
चित्रकूट. बुंदेलखण्ड के बीहड़ में चहलकदमी करते खूंखार शैतानों (डकैतों) का पूरी तरह सफाया होना बाकी है। रक्तबीज की तरह एक के बाद पनपते दस्यु सरगनाओं के खौफ से बीहड़ को कब मुक्ति मिलेगी? यह यक्ष प्रश्न बन चुका है। बीहड़ के इन कुख्यात हैवानों ने एक काम जो सबसे होशियारी से किया है वो है अपनी जाति की सहानुभूति पाने का काम। पाठा का बीहड़ गवाह है कि तीन दशकों से अधिक के दस्यु इतिहास में डकैतों ने किस तरह जातिगत सहानुभूति की मांद में पनाह लेते हुए खुद को बचाए रखा और दहशत का साम्राज्य कायम कर दिया। डकैतों ने पाठा के बीहड़ में चहलकदमी करते हुए जहां खौफ की इबारत लिखी, वहीं अपनी जाती के हीरो के रूप में इन्हें आज भी देखा जाता है। आखिर क्यों जातिगत पांसे को भुनाया खूंखार डकैतों ने? क्यों होता आया है डकैतों व जाति तथा राजनीति का गठजोड़? ऐसे ही कुछ प्रश्नों को लेकर पेश है एक रिपोर्ट...
चित्रकूट के पाठा क्षेत्र के बीहड़ में दहशत की कहानी लिखते खूंखार डकैतों का सुरक्षा कवच रहा है जातिगत पांसा, जिसे इस बीहड़ में पनपने वाले हर खूंखार दस्यु सरगना ने बख़ूबी फेंका। जातिगत सहानुभूति का ये खेल खेलने में पाठा के खूंखार माहिर माने जाते हैं। अपनी जाति में खुद को रॉबिनहुड की तरह पेश किया खूंखार शैतानों ने। पाठा के बीहड़ में जातिगत सहानुभूति पाने का खेल शुरू किया खूंखार डकैत ददुआ ने जो कहीं न कहीं आज तक अपनी जाति में किसी हीरो से कम नहीं आंका जाता। शायद इसी का परिणाम है कि फतेहपुर जनपद के उसकी जाति की बाहुल्यता वाले कबरहा गांव में आज उसका मंदिर बना हुआ है और बकायदा ददुआ की मूर्ति लगाई गई है। अपने आप में यह पहला मामला है जब किसी खूंखार डकैत को किसी मंदिर में मूर्ति के रूप में स्थापित किया गया हो।
जातिगत सहानुभूति और डकैत
बीहड़ में विचरण करते डकैतों की दैनिक जरूरतें यदि खौफ के चलते पूरी होती हैं तो वहीं यह भी एक कड़वी सच्चाई है कि डकैतों को उनकी जाति का दबा समर्थन मिलता रहता है। खूंखार दस्यु ददुआ कुर्मी बिरादरी से ताल्लुक़ रखता था और कहा जाता है कि ददुआ के समय में पूरे बुन्देलखण्ड में उसकी जाति का दबदबा होता था और शायद इसीलिए आज भी ददुआ अपनी जाति के लिए रॉबिनहुड की छवि रखता है। जातिगत समर्थन सहानुभूति का ये खेल जो ददुआ ने शुरू किया था वो आज तक चल रहा है। ददुआ ने अपनी गैंग में अपनी जाति के अलावा जिस वर्ग के डकैतों को पाला पोषा था वो है आदिवासी कोल जाति। इस जाति के लोग बुन्देलखण्ड तथा चित्रकूट में काफी बड़ी संख्या में निवास करते हैं। ददुआ गैंग के चेलवा कोल राजू कोल जैसे खूंखार डकैत न जाने कितनी बार पुलिस का पसीना छुड़ा चुके थे। मुठभेड़ के दौरान कोल जाति का डकैत बबुली कोल आज पांच लाख का इनामी डकैत बन चुका है बुन्देलखण्ड का। डकैतों की