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निशाने पर रही “मनरेगा” अब बन रही मेहनतकशों का सहारा

"मनरेगा" अब उन्ही मेहनतकशों का सहारा बन रही है जो अपने गांव घर को छोड़ अन्य प्रांतों महानगरों में कमाने गए थे.

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निशाने पर रही

निशाने पर रही

चित्रकूट: सिस्टम से लेकर सियासत व खुद कामगारों के निशाने पर रहने वाली "मनरेगा" अब उन्ही मेहनतकशों का सहारा बन रही है जो अपने गांव घर को छोड़ अन्य प्रांतों महानगरों में कमाने गए थे. कोरोना से जंग में लॉकडाउन के चलते पूरे देश में प्रवासी मजदूरों का अपनी मिट्टी की ओर लौटना जारी है. ऐसे में उन्हें स्थानीय स्तर पर ही रोजगार देने की कवायद शुरू हो गई है और इसमें वरदान साबित हो रही है मनरेगा. इस योजना के तहत अब प्रवासी मजदूरों को स्थानीय स्तर पर ही काम दिया जा रहा है. खास बात यह कि सैकड़ों हजारों मजदूरों ने जॉब कार्ड बनवाकर मनरेगा का दामन थामा है.

लॉकडाउन के चलते बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूरों का अपने गृह जनपदों में लौटने का सिलसिला जारी है. ऐसे में इन प्रवासी मजदूरों को स्थानीय स्तर पर ही काम देने की योजना बनाई गई है प्रदेश सरकार व स्थानीय प्रशासन द्वारा. और इसमें सबसे सहायक सिद्ध हो रही है मनरेगा योजना. बतौर उदाहरण जनपद में अभी तक तकरीबन 10 हजार से अधिक मजदूरों की संख्या में वृद्धि हुई है. इनमें से अधिकांश प्रवासी मजदूर हैं. उपायुक्त मनरेगा दयाराम यादव के मुताबिक वर्तमान समय में लॉकडाउन के दौरान करीब 30 हजार से अधिक श्रमिक काम कर रहे हैं. इनमें तकरीबन 10 हजार से अधिक प्रवासी मजदूर हैं. इससे पहले पिछले महीने मार्च तक लगभग 22 हजार श्रमिक काम पर थे. जनपद में मनरेगा मजदूरों की कुल संख्या तकरीबन 1 लाख के लगभग है. आने वाले मजदूरों को भी काम देने की तैयारी है प्रशासन की.

इसी मनरेगा योजना पर कई बार घोटालों घपलों व वित्तीय अनियमितता का ग्रहण लग चुका है. जिसमें सिस्टम की ही लापरवाही उजागर होती आई है. लेकिन यही योजना अब मजदूरों के लिए वरदान साबित हो रही है और प्रशासन के लिए मदगार भी कि प्रवासी मजदूरों को दो वक्त का काम देकर उनकी रोटी का इंतजाम किया जा सके.