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निजी स्कूलों ने ताक पर रखे नियम, कहीं दुकानों में तो कहीं चार कमरों में हो रहे संचालित

बिना निरीक्षण किए ही दे दी मान्यता न खेल का मैदान, न ही बच्चों को बैठने बेहतर व्यवस्था शिक्षा को व्यवसाय बना कर की जा रही कमाई पोर्टल पर डाली मनगढ़ंत जानकारी

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chhatarpur

उन्नत पचौरी
छतरपुर। किसी भी देश के विकास में शिक्षा का स्थान सर्वोपरि होता है। किसी भी धर्म में शिक्षा को भी विशेष स्थान दिया गया है। लेकिन इसी शिक्षा को अधिकांश स्कूलों में अब व्यवसाय में परिवर्तित कर दिया गया है। हालात यह हैं कि शिक्षा कारोबारी धीरे-धीरे पूरे जिले में पैर पसारते जा रहे हैं। इन सब में खास बात यह है कि पोर्टल पर मनगढ़ंतजानकारी फीड़ कर विभाग के साथ धोखाधड़ी की जा रही है। पत्रिका टीम ने पूरे मामले में जब पड़ताल की तो जो सच सामने आया वह चौंकाने वाला था। दरअसल पोर्टल पर दर्ज की गई शिक्षा विभाग की जानकारी में जब कुछ स्कूलों में जाकर देखा तो वहां का जो नजारा था वह पोर्टल से एकदम उलट था। खेल मैदानों व बच्चों के बैठने वाले कक्षों की जानकारी जो पोर्टल पर थी वह पूरी तरह से असत्य पाई गई। जिले में गली कूचों में चाय-पान की दुकानों जैसे स्कूल खोले गए हैं, स्कूलों में सुविधा के नाम पर कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा है। लेकिन फीस भारी भरकम वसूली जा रही है। शहर में खुले १५० से अधिक निजी स्कूलों में से वानगी के तौर पर पत्रिका टीम ने कुछ स्कूलों का जायजा लेकर पोर्टल पर दी गई जानकारी को जांचा तो जो सच सामने आया वह चौंकाने वाला था।

जो पोर्टल पर था वह नहीं मिला -
पत्रिका टीम ने पोर्टल की जानकारी की सत्यता जांचने शहर के कुछ स्कूलों का निरीक्षण किया। शहर के कडा की बरिया के पास स्थित दो निजी स्कूल की पोर्टल पर दर्ज जानकारी देखने पहुंचे। जहां पर देखने मिला की दोनों स्कूल एक की बिल्डिंग में संचालित हो रहे हैं। जबकि संस्थान द्वारा पोर्टल पर अलग-अलग बिल्डिंग और खेल मैदान आदि दर्शाऐ गए हैं। मौके पर देखने मिला कि स्कूल के पास खेल मैदान का अभाव है और यदि स्कूल से लगे प्लॉट को खेल मैदान दर्शाया गया तो उसे व्यवस्थित कर उसका उपयोग क्यों कहीं किया गया। इसी तरह से पठापुर रोड तिराहा से मुक्तीधाम रोड पर स्थित एक निजी स्कूल का जायजा भी लिया तो पता लगा कि यहां भी पोर्टल के अनुसार अनेक कमियां हैं। यहां पर खेल मैदान दर्शाया गया है, जबकि स्कूल के बगल में पडी जगह में गंदगी और नाली का पानी भरा था।

शहर के कडा की बरिया के पास संचालित स्कूल के प्रधानाचार्य वीरेंद्र पाठक से सीधी बात-
रिपोर्टर -आपके यहां स्कूल में खेल मैदान नहीं है।
प्रधानाचार्य - स्कूल में खेल मैदान है, स्कूल के पास में ही है।
रिपोर्टर- पत्रिका टीम गई थी तो देखा कि स्कूल में कहीं भी खेल मैदान नहीं है।
प्रधानाचार्य - स्कूल के बाजू से जो प्लाट पड़ा है वहीं खेल मैदान है।
रिपोर्टर- आपके यहां पर की बिल्डिंग में दो स्कूल चल रहे हैं
प्रधानाचार्य - हां लेकिन दोनों स्कूलों का समय अलग अलग है।
(यह कहकर फोन काट दिया)

