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मवेशियों में फैल रहा गलघोटू और एकटंगिया रोग

मानसूनी बारिश शुरू होते ही गो-भैंस वंशीय मवेशी गलघोटू और एकटंगिया रोग के शिकार होने लगे हैं।

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Mantosh Kumar Singh

Jul 03, 2017

Gathering of cattle

Gathering of cattle

छिंदवाड़ा . मानसूनी बारिश शुरू होते ही गो-भैंस वंशीय मवेशी गलघोटू और एकटंगिया रोग के शिकार होने लगे हैं। पशु चिकित्सा विभाग द्वारा टीके गांव-गांव पहुंचाए गए हैं, लेकिन स्थानीय कर्मचारियों द्वारा मवेशियों को टीके न लगाए जाने से स्थिति बिगड़ रही है। पशु अस्पतालों में मवेशियों को लेकर ग्रामीणजन इलाज के लिए पहुंच रहे हैं। पशु चिकित्सक भी ग्रामीणों को इन बीमारियों के लक्षण बताते हुए तुरंत टीकाकरण कराने की सलाह दे रहे हैं।

बारिश के मौसम में इन दोनों बीमारी के वायरस मवेशियों में सक्रिय हो जाते हैं। ये संक्रामक होने से तेजी से एक-दूसरे मवेशी पर फैलती है। बीमारी में मवेशी खाना बंद कर देता है और कराहता है। समुचित इलाज न मिलने पर मवेशियों की मौत हो जाती है।

इन अकाल मौतों को रोकने के लिए पशु चिकित्सा विभाग ने जून माह में बचाव के टीके ग्रामीण इलाकों में पहुंचाए हैं। ये टीके बड़ी मात्रा में अस्पतालों में रखे हुए हैं। उधर, टीके न लगाए जाने से मवेशी बीमार हो रहे हंै। छिंदवाड़ा शहर से लगे साबलेवाड़ी और बरारीपुरा के पशु पालकों ने खुद यह शिकायत की। शहर के आसपास यह स्थिति बन रही है तो सुदूर ग्रामीण इलाकों का अंदाजा लगाया जा सकता है।

ये है गलघोटू बीमारी
कारण- मवेशियों में यह बीमारी पाश्चुरालमल्टोसिडा जीवाणु के कारण होती है। इलाज न कराने पर 48 घंटे में मवेशी मर भी सकता है।
लक्षण- मवेशियों में तेज बुखार, गले में सूजन, नाक से पानी, मुंह से लार, आंखें लाल, पतले दस्त, सर्दी-खांसी।
उपचार- एेसे लक्षण दिखाई देने पर पशु चिकित्सालय पहुंचकर डॉक्टरी सहायता ली जाना चाहिए।

ये है एकटंगिया बीमारी
कारण- यह दो साल तक के मवेशियों में क्लासीडियम शोवाय नाम के जीवाणु के कारण होती है। यह संक्रामक होने से तेजी से फैलती है।

लक्षण- तेज बुखार के साथ पिछले पैर से लंगड़ाता है। पैर में तकलीफ होती है। पुट्ठे या ऊपर सूजन आती है।
उपचार- पशु चिकित्सालय में सम्पर्क कर टीकाकरण कराया जाए तो इसका इलाज सम्भव है।

जिलेभर के पशु चिकित्सालयों में बचाव के टीके उपलब्ध कराए गए हैं और उन्हें लगाने के निर्देश भी जारी किए गए। ये मौसम मवेशियों के बीमारी होने का है। पशुपालकों को सतर्क रहना चाहिए।
डॉ.विश्वजीत भौसीकर, पशु चिकि त्सा विशेषज्ञ

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