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मीरा की कृष्ण भक्ति से चित्तौडग़ढ को मिली नई पहचान

चित्तौडग़ढ़. शक्ति एवं भक्ति की नगरी कहे जाने वाले चित्तौडग़ढ़ को शक्ति की उपाधि यहां के राजाओं के वीरता से मिली हो, लेकिन भक्ति की नगरी का खिताब मीराबाई की भक्ति से मिला है। चित्तौडग़ढ़ को अलग पहचान मिली वह मीराबाई की ही देन है।

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मीरा की कृष्ण भक्ति से चित्तौडग़ढ को मिली नई पहचान

मीरा की कृष्ण भक्ति से चित्तौडग़ढ को मिली नई पहचान

चित्तौडग़ढ़. शक्ति एवं भक्ति की नगरी कहे जाने वाले चित्तौडग़ढ़ को शक्ति की उपाधि यहां के राजाओं के वीरता से मिली हो, लेकिन भक्ति की नगरी का खिताब मीराबाई की भक्ति से मिला है। चित्तौडग़ढ़ को अलग पहचान मिली वह मीराबाई की ही देन है।
मीराबाई का जन्म सन 1498 ई. में पाली के मेड़ता में दूदा जी के चौथे पुत्र रतन सिंह के घर हुआ। ये बचपन से ही कृष्णभक्ति में रुचि लेने लगी थीं। मीरा का विवाह मेवाड़ के सिसोदिया राज परिवार में हुआ। उदयपुर के महाराजा भोजराज इनके पति थे जो मेवाड़ के महाराणा सांगा के पुत्र थे। विवाह के कुछ समय बाद ही उनके पति का देहान्त हो गया। पति की मृत्यु के बाद उन्हें पति के साथ सती करने का प्रयास किया गया, किन्तु मीरा इसके लिए तैयार नहीं हुईं।
वे विरक्त हो गईं और साधु-संतों की संगति में हरिकीर्तन करते हुए अपना समय व्यतीत करने लगीं। पति के परलोकवास के बाद इनकी भक्ति दिन-प्रतिदिन बढ़ती गई। ये मंदिरों में जाकर वहां मौजूद कृष्ण भक्तों के सामने कृष्ण की मूर्ति के आगे नृत्य किया करती थीं। मीराबाई का कृष्ण भक्ति में नृत्य एवं गायन राज परिवार को अच्छा नहीं लगा। उन्होंने कई बार मीराबाई को विष देकर मारने की कोशिश की। घर वालों के इस व्यवहार से परेशान हो वे पहले वृन्दावन एवं बाद में वहां से द्वारका चली गई। जहां पर उनका अंतिम समय बीता। वह जहां जाती थी, वहां लोगों का सम्मान मिलता था। अपनी भक्ति के बल पर मीराबाई रहस्यवाद और भक्ति की निर्गुण मिश्रित सगुण पद्धति सर्वमान्य बनी।

चित्तौडग़ढ़ दुर्ग पर है मीरा का मंदिर
यहां दुर्ग पर कुंभ श्याम मंदिर में ही मीरा बाई का मंदिर बना हुआ है। यहां पर आने वाले पर्यटकों के लिए विजय स्तंभ एवं पद्मिनी महल के साथ ही मीरा मंदिर भी विशेष आकर्षण का केन्द्र रहता है। यहां पर पर्यटकों का ठहराव भी काफी देर तक होता है। वे यहां पर आने के साथ ही मीरा बाई के इतिहास की भी विस्तार से जानकारी लेते है। चित्तौड़ दुर्ग पर मीरा की स्मृतियां दिलाने वाली कई विरासत है जो पर्यटकों का आर्कषण का केंद्र भी है।

मीरा की याद में होता है हर वर्ष आयोजन
मीरा की भक्ति को लेकर मीरा स्मृति संस्थान की ओर से प्रति वर्ष साल में एक बार तीन दिन का आयोजन होता है। इसमें बाहर से विशेष लोक कलाकारों को भी बुलाया जाता है। इस आयोजन को लेकर शहर के लोगों की भी बड़ी संख्या में भागीदारी होती है। जानकारी के अनुसार से प्रतिवर्ष शरद पूर्णिमा पर मीरा महोत्सव मनाया जाता है।