विजय स्तंभ के शिखर पर आठ गज मूर्तियों के साथ लक्ष्मी प्रतिमा स्थापित हैं। हालांकि, चित्तौड़ की स्थापना कब हुई। इस बारे में कोई सटीक जानकारी या प्रामाणिक तथ्य किसी के पास नहीं हैं। संभवतया चित्रांगद मौर्य के कारण इसका प्राचीन नाम चित्रकूट था। चित्तौड़ दुर्ग के अतीत में कई नई शुरुआतें वैशाख शुक्ल आठम पर ही हुई थीं।
यह है चित्तौड़ी आठम का इतिहास
राणा हमीर ने 1326 ई. में चित्तौड़ पर आक्रमण कर अधिकार कर लिया था। हमीर ने दुर्ग पर कालिका माता मंदिर की स्थापना की जो कि पूर्व में सूर्य मंदिर हुआ करता था। मान्यता है कि दुर्ग स