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चित्तौडग़ढ़ में कम्प्यूटर लेगा 2.60 करोड के ऑटोमेटेड ड्राइविंग ट्रैक पर टेस्ट

जिंक कॉलोनी के सामने पुराने ट्रैक के पास बन रहा नया ट्रैक, जिसके बाद लाइसेंस प्रक्रिया का टेस्ट 100 फीसदी पारदर्शी होगा

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ऑटोमेटेड ड्राइविंग ट्रैक के निर्माण के लिए फाउंडेशन का काम शुरू करवा दिया

चित्तौडग़ढ़.
जिंक कॉलोनी के सामने परिवहन विभाग के ड्राइविंग टेस्ट ट्रैक को अब ऑटोमेटेड बनाया जा रहा है। इसे 100 प्रतिशत पारदर्शी बनाने के लिए ऑटोमेटेड ड्राइविंग टेस्ट ट्रैक बनाने का काम शुरू कर दिया है।

एआरटीओ प्रकाशसिंह राठौड़ ने बताया कि पुराने ट्रैक के पास ऑटोमेटेड ट्रैक का काम शुरू हो गया है। बनने के बाद ड्राइविंग लाइसेंस के लिए आवेदन करने वालों को ट्रैक से होकर गुजरना होगा। गाड़ी सही चलाने वालों को ही लाइसेंस मिलेगा।

सेंसर व वीडियो कैमरे करेंगे रिकॉर्डिंग

फिलहाल लोगों को इंस्पेक्टर के सामने दुपहिया या गाड़ी चलाकर दिखानी होती है। जबकि ऑटोमेटेड ड्राइविंग टेस्ट ट्रैक के जरिए होने वाले टेस्ट में सारा डाटा रिकॉर्ड होगा। इसमें इस ट्रैक पर वीडियो कैमरे व सेंसर लगेंगे। टेस्ट देने वाले का वीडियो क्लिप बनेगा, सेंसर वाहन की एक्टिविटी को रिकॉर्ड करेंगे।

इसमें इंडीगेटर नहीं देने, तय ट्रैक से नीचे जाने पर भी अंक कट जाएंगे। ज्यादा गलती करने वाले व्यक्ति का लाइसेंस नहीं मिलेगा। इसमें वाहन चालक को 8 नंबर बनाकर, रिवर्स चलाना, पार्किंग और अन्य तरीके के टेस्ट होंगे।

फाउंडेशन का काम भी शुरू कर दिया

आरएसआरडीसी के एक्सईएन रमेश बलाई ने बताया कि 260 लाख रुपए से बनने वाले ऑटोमेटेड ड्राइविंग ट्रैक के निर्माण के लिए फाउंडेशन का काम शुरू करवा दिया है। इसमें बिल्डिंग से लेकर ट्रैक तक का निर्माण किया जाना है।

कम्प्यूटर लेगा निर्णय

ट्रैक के बाद पास-फेल का निर्णय ट्रायल लेने वाले अधिकारी नहीं, कम्प्यूटर करेगा। ऑटोमेटिक ट्रैक पर वाहन चलाने के बाद कंट्रोल रूम में लगी स्क्रीन पर गलती देखी जा सकेगी। गलती की गुंजाइश नहीं होने पर लाइसेंस जारी हो सकेंगे।

इधर, आरटीओ कार्यालय भी पेपरलैस

आरटीओ को बजट में पेपरलैस करने की घोषणा भी की गई है। इसमें बैंकों की तर्ज पर सारथी सॉफ्टवेयर से ई- फाइलिंग के जरिए रिकार्ड बनेगा, कार्यालय कर्मचारियों को फाइल गुम होने के झंझट से निजात मिलेगी।

साथ ही लाइसेंस व वाहन पंजीयन आवेदन को सीधे कम्प्यूटर के जरिए सर्वर पर अपलोड किया जाएगा। परिवहन विभाग का मानना है कि इस ऑटोमेटेड ड्राइविंग ट्रैक व पेपरलैस प्रक्रिया से फर्जी तरीके से बिना पूरी प्रक्रिया के लाइसेंस नहीं बन सकेंगे।