पालकों से अधिक फीस, शिक्षकों को वेतन कम
निजी शालाओं में पालकों से 100 रुपए से लेकर 1700 रुपए तक प्रत्येक विद्यार्थियों से मासिक शुल्क वसूला जा रहा है। लेकिन ऐसे स्कूलों में आरटीई के मापदंड के अनुरूप शिक्षक नहीं हैं। जानकारी के अनुसार निजी शालाओं में न्यूनतम 8 सौ रुपए से अधिकतम 5 हजार रुपए तक मासिक पगार दी जा रही है। लिहाजा अल्प वेतनमान पर डीएड, बीएड जैसे योग्यताधारी शिक्षक नहीं मिलते। नगर के निजी स्कूलों में शिक्षकों को केवल 10 महीने का अल्प वेतनमान दिया जा रहा है और पालकों से बच्चों की 12 महीने की फीस वसूली जा रही है।

रैंप- रेलिंग नहीं
निजी स्कूलों में आरटीई के मापदंड के अनुरूप नि:शक्त बच्चों के लिए रैंप-रेलिंग की व्यवस्था नहीं है। नगर के कई नामी-गिरामी निजी स्कूल के भवनों में नि:शक्त बच्चों की जरूरी आवश्यकताओं के लिए यह सुविधा नहीं है। इसके अलावा विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए कमोड सिस्टम के शौचालय भी नहीं है। बावजूद इन्हें मान्यता मिली हुई है।

रहवासी मकानों में चल रहे स्कूल
नगर के कई निजी स्कूल ऐसे हैं जो रहवासी मकानों में संचालित किए जा रहे हैं। महज 15 सौ से 2 हजार वर्ग फुट के मकानों में विगत कई वर्षो से प्राथमिक शालाएं संचालित की जा रही है। ऐसे स्कूलों में बच्चों के लिए आरटीई के मापदंड के अनुरूप न ही पर्याप्त कमरे हैं और न कमरों का आकार मापदंड के अनुरूप है। खेल मैदान के लिए भी विद्यार्थियों को तरसना पड़ रहा है।

50 से 100 विद्यार्थियों को पढ़ा रहे एक शिक्षक
नगर के निजी स्कूलों में 50 से 100 विद्यार्थियों को एक शिक्षक पढ़ा रहे हैं। आरटीई के मापदंड के अनुरूप 30 विद्यार्थी पर एक शिक्षक जरूरी है। एक शिक्षक के भरोसे 30 से अधिक विद्यार्थियों की कक्षाएं ली जा रही है।

राजनीतिक पार्टियों से जुड़े हैं निजी स्कूलों के संचालक
ज्यादातर निजी स्कूलों के संचालक किसी न किसी राजनीतिक पार्टी से जुड़े हुए हैं। इससे कई तरह के लाभ हैं। राजनीतिक पहुंच होने की वजह से अधिकारी ऐसे स्कूलों का निरीक्षण कर वास्तविकता जानने का प्रयास नहीं करते। दूसरी ओर शासन से विभिन्न तरह से अनुदान लेने स्कूल के लिए धन बटोरते हैं। ऐसे स्कूलों के विरुद्ध कोई शासकीय सेवारत पालक आवाज उठता है तो उसे राजनीतिक रूप से दबाने का प्रयास किया जाता है।

दुकानों में चल रहे स्कूल
शहर के अभी तक छोटे छोटे मकानों में स्कूल चलाए जा रहे थे लेकिन अब स्कूल संचालकों और अधिकारियों की मिलीभगत से सटर लगी दुकानों में स्कूलों का संचालन किया जा रहा है। लेकिन इस ओर अधिकारियों द्वारा ध्यान भी नहीं दिया जा रहा है।

फैक्ट फाइल
- जिले में संचालित निजी स्कूल
- कक्षा १-५ तक - ८४
- कक्षा १-८ तक - ६०९
- कक्षा १-१० तक - ७८
- कक्षा १-१२ तक - ६६
- कक्षा ६-१० तक - ३
- कक्षा ६-१२ तक - ९
- कक्षा ९-१२ तक - १९६
- कक्षा ९-१० तक - १५



जिस स्कूल में सभी व्यवस्थाएं नहीं हैं तो उनका नोटिस देकर व्यवस्थित करने के लिए कहा जाएगा। अगर फिर भी कोई सुधार नहीं होता है तो कार्रवाई की जाएगी और मान्यता निलंबित की जाएगी।
एसके शर्मा डीईओ छतरपुर