जातिगत लड़ाई भी उनकी राह आसान करती है। बीहड़ में कई ऐसे गांव हैं जो एक विशेष जाति के हैं और जिन ग्रामीण क्षेत्रों में डकैतों ने हमेशा सहानुभूति पाने की कोशिश की है। ददुआ ठोकिया बलखड़िया रागिया ये सभी एक ही जाति के थे और बीहड़ में अपने वर्ग के बीच खुद को नायक की तरह प्रस्तुत करते थे। तीस वर्षों तक बीहड़ में राज करने वाले डकैत ददुआ ने खुद को बचाने के लिए जातिगत सहानुभूति के इसी फार्मूले को अपनाया और परिणामतः यह कि जिंदा रहते पुलिस उसकी झलक तक न पा सकी।
गैंगवार बनती जाति की लड़ाई
बीहड़ में तीन लोगों को जिंदा जलाकर मारने की वारदात के बाद सुर्ख़ियों में आया खूंखार डकैत ललित पटेल (पुलिस मुठभेड़ में ढेर) भी उसी जाति से था जिससे ददुआ ठोकिया रागिया बलखड़िया हुआ करते थे। ललित ने यादव बिरादरी के तीन लोगों को मुखबिरी के शक में मारा था और उसे शक था कि वे सभी एक लाख के इनामी डकैत रामगोपाल यादव उर्फ़ गोप्पा के लिए काम करते हैं। सूत्रों के मुताबिक इस वारदात के बाद गोप्पा भी ललित कि जाति के लोगों को ठिकाने लगाने की योजना बना रहा था, लेकिन उससे पहले वह यूपी एसटीएफ के हत्थे चढ़ गया। लगभग पन्द्रह साल पहले डकैत ददुआ ने चित्रकूट में चंदन यादव की हत्या कर उसके कटे सिर को पूरे गांव में घुमाया था। इन वारदातों से जनपद में जातीय लकीरें खिंच गई और जातियों के बीच अंदर ही अंदर बदले की भावना सुलग उठी। गौरी यादव भी एक लाख का इनामी डकैत है और वह भी बीहड़ में विचरण कर रहा है।
जाति और डकैतों का जन्म
चंबल से लेकर बुन्देलखण्ड के बीहड़ों में जाति और डकैतों के जन्म लेने का खास रिश्ता रहा है। किसी से छिपा नहीं कि चम्बल की कुख्यात दस्यु सुंदरी फूलन देवी क्यों बीहड़ों में उतरी और बन्दूक थामने के बाद एक ही जाति (ठाकुर) के 22 लोगों को गोलियों से भून दिया था। चम्बल की कुसमा नाइन सीमा परिहार पान सिंह तोमर जैसे डकैत क्यों बीहड़ में उतरे ये सभी जानते हैं। बुन्देलखण्ड के बीहड़ में भी जाति व डकैतों का कुछ ऐसा ही सम्बन्ध है और रहा है। ददुआ ने भी 80 के दशक में जनपद के मऊ थाना क्षेत्र के ब्राम्हण बाहुल्य रामु का पुरवा गांव में दर्जन भर लोगों को गोलियों से भून जातिगत लकीर खींच दी जिसके फांसले आज भी इन जातियों के बीच दिखाई पड़ते हैं महसूस होते हैं।
पाठा के बीहड़ के इन शैतानों ने अपनी जाति की भोली भली जनता के बीच जहां खुद को हीरो बनाया और अन्य वर्गों के बीच खौफ पैदा किया, वहीं जरूरत पड़ने पर अपनी ही जाति के लोगों को डसने से भी गुरेज नहीं किया। इन सबसे स्पष्ट है कि अपराधी व डकैत की कोई जाति कोई धर्म नहीं होता, वो होता है तो सिर्फ समाज के लिए घातक।
स्पेशल रिपोर्ट- विवेक मिश्र
Published on:
26 Aug 2017 01:09 pm
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