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सिर्फ स्वच्छता सर्वेक्षण तक सीमित न हो सफाई

केवल सरकारी तंत्र से ही स्वच्छता संभव नहीं है। आम जनता को भी अपनी सहभागिता दिखानी होगी।

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स्वच्छता सर्वेक्षण-2022 के नतीजे आने के बाद मध्यप्रदेश के कई जिलों में सफाई की दौड़ धीमी हो गई है। छिंदवाड़ा इसका साक्षात उदाहरण है, जहां आयुक्त की ओर से किए गए दो वार्डों के औचक निरीक्षण में 27 सफाई कर्मचारी गायब मिले। इनमें दो कर्मचारी तो लगातार 10 दिन से ड्यूटी से नदारद पाए गए। केवल छिंदवाड़ा ही नहीं प्रदेश के अधिकांश शहरों में ऐसी ही स्थिति बनने लगी है। किसी भी शहर में स्वच्छता सर्वेक्षण-2023 को लेकर गंभीरता दिखाई नहीं दे रही है। इनमें निरीक्षण में कई तरह की खामियां नजर आ रही हैं।
सूखे और गीले कचरे का संग्रहण अलग-अलग नहीं हो रहा है। कई जगह कचरा संग्रहण वाले वाहन कंडम हो गए हैं। शहरों में नवाचार भी नजर नहीं आ रहे हैं। कॉलोनियों, सडक़ों, सार्वजनिक स्थानों और पार्कों की सफाई व्यवस्था उम्दा नहीं रही। लापरवाही की वजह से जगह-जगह गंदगी देखने को मिल रही है। आवारा पशु सडक़ों पर घूमते हुए नजर आ रहे हैं। शासन-प्रशासन और निकायों को समझना होगा कि स्वच्छता सिर्फ सर्वेक्षण और अवार्ड के लिए और केवल उस कालखंड के लिए सीमित नहीं रखनी चाहिए। सफाई हमारे सुकून और स्वास्थ्य के लिए हो। ऐसा इसे सतत रखकर ही संभव हो सकता है। इसलिए वे अपनी कमियां तुरंत दूर करें। कंडम वाहन और कमजोर व्यवस्था भी सुधारें। सरकार भी उनका ध्यान दे और उनके वित्तीय संसाधनों को समृद्ध करने में सहयोग प्रदान करे, ताकि सफाई की व्यवस्था धन के अभाव में पटरी से न उतरे।
रैंकिंग में प्रतिष्ठित और सम्मानजनक स्थान हासिल करने वाले शहरों में भी अभी और सुधार की गुंजाइश है। जिनके हाथ निराशा लगी है, उन्हें आशा के साथ आगे बढऩा है। उन्हें देखना है कि आखिरकार कहां चूक हो गई? कौन सी कमियां रह गईं? किन कसौटियों पर पिछड़ गए? तभी उनकी स्थिति में सुधार होगा और शहर स्वच्छ नजर आएंगे। सुधार जनता को भी करना होगा, जिसमें अब जागरूकता और जुनून की कमी देखने को मिल रही है। लोगों को समझना होगा कि स्वच्छता केवल सरकारी तंत्र से ही संभव नहीं है। उन्हें सहभागिता दिखानी होगी? स्वच्छता को नौतिक कत्र्तव्य मानते हुए इसे दिनचर्या ही नहीं जीवनचर्या का हिस्सा बनाना होगा। स्वच्छता को आदत में शामिल करना होगा, तभी स्वच्छता सर्वेक्षण का असल मकसद वास्तविक रूप में पूर्ण हो पाएगा।