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मांग से ज्यादा यूरिया की खपत

इस साल जिले में यूरिया की खपत सबसे ज्यादा हो रही है। इस बार कृषि विभाग ने  21 हजार 500 मीट्रिक टन यूरिया की डिमांड की थी जबकि विपणन संघ के गोदामों से 37 हजार मीट्रिक टन खाद निकल चुका है।

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Mantosh Kumar Singh

Jul 25, 2016

harda

machine is easy to spray urea

छिंदवाड़ा
. इस साल जिले में यूरिया की खपत सबसे ज्यादा हो रही है। इस बार कृषि विभाग ने 21 हजार 500 मीट्रिक टन यूरिया की डिमांड की थी जबकि विपणन संघ के गोदामों से 37 हजार मीट्रिक टन खाद निकल चुका है। ये तो सिर्फ सरकारी गोदामों के आंकड़े हैं। इसके अलावा खाद बीज की दुकानों से जो यूरिया किसानों ने खरीदा वो अलग। किसान सबसे ज्यादा यूरिया की डिमांड ही कर रहे हैं। इसके विपरीत जिंक और सल्फर कम की मांग बेहद कम है।


दो साल पहले जिले में यूरिया को लेकर मारामारी की स्थिति थी। इस बार जिले में यूरिया की आवक जरूरत से ज्यादा है। प्रशासन और कृषि विभाग के अधिकारी राहत महसूस कर रहे हैं लेकिन अधिकारियों और वैज्ञानिकों की मानें तो ये फसलों और जमीन दोनों के लिए नुकसानदेह है।


जिले में खेती की जमीन की जांच के आंकड़े भी यही बताते हैं कि खेतों की मिट्टी के परीक्षण में आने वाले 100 नमूनों में से औसतन 40 में पोटाश की कमी पाई गई है। 30 प्रतिशत खेतों में जिंक की कमी मिली है। गोबर खाद से जिंक की कमी की पूर्ति हो सकती है। बाहरी उर्वकर के रूप में भी इसे इस्तेमाल किया जा सकता है इसके लिए एनपीके डालना जरूरी है लेकिन किसान इसे बहुत कम मात्रा में खेतों में डाल रहे हैं।


यूरिया का ज्यादा उपयोग बिगाड़ रहा उर्वरकों का संतुलन

डिमांड थी 21 हजार 500

मीट्रिक टन यूरिया की

गोदामों से निकल चुका है

37 हजार मीट्रिक टन खाद

सबसे ज्यादा मांग यूरिया की, जिंक और सल्फर को नहीं मिल रही प्राथमिकता


एनपीके की डिमांड इस बार 4800 मीट्रिक टन थी लेकिन गोदामों से सिर्फ 1300 मीट्रिक टन यह उर्वरक उठा है। पोटाश की मांग इस बार सिर्फ 3 हजार मीट्रिक टन की ही रही।


इसलिए जरूरी है जिंक और पोटास

पौधों की पत्तियों में लाल-पीलापन ज्यादा पानी भराव होने के कारण भी होता है लेकिन यदि उर्वरकों की मात्रा संतुलित हो तो फसलों को नुकसान कम होता है। जिंक पौधों में रिप्रोडक्शन सिस्टम को बढि़या बनाए रखते हैं इससे बीज भी अच्छी गुणवत्ता का होता है।

धीरज ठाकुर,
एसडीओ, कृषि विभाग

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