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Patalkot Valley: तीन हजार फीट नीचे बसे है 32 गांव, यहां कोरोना भी नहीं पहुंच पाया

Patalkot Valley: मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में है पातालकोट में हैं 32 गांव, जमीन के नीचे बसे इस गांव में सूरज की रोशनी भी नहीं पहुंच पाती...।

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Patalkot Valley

 

Patalkot Valley: कोरोना संक्रमण से पूरी दुनिया दहशत में थी। रेमडेसिविर इंजेक्शन और फैबिफ्लू जैसी दवाओं के लिए लोग भटक रहे थे। जीवन बचाने के लिए ऑक्सीजन तलाशी जा रही थी। अस्पतालों में मरीजों के लिए और श्मशान में शव के लिए जगह नहीं थी। कोरोना की पहली लहर से ज्यादा भयावह दूसरी लहर थी। जिले के भीतर ही सैकड़ों लोगों की मौत कोरोना से हुई, लेकिन इस बुरे दौर में भी पातालकोट के लोग सामान्य दिनों की तरह ही जिंदगी गुजार रहे थे।

 

छिंदवाड़ा जिला मुख्यालय से 80 किमी दूर तामिया ब्लॉक में बसे पातालकोट की यह हकीकत आज सभी को आश्चर्यचकित कर रही है। तामिया ब्लॉक मुख्यालय से पातालकोट की दूरी 20 किमी है। पातालकोट एक ऐसी जगह जहां दोपहर 12 बजे सूरज की रोशनी पहुंचती है। यहां कुल 12 गांव हैं जिनमें भारिया और गौंड समाज के परिवार निवास करते हैं। सबसे खास बात यह है कि पातालकोट के 12 गांव के इन आदिवासियों का कोरोना कुछ भी नहीं बिगाड़ पाया। दोनों लहर का इन पर कोई असर नहीं हुआ।

इसके पीछे की वजह यहां के लोगों का खानपान और रहन सहन रहा है। प्रकृति की गोद में बसे पातालकोट के निवासी खाने में कोदो कुटकी, सवा और महुआ का इस्तेमाल करते हैं। कंद-मूल और जड़ी बूटियों इनकी रोजमर्रा की जिंदगी में शामिल है। यही वजह है कि पातालकोट के निवासियों को कोरोना छू भी नहीं पाया है।


आधुनिक दुनिया से कोसों दूर

पातालकोट के निवासी आधुनिक दुनिया से कोसों दूर हैं। बीमार होने पर जंगल से जड़ी-बूटी लेकर आते हैं और उसी से इलाज करते हैं। रहन-सहन भी सामान्य ही है। मिट्टी की दीवारें और छत पर कबेलू, कुछ मकानों में पलाश के पत्तों का इस्तेमाल किया गया है। घरों को गाय के गोबर से लीपा जाता है। रासायनिक खाद अभी तक यहां की जमीन पर नहीं पड़ा है। पातालकोट के निवासियों का रहन-सहन और खान-पान की वजह से उनकी इम्यूनिट शहर के लोगों से कहीं ज्यादा है। कोरोना संक्रमण के दौरान भी बाहर से कई लोग पातालकोट पहुंचे, लेकिन गांव के लोग संक्रमित नहीं हुए। कोरोना के दौरान भी लोगों की जीवन शैली सामान्य दिनों की तरह ही थी।

इनका कहना है

हम कंद-मूल, आम की रोटी, महुआ का पैजा, भाजी खाते हैं। जंगल से लाई गई जड़ी-बूटी इस्तेमाल करते हैं। कोरोना की दहशत के बीच कई लोग यहां दवा लेने के लिए आते थे, लेकिन हमारे पातालकोट में कोई संक्रमित नहीं हुआ।

-सदीलाल भारती, निवासी, रातेड़ कारेआम

Photo Gallery: देखें कैसे बंद हुआ 'पातालकोट' का द्वार