
मासूम भूमिजा की कहानी, बेटी आज भी बोझ की निशानी
विवेक मिश्र
पत्रिका न्यूज नेटवर्क
चित्रकूट. मैं भूमिजा हूं। मुझे ये नाम मेरे माता-पिता ने नहीं, बल्कि एक संत ने दिया है। मेरे मां-बाप का तो मुझे पता ही नहीं। पैदा होते ही वे मुझे एक नाली के पास फेंक गए थे। हो सकता है मेरी मां की कोई मजबूरी रही हो। या पिता पालने में लाचार रहे हों। लोकलाज का भय था या फिर लडक़ी का बोझ समझ मुझे छोड़ दिया गया। नहीं मालूम। परिस्थितियां जो भी रही हों आखिर इन सबमें मेरा क्या कसूर। मैं पूछती हूं मेरी जगह कोई बेटा होता तो भी क्या उसे भी इसी तरह अनाथ छोड़ दिया जाता?
खैर, समाज में आज भी सद्पुरुषों और अच्छे लोगों की कमी नहीं है। मुझे ठौर ठिकाना और पालनहार मिल गए। मुझे मेरा नाम भी मिल गया "भूमिजा"। जानकी नवमी (2 मई) के दिन जब मुझे नाली में फेंका गया तब मैं आवारा कुत्तों से घिरी थी। तभी पास के एक आश्रम के कुछ साधु-संतों और भले लोगों की नजर मुझ पर पड़ी। वे सभी मेरे मां-बाप की तरह निर्दयी और कठोर दिल वाले नहीं थे। वे मुझे प्यार से आश्रम लाए। यहां मुझे वात्सल्य छाया मिल गई। शायद इसीलिए मेरा नाम भूमिजा रखा आश्रम के सद्गुरुदेव ने।
कुछ ऐसे ही सवालों और जवाबों भरी अपनी कहानी के साथ एक मासूम ने जब अंगड़ाई ली तो आश्रम के बगीचे के आंगन में कुम्हलाई कली खिल उठी। यह अभागन कन्या सन्त जगद्गुरु रामभद्राचार्य के उत्तराधिकारी आचार्य रामचंद्र दास को उनके आश्रम के बाहर 2 मई को लावारिश हालत में मिली। इसके बाद आचार्य रामचंद्र दास इस मासूम को उठाकर अपने आश्रम में ले गए। जगदगुरु रामभद्राचार्य ने प्रसन्नचित्त मन से इसका नाम रखा "भूमिजा"। रविवार को नवजात का स्वास्थ्य परीक्षण कराया गया। आचार्य रामचंद्र दास ने बताया, उनके यहां तीन पीढिय़ों से कन्या नहीं है। उनके माता-पिता ने बच्ची को गोद लिया है। गोद लेने की कानूनी प्रक्रियाएं पूरी की जा रही हैं। उनका सौभाग्य है कि उन्हें कन्या मिली।
आश्रम में भूमिजा का स्वागत किसी राजकुमारी की तरह किया गया। पूरा आश्रम फूलों-रंगोलियों से सजाया गया। जिस गाड़ी में मासूम बेटी ने जगदगुरु के आश्रम में प्रवेश किया उस गाड़ी को भी फूलों से आकर्षक रूप से सजाया गया था। जगदगुरु रामभद्राचार्य ने बेटी के आगमन पर गीत भी गाया। इस मौके पर पूरा आश्रम खिलखिला उठा।
Published on:
04 May 2020 01:41 pm
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