कार्रवाई करे। साथ ही, सरकार को भी चाहिए कि वह भट्टों के संचालन के लिए स्पष्ट और कठोर गाइडलाइन बनाए तथा उसका सख्ती से पालन सुनिश्चित करे। जब तक पर्यावरणीय नियमों का पालन नहीं होगा और प्रशासन सख्त कार्रवाई नहीं करेगा, तब तक शहर की हवा और लोगों की सेहत दोनों खतरे में बनी रहेंगी। सरकार की नीतियों की सफलता तभी संभव है जब ज़मीन पर उनका ईमानदारी से क्रियान्वयन हो।

इनका कहना है

ईट भट्टा के लिए अवैध उत्खनन की शिकायतों पर कार्रवाई की जाएगी। नियमों के उल्लंघन पर पहले भी कार्रवाई की गई है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड पर्यावरण नियमों के उल्लंघन पर कार्रवाई करेगा।

अमित मिश्रा, खनिज अधिकारी