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सन्निकट मानसून में भारी न पड़ जाए नगरीय निकाय क्षेत्रों में अधूरी तैयारी

बारिश से शहरी क्षेत्रों मेें निपटने की तैयारी अधूरी है। नगरीय निकायों की लापरवाही से कई शहर संकट की आशंका से घिरे हुए हैं।

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मध्य प्रदेश में मानसून जल्द दस्तक देने वाला है। बारिश की उम्मीद से जहां किसानों और आम लोगों को राहत की आस है, वहीं नगरीय निकायों की तैयारी अधूरी नजर आ रही है। हर साल की तरह इस बार भी जलभराव और बाढ़ की आशंका शहरों और कस्बों पर मंडरा रही है। प्रदेश के नगरीय क्षेत्रों में मानसून के दौरान हर साल जलभराव, बाढ़ और बीमारियों की समस्या विकराल हो जाती है। निचली बस्तियां डूब जाती हैं, सडक़ें तालाब बन जाती हैं और सीवर व्यवस्था जवाब दे जाती है।

मौसम विभाग के मुताबिक इसी सप्ताह के बाद मानसून आने की संभावना है, लेकिन राज्य के ज्यादातर नगरीय निकायों में अब तक नालों की सफाई अधूरी है। इंदौर, भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर जैसे बड़े शहरों में ड्रैनेज व्यवस्था पहले से जर्जर है। छोटे कस्बों में तो हाल और भी खराब हैं, जहां नालों पर अतिक्रमण, कचरे का अंबार और अव्यवस्थित सीवर व्यवस्था बारिश के पानी के निकलने का रास्ता ही बंद कर देते हैं। हर साल मई में नगरीय प्रशासन को युद्धस्तर पर सफाई और मरम्मत के काम पूरे करने चाहिए, लेकिन इस बार भी अधिकांश जगहों पर यह काम या तो कागजों में हुआ है या आधा-अधूरा छोड़ दिया गया है।

मानसून के पानी से निपटने के लिए सिर्फ नालों की सफाई ही नहीं, बल्कि निचली बस्तियों की पहचान, जल भराव वाले क्षेत्रों में अतिरिक्त पंप लगाने, हेल्पलाइन जारी करने और स्वास्थ्य विभाग को पहले से सजग करने जैसे इंतजाम करने जरूरी होते हैं। इन पर ध्यान न दिया जाए, तो जब बरसात आती है, तब पूरा शहर अस्त-व्यस्त हो जाता है। नतीजा यह होता है कि हल्की सी बारिश में भी गलियां और मुख्य सडक़ें डूब जाती हैं। प्रशासनिक अमला जागता है तब तक स्थिति बिगड़ चुकी होती है। इससे न केवल यातायात बाधित होता है, बल्कि बिजली के पोल, खुले तार और गड्ढों में गिरकर हादसे भी हो जाते हैं।

मानसून में गंदा पानी रुकने से मच्छर पनपते हैं, जो डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया जैसी बीमारियों को जन्म देते हैं। अभी भी स्थिति कुछ ऐसी ही है, जिसका समाधान निकायों को प्राथमिकता से करना होगा, अन्यथा मानसून में शहर कस्बों को बड़ी दुश्वारियां झेलनी पड़ंगी।। जनता की भूमिका भी अहम है। नालियों में कचरा न डालना, अपने मोहल्ले में सफाई रखना और जलभराव की सूचना प्रशासन तक पहुंचाना, ये सब छोटे-छोटे कदम हैं, जिनसे बड़ी समस्या टाली जा सकती है।