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चमत्कार: कागज की तरह हल्का और पानी में तैरता है ये पत्थर, अब वैज्ञानिक करेंगे खोज

- शहर की धरमटेकड़ी पर युवक को मिला अजीबो-गरीब पत्थर- लोगों के बीच बना है चर्चा का विषय- रहस्यों को जानने की कोशिशें जारी

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छिंदवाड़ा। दिखने में करीब दो किलो से अधिक वजन वाला एक पत्थर जो कागज की तरह हल्का है। पानी में डालने पर तैरता है। लोगों के लिए यह पत्थर जिज्ञासा का केन्द्र बना हुआ है। शहर की धरमटेकड़ी पर मिला यह पत्थर असाधारण है। आखिर पानी में किस वजह से तैर रहा है इसके रहस्यों को जानने की कोशिशें जारी है।

मार्निंगवॉक के दौरान मिला पत्थर

शहर की श्रीवास्तव कॉलोनी में रहने वाले संतोष मस्तकार अपने दोस्तों के साथ धरमटेकड़ी में पिछले आठ साल से मार्निंगवॉक करने जाते हैं। करीब दो माह पहले वे लोग जहां खड़े रहते हैं वहां पथर पड़ा था, जिसे उन्होंने पैर से धकेला तो वह काफी दूर तक चला गया। उन्हें संदेह हुआ कि इतना बड़ा पथर धकेलने पर इतनी दूर कैसे चला गया, लेकिन उन्होंने इस बात को गंभीरता से नहीं लिया।

पानी में डालने पर तैरने लगा पत्थर

दो दिन बाद संतोष ने पत्थर को उठाया तो वह कागज की तरह हल्का लगा। घर लाकर पानी में डाला तो तैरने लगा। कृषि विभाग के अधिकारियों के पास लेकर पहुंचे तो वह भी कुछ नहीं बता पाए। बुधवार को उन्हें किसी ने सलाह दी कि पत्थर लेकर जिला पंचायत पहुंचे। युवक पत्थर लेकर वहां पहुंचा तो पानी में डालकर देखने पर वह तैरने लगा। कहते हैं कि इसी पत्थर से रामसेतु बनाया गया था। रामसेतु का असली नाम नल-नील सेतु है। भारत के दक्षिणी भाग के अलावा श्रीलंका, जापान सहित अनेक स्थानों में ऐसे पत्थर मिलते हैं। ये सामान्यत: द्वीपों, समुद्र तट, ज्वालामुखी के नजदीकी क्षेत्रों पर काफी मात्रा में मिलते हैं।

तैरते हुए पत्थर का इतिहास

नल और नील के सान्निध्य में वानर सेना ने 5 दिन में 30 किलोमीटर लंबा और 3 किलोमीटर चौड़ा पूल तैयार किया था। शोधकर्ताओं के अनुसार इसके लिए एक विशेष प्रकार के पथर का इस्तेमाल किया गया था जिसे विज्ञान भाषा में प्यूमाइस स्टोन कहते हैं। यह पत्थर पानी में नहीं डूबता। रामेश्वरम में आई सुनामी के दौरान समुद्र किनारे इस पत्थर को देखा गया था। आज भी भारत के कई साधु-संतों के पास इस तरह के पत्थर हैं।

तैरने वाला यह पत्थर ज्वालामुखी के लावा से आकार लेते हुए अपने आप बनता है। ज्वालामुखी से बाहर आता हुआ लावा जब वातावरण से मिलता है तो उसके साथ ठंडी या उससे कम तापमान की हवा मिल जाती है। यह गर्म और ठंडे का मिलाप ही इस पत्थर में कई तरह से छेद कर देता है, जो अंत में इसे एक स्पांजी, जिसे हम आम भाषा में खंखरा कहते हैं, इस प्रकार का आकार देता है।

वैज्ञानिक प्रमाण जुटाए जाएंगे

पथर के पानी में तैरने से सम्बंधित वैज्ञानिक प्रमाण जुटाए जाएंगे। इसके लिए वैज्ञानिकों से सम्पर्क किया जा रहा है।
-गजेन्द्र सिंह नागेश, सीइओ जिला पंचायत