
नकली घी बनाने की फाइल फोटो
छतरपुर/ नौगांव. नौगांव और उसके आसपास के क्षेत्रों में नकली घी की बड़े पैमाने पर सप्लाई हो रही है, जिसमें चर्बी से बने घी का भी प्रयोग हो रहा है। इस गंभीर मुद्दे पर विभागीय अधिकारियों की उदासीनता और निगरानी की कमी के कारण नकली घी का व्यापार बेरोकटोक जारी है। झांसी, उत्तर प्रदेश के माफियाओं के तार नौगांव के कुछ व्यापारियों से जुड़े हुए हैं, जो नकली घी बनाकर उसे स्थानीय बाजार में बेच रहे हैं। ये माफिया न केवल इंसान बल्कि भगवान से भी धोखा करने से झिझक नहीं रहे हैं। पूजा के घी के नाम पर चर्बी वाला सस्ता घी बाजार में खपा रहे हैं।
विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में मिलावटी घी की सप्लाई ज्यादा हो रही है, जिसे झांसी से नौगांव लाया जाता है और फिर थोक विक्रेताओं के जरिए फुटकर दुकानों पर बेचा जाता है। बताया जा रहा है कि इस घी की लागत मात्र 60 से 100 रुपए प्रति किलो आती है और इसे थोक में 180-200 रुपए में बेचा जाता है। फिर फुटकर दुकानदार इसे 250-300 रुपए में बेचते हैं, जबकि असली घी की कीमत 600-700 रुपए प्रति किलो होती है।
यह नकली घी न केवल इंसानों के लिए हानिकारक है, बल्कि इसे धार्मिक कार्यों और भगवान के प्रसाद के रूप में भी बेचा जा रहा है। सस्ते दामों में भगवान के लिए भी नकली घी का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिससे न केवल धार्मिक भावनाओं का अपमान हो रहा है बल्कि स्वास्थ्य पर भी गंभीर प्रभाव पड़ रहा है।
पेथोलॉजिस्ट डॉ. श्वेता गर्ग का कहना है कि नकली घी में पाम ऑयल, वनस्पति तेल, और अन्य हानिकारक पदार्थ मिलाए जाते हैं, जिससे किडनी, लीवर, और दिल पर बुरा असर पड़ सकता है। इस घी के सेवन से लोगों के स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान हो सकता है और यह समस्या तेजी से ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में फैल रही है।
मिलावटखोरों के हौसले इसलिए भी बुलंद हैं क्योंकि विभागीय अधिकारी इस पर ठोस कार्रवाई करने में नाकाम रहे हैं। लोगों का कहना है कि अगर अधिकारियों में नैतिकता और जिम्मेदारी होती, तो अब तक इस समस्या पर सख्त कार्रवाई हो चुकी होती। बेलाताल रोड टंकी के पास और कुछ अन्य स्थानों पर नकली घी बनाने के ठिकानों की चर्चा है, लेकिन प्रशासनिक उदासीनता के कारण यह धंधा दिन-ब-दिन फल-फूल रहा है।
नकली घी का यह धंधा न केवल स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, बल्कि यह धार्मिक भावनाओं और सामाजिक नैतिकता पर भी प्रहार है। प्रशासन को जल्द से जल्द ठोस कदम उठाने की जरूरत है, ताकि लोगों की जानमाल और विश्वास की रक्षा हो सके। मिलावट को रोकने के लिए सरकार, उपभोक्ताओं, और व्यापारियों को मिलकर ठोस कदम उठाने की जरूरत है। सरकार को नियमित रूप से खाद्य उत्पादों की जांच करनी चाहिए। फूड इंस्पेक्टर्स और लैबोरेटरी टेस्टिंग के जरिए बाजार में उपलब्ध उत्पादों की गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सकती है। मिलावटी उत्पाद बेचने वाले व्यापारियों के खिलाफ नियमित रूप से छापेमारी अभियान चलाया जाना चाहिए और उनके उत्पादों की जांच की जानी चाहिए।
घी की मात्रा बढ़ाने या उसकी लागत कम करने के लिए इसमें सस्ते या कम गुणवत्ता वाले पदार्थ मिलाए जाते हैं। इसमें वनस्पति तेल, पिघला हुआ मक्खन, वनस्पति, एनिमल फैट और हाइड्रोजनेटेड ऑयल आदि की मिलावट की जाती है। ये पदार्थ हानिकारक हो सकते हैं और इनमें शुद्ध घी के समान पोषण मूल्य या स्वाद नहीं होता है। इस बात से कोई अनजान नहीं है कि घी मी पशुओं की चर्बी मिक्स होती है। उदाहरण के लिए, घी की मात्रा बढ़ाने ने के लिए पिघला हुआ मक्खन यानी एक प्रकार का एनिमल फैट मिलाया जा सकता है। इससे घी की गुणवत्ता, शुद्धता, स्वाद और पोषण में गिरावट आ सकती है।
एफएसएसआई के अनुसार, एक टेस्ट ट्यूब में लगभग एक चम्मच पिघला हुआ घी और समान मात्रा में हाइड्रोक्लोरिक एसिड लें, इसमें एक चुटकी चीनी मिलाएं। एक मिनट तक हिलाएं और पांच मिनट तक रहने दें। थोड़ी देर बाद आपको वनस्पति या मार्जरीन के निचले हिस्से में आपको लाल रंग का दिखने लगेगा।
मिलावटी खाद्य सामग्री की समय समय पर जांच की जाती है। आपके द्वारा मिली जानकारी के आधार पर जल्द ही नकली घी बनाने और बेचने वालों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।
वंदना जैन, फूड इंस्पेक्टर
Published on:
11 Oct 2024 10:39 am
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