
फ्लोराइड की समस्या से जूझ रहे है चित्तौड़ जिले के 157 गांव
चित्तौडग़ढ़.
जिले के कई क्षेत्रों में फ्लोराइड की अधिकता होने से वहां के लोगों को पीने के पानी के लिए भी परेशानी का सामना करना पड़ता है। फ्लोराइड की अधिकता के चलते उस क्षेत्र के लोगों को फ्लोराइड से जुड़ी बीमारियों से जूझना पड़ रहा है। जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग ने फ्लोराइड युक्त क्षेत्रों में सोलर डीफ्यू लगाने के लिए प्रस्ताव बनाकर मुख्यालय भेजा था। जिससे इसी माह राज्य सरकार से मंजूरी मिल गई है। इसके लिए ३३८ लाख रुपए का खर्च आएगा। राज्य सरकार की ओर से स्वीकृति मिलने के बाद विभाग ने डीफ्यू लगाने की तैयारियां शुरू कर दी है। वर्तमान में भूपालसागर ब्लॉक में पांच सोलर डीफ्यू लग रहे है।
इन गांवों में लगेंगे पंप सेट
सोलर डीफयू पंप सेट कल्याणपुरा, बारी, भीम खेड़ा, रावतों का खेड़ा, सुरजपुरा, रामाखेड़ा, गाडरियावास, गणेशपुरा, काल्या खेड़ी, पारसा खेड़ा, भाना खेड़ी, भीलों का खेड़ा, चुंडावतों का खेड़ा,कुमार खेड़ा, पेमा खेड़ा आदि गांवों में पंप सेट लगाए जाएंगे।
ऐसे लगाए जाएंगे पंप सेट
नलकूप के पास ही एक पानी की टंकी लगाई जाएगी जिसके ऊपर पंप सेट लगाए जाएंगे जिससे फ्लाराइड पानी से अलग होगा। इस टंकी के ऊपर सोलर प्लेट भी लगाई जाएगी जिससे बिजली की आवश्यकता नहीं होगी। पानी की टंकी खाली होने पर नलकूप स्वत: ही चल जाएगा। यह टंकी गांव में सार्वजनिक स्थान पर लगाई जाएगी।
५ हजार से ज्यादा रोगी
जिले में फ्लोराइड से प्रभावित सबसे ज्यादा कपासन विधानसभा क्षेत्र के भूपालसागर, राशमी और कपासन इलाके शामिल है। इन क्षेत्रों को फ्लोराइड मुक्त करने के लिए डी-फ्लोरीडेशन यूनिट्स भी स्थापित की गई, इनमें से अधिकांश यूनिट्स अस्तित्व खो चुकी है। कपासन व बड़ीसादड़ी विधानसभा क्षेत्र में किए गए सर्वे में ४१५५ बच्चे व बड़े दांतों के फ्लोरोसिस से पीडि़त पाए गए हैं, इनमें भूपालसागर में ८४५, राशमी में ३६५, गंगरार में ७१५, डूंगला में १९१ व भदेसर क्षेत्र में ७३८ बच्चे व युवा शामिल है। यह तो सिर्फ रेण्डम सर्वे के आंकड़े हैं। हकीकत में यह संख्या कई गुना ज्यादा है।
कंकालीय फ्लोरोसिस के हजार से ज्यादा रोगी
इन्ही इलाकों में कंकालीय फ्लोरोसिस के एक हजार से भी ज्यादा रोगी पाए गए हैं। इनमें भूपालसागर में ३७५, राशमी में १८६, गंगरार में २०३ व भदेसर क्षेत्र में २६४ रोगी शामिल हैं। इन इलाकों में सर्वे के दौरान यह भी खुलासा हुआ कि यहां १९२६ ग्रामीण फ्लोराइडयुक्त खाद्य पदार्थों का सेवन करते हैं।
देश में करोड़ों लोग प्रभावित
देश में २१ राज्य और केन्द्र शासित प्रदेशों के २७० जिलों में ६.६ करोड़ लोग फ्लोरोसिस से प्रभावित हैं और ६० लाख लोग इससे पीडि़त हैं।
क्या है फ्लोरोसिस
फ्लोरोसिस की खास पहचान दांत पीले और हड्डी जाम है। यह बीमारी मानव शरीर में कठोर एवं नरम ऊत्तकों में फ्लोराइड के जमाव से होती है। पानी में फ्लोराइड की १ पीपीएम से अधिक मात्रा, खाद्य पदार्थ, काली चाय, काला नमक, सुपारी, तम्बाकू, फ्लोराइडयुक्त टूथपेस्ट इसके लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं।
तीन तरह के फ्लोरोसिस
दंत फ्लोरोसिस में दांतों में पीलापन, भूरापन, गड्ढे, दांत गिरना, अस्थि फ्लोरोसिस में जीनू वेलगम, जीनू वेरम, कूबड़ापन, पेरोप्लेजिया, जोड़ों व घुटनों में दर्द, जोड़ों का जाम होना, गैर अस्थि फ्लोरोसिस में मूत्र की अधिकता, भूख ज्यादा लगने, कब्ज, पेट दर्द, अंगुलियों में झंझनाहट, मानसिक तनाव व अवसाद आदि शामिल है। कैल्शियम, विटामिन सी व डी, आयरन की गोलियां, हरी सब्जी, इमली, नीम्बू, आंवला, संतरा, पपीता, केला, अमरूद, बेंगन, गाजर, मूली, दूध उत्पाद का सेवन कर इससे बचाव किया जा सकता है।
दो विधान सभा क्षेत्रों के १७८ गांव प्रभावित
कपासन और डूंगला विधानसभा क्षेत्र के १७८ गांव फ्लोराइड से प्रभावित है, जहां इसकी मात्रा १.५ पीपीएम से अधिक है। कपासन के भुवानिया खेड़ी में ३.८, भगवानपुरा में ४.८, सांवता की कालबेलिया बस्ती में ७.०, करजाली में ५.४, डूंगला के मोरवन में ५.६, राशमी के सोमरवालों का खेड़ा में ४.१, बारी गांव में ५.०, मायरा खेड़ा में ३.४, मुरला की भील बस्ती में ३.८, गुरहा गांव में ४.९ पीपीएम फ्लोराइड पाया गया है।
जिले में फ्लोराइड मुक्त शुद्ध पेयजल मुहैया कराने के लिए २२ सोलर डीफ्यू लगाने के लिए स्वीकृति मिल गई है। मार्च २०२० तक यह काम पूरा कर लिया जाएगा। इसके लिए करीब ३३८ लाख रुपए खर्च किए जाएंगे।
केसी वर्मा, अधीक्षण अभियंता, जलदाय विभाग चित्तौडग़ढ़
Published on:
28 Nov 2019 05:49 pm
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