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इस शिव मंदिर में हमेशा बहती है जलधारा, पानी कहां से आता है कोई खोज नहीं पाया, कई मान्यताएं भी

इस मंदिर में सभी की मनोकामना पूरी होती हैं।

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इस शिव मंदिर में हमेशा बहती है जलधारा, पानी कहां से आता है कोई खोज नहीं पाया, कई मान्यताएं भी

इस शिव मंदिर में हमेशा बहती है जलधारा, पानी कहां से आता है कोई खोज नहीं पाया, कई मान्यताएं भी

छिंदवाड़ा. जिले के जुन्नारदेव विकासखंड अंतर्गत ग्राम पंचायत विशाला में स्थित प्राचीन मंदिर भगवान शिव की नगरी के नाम से विख्यात है। सतपुड़ा पर्वतमाला की पहाड़ियों और जंगलों के निकट बसे इस क्षेत्र में हर दिन सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु दूर-दूर से पहुंचते हैं। यहां के मंदिरों में वर्तमान में आठवीं पीढ़ी लगातार सेवाएं दे रही हैं। प्राचीन मंदिर के पुजारियों ने बताया कि प्रतिवर्ष मंदिर परिसर में महाशिवरात्रि, मकर संक्राति, कार्तिक पूर्णिमा पर मेला लगता है। आठवीं पीढ़ी के कैलाश चौहान ने बताया कि राक्षस भस्मासुर को ब्रम्हा जी वरदान मिला था कि वह जिसके सिर हाथ रखेगा, वह वहीं भस्म हो जाएगा। इस वरदान के अहम से राक्षस भगवान शिव के पीछे पड़ गया, जिससे बचने के लिए भगवान शिव ने पहली बार वृक्ष के रूप में कदम रखा था। तब से इस क्षेत्र को पहली पायरी के नाम से जाना जाता है, ऐसी मान्यता है।

पुजारी चौहान ने बताया कि राक्षस भस्मासुर पीछा करते हुए यहां भी पहुंचा, फिर यहां से भगवान शिव पैदल सतघघरी होते हुए गोरखनाथ, भूरा भगत से हिवर पहुंचे तथा जटा शंकर में जटा फैलाया। उसी समय भगवान विष्णु ने एक सुंदर स्त्री रूप धारण कर राक्षस भस्मासुर को उसके ही वरदान के प्रयोग से भस्म कर दिया।

निरंतर बह रही जलधारा, ज्ञात नहीं स्रोत
पहाड़ियों पर स्थित भगवान शिव मंदिर में वर्षों से निरंतर जलधारा प्रवाहित हो रही है। यहां का जल कभी सूखता नहीं है तथा इसके स्रोत का भी कोई पता नहीं लगा पाया है। मान्यता है कि जलधारा के पानी से कई तरह के रोग ठीक होते हैं। महाशिव रात्रि पर प्रतिवर्ष पंचमढ़ी के चौरागड़ में विशाल मेला भरता है, जिसमें कई श्रद्धालु पहली पायरी से पैदल यात्रा शुरू करते है तथा करीब 30 किमी पैदल चलकर चौरागड़ की पहाड़ी पर भगवान शिव के दर्शन करते हैं।

बाबा रामचरण दास, पुजारी का कहना है की वर्षों बीत गए मंदिर की स्थापना के इस मंदिर में सभी की मनोकामना पूरी होती हैं। भगवान शिव की अंखड ज्योति जल रही है तथा जल प्रवाहित हो रहा है। गुरु की समाधि के उपरांत उन्हें सेवा का अवसर मिला है। महाराज भसखू, पुजारी ने बताया हमारे पूर्वजों ने पहाडिय़ों से प्रवाहित हो रही जलधारा के स्रोत को जानने का प्रयास किया, पर वे पता नहीं लगा पाए। माना जाता है कि महादेव, अन्होनी, सप्तधारा, देनवा नदी का पानी यहां आता है।