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“भूमिजा” की छोटी सी काहानी क्यों है बेटी आज भी बोझ की निशानी? अपनों ने ठुकराया संतों ने अपनाया

भूमिजा का स्वागत किसी राजकुमारी की तरह किया गया. पूरा आश्रम फूलों रंगोलियों से सजाया गया था.

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मासूम भूमिजा की कहानी, बेटी आज भी बोझ की निशानी

मासूम भूमिजा की कहानी, बेटी आज भी बोझ की निशानी

चित्रकूट: मैं भूमिजा हूं. मुझे ये नाम मेरे माता-पिता ने नहीं बल्कि एक प्रसिद्ध संत ने दिया है. क्योंकि मेरे मां-बाप का तो मुझे पता ही नहीं है. वे तो मुझे बेसहारा कर एक नाली के पास फेंक गए थे. हो सकता है ये मेरी मां की मजबूरी रही हो या पिता की या फिर दोनों की. हो सकता है लोकलाज के भय से या बोझ समझ मुझे छोड़ दिया गया हो. लेकिन इन सभी स्थितियों में मेरा क्या कसूर. मैं पूछती हूं क्या यदि अभी कोई पुत्र जन्मा होता तो क्या उसे भी इसी तरह अनाथ बनाकर छोड़ दिया जाता? क्या बेटी होने का दंड भुगतना पड़ा मुझे जो मुझे जन्म देने वाली कोख ने यूं ही निर्दयता से छोड़ दिया. खैर समाज में आज भी सद्पुरुषों अच्छे लोगों की कमी नहीं. मुझे मेरे दौर ठिकाना मिल गया है. मुझे मेरा नाम भी मिल गया है "भूमिजा". जानकी नवमी(2 मई) के दिन मुझे नाली में फेंक दिया गया था. आवारा कुत्तों ने मुझे घेर रखा था. उसी समय पास के ही एक आश्रम के कुछ लोगों की नजर मुझ पड़ी और फिर मुझे उस आश्रम की वात्सल्य छाया मिल गई. शायद इसीलिए मेरा नाम भूमिजा रखा आश्रम के सद्गुरुदेव ने.


जी हां कुछ ऐसे ही सवाल लेकर जब उस मासूम ने अंगड़ाई ली तो मानो बगीचे के आंगन में कोई कली कुम्हलाई हो. प्रसिद्ध सन्त जगद्गुरु रामभद्राचार्य के उत्तराधिकारी आचार्य रामचंद्र दास को उनके आश्रम के बाहर 2 मई को एक नवजात कन्या मिली. जिसके बाद आचार्य रामचंद्र दास इस मासूम को उठाकर अपने आश्रम ले गए. जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने प्रसन्नचित्त होकर इस मासूम का नाम "भूमिजा" रखा. रविवार को नवजात का स्वाथ्य परीक्षण कराया गया. आचार्य रामचंद्र दास ने बताया कि उनके यहां तीन पीढ़ियों से कन्या नहीं है. उनके माता पिता ने बच्ची को गोद लिया है. गोद लेने की कानूनी प्रक्रियाएं पूरी की जा रही हैं. ये समाज का दुर्भाग्य है कि आज भी बेटियों की ये दशा है. उनका सौभाग्य है कि उन्हें ये कन्या मिली.

भूमिजा का स्वागत किसी राजकुमारी की तरह किया गया. पूरा आश्रम फूलों रंगोलियों से सजाया गया था. जिस गाड़ी में ये बेटी ने जगद्गुरु के आश्रम में प्रवेश किया उस गाड़ी को फूलों से आकर्षक रूप से सजाया गया था. जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने बेटी के आगमन पर गीत भी गाया.