
ब्राम्हण प्रत्याशियों का रहा दबदबा, इस बार सबसे दिलचस्प होगा जातीय समीकरण
चित्रकूट. बुन्देलखण्ड की महत्वपूर्ण चित्रकूट-बांदा लोकसभा सीट (48) पर इस बार विकास के मुद्दे पर जातीय समीकरण हावी रहेगा और दिलचस्प भी ऐसा संकेत चुनावी बादलों ने दे दिया है। सपा-बसपा गठबंधन कांग्रेस व भाजपा के प्रत्याशी चुनावी रण में उतर चुके हैं। इतिहास के आईने में यदि इस संसदीय सीट का परिदृश्य देखा जाए तो यहां अधिकतर सवर्ण व ब्राम्हण प्रत्याशियों का ही दबदबा रहा है और सन 1952 के पहले आम चुनाव से लेकर सन 2014 तक इन्ही जातियों के उम्मीदवारों ने लोकतंत्र के मंदिर में प्रतिनिधित्व किया है। इसके इतर इस बार भाजपा व कांग्रेस ने पिछड़ा तो सपा-बसपा गठबंधन ने वैश्य वर्ग का कार्ड खेला है जिससे चुनाव का कुरुक्षेत्र पूरी तरह से जातिगत रंग में रंग गया है।
भाजपा व कांग्रेस से कुर्मी बिरादरी के बड़े चेहरे
2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा व कांग्रेस से कुर्मी बिरादरी के दो बड़े चेहरे मैदान में हैं। कांग्रेस ने जहां पूर्व सांसद व दस्यु ददुआ के भाई बालकुमार पटेल पर दांव लगाया है तो वहीं भाजपा ने काफी जद्दोजहद के बाद अपने सिटिंग सांसद भैरव प्रसाद मिश्रा का टिकट काट पार्टी के मौजूदा विधायक (मानिकपुर विधानसभा चित्रकूट) आरके सिंह पटेल को मोर्चा संभालने के लिए उतारा है। इन दोनों पार्टियों के कुर्मी बिरादरी के ये दो बड़े चेहरे अपनी बिरादरी पर खासी पकड़ रखते हैं। मतदाताओं के रूप में कुर्मी वोटरों की बड़ी संख्या है और प्रत्याशियों की हार जीत में निर्णायक भूमिका भी इसलिए इस बार ये जाति किस करवट बैठेगी इसको लेकर कयासों का दौर शुरू हो गया है।
सपा-बसपा गठबंधन से वैश्य वर्ग का बड़ा चेहरा मैदान में
दूसरी तरफ सपा-बसपा गठबंधन ने वैश्य वर्ग के बड़े चेहरे व इस बिरादरी पर खासी पकड़ रखने वाले उद्योगपति श्यामाचरण गुप्त को उम्मीदवार बनाया है। श्यामाचरण गुप्त सन 2014 में सपा से बगावत कर भाजपा में शामिल हुए थे और पार्टी टिकट पर इलाहाबाद संसदीय सीट से चुनाव लड़ कर फतह हासिल की थी। इस बार उन्होंने भाजपा से बगावत कर पुनः सपा का दामन थाम चित्रकूट-बांदा संसदीय सीट से सपा-बसपा गठबंधन के खेमे से ताल ठोकी है। इस संसदीय सीट पर व्यापारियों का एक बड़ा वर्ग हार जीत की गुणा गणित में टर्निंग प्वाइंट निभाता आया है सो गठबंधन की ओर से भाजपा व कांग्रेस को चुनौती मिलना तय माना जा रहा है।
सवर्ण व ब्राम्हण प्रत्याशियों का रहा दबदबा
सन 1952 से लेकर 2014 के लोकसभा चुनाव के परिणाम पर नजर डालने पर जो तस्वीर साफ होती है उसके तहत इस सीट पर सवर्ण व ब्राम्हण प्रत्याशियों का दबदबा रहा है। इस संसदीय सीट पर कुर्मी व ब्राम्हण वोटर सबसे अधिक संख्या में हैं और जिधर ये दोनों जातियां करवट ले लेती हैं उस प्रत्याशी की किस्मत पलटने की उम्मीद पुख्ता हो जाती है। बतौर उदाहरण सन 1977, 1980, 1984, 1992, 1996, 1998 व 2014 में क्रमशः अम्बिका दुबे, रामनाथ दुबे, भीष्म देव दुबे, प्रकाश नारायण त्रिपाठी, रमेश चन्द्र द्विवेदी व भैरव प्रसाद मिश्रा ने विजय पताका लहराई।
ये हैं जातिगत समीकरण
चित्रकूट-बांदा संसदीय सीट के जातीय समीकरण पर नजर डालें तो यहां लगभग 2 लाख 30 हजार से अधिक ब्राम्हण व लगभग 2 लाख से अधिक कुर्मी बिरादरी के मतदाता ब्रम्हास्त्र की भूमिका में रहते हैं प्रत्याशियों के लिए। यानी ये जिधर घूम गए उसके सिर जीत का सेहरा लगभग तय माना जाता है। दलित मतदाताओं की भूमिका भी कम नहीं। लगभग 2 लाख 20 हजार से अधिक दलित वोटरों को अपनी तरफ मोड़ना बसपा के अलावा हर पार्टी के लिए किसी चुनौती से कम नहीं। एक तरह से कह सकते हैं कि दलित+ब्राम्हण+कुर्मी वोटरों की आहट चुनाव परिणाम को लगभग साफ कर देती है। मुसलमान मतदाताओं की संख्या लगभग 90 हजार है।
भाजपा में भारी भैरव पर हावी जातीय समीकरण
सन 2014 के लोकसभा चुनाव में भारी मतों से विरोधियों को पटखनी देने वाले भाजपा सांसद भैरव प्रसाद मिश्रा का टिकट कटना जातीय समीकरण की निशानी माना जा रहा। लोकसभा में अपने कार्यकाल को लेकर देश के बेस्ट सांसद होने का तमगा हांसिल होने के बावजूद भैरव प्रसाद मिश्रा का हाईकमान ने टिकट काट दिया और आरके सिंह पटेल को मैदान में उतार दिया। सूत्रों के मुताबिक ब्राम्हण व कुर्मी बिरादरी में भैरव की अपेक्षा आरके पटेल की पकड़ को पार्टी ने परखा और उनपर दांव लगा दिया।
ये है मतदाताओं की स्थिति
कुल मतदाता: 19,96,599
पुरुष मतदाता: 10,89,269
महिला मतदाता: 9,07221
चुनावी रण में हैं ये चेहरे
सपा-बसपा गठबंधन: श्यामाचरण गुप्त
कांग्रेस: बालकुमार पटेल
भाजपा: आरके सिंह पटेल
Published on:
09 Apr 2019 01:32 pm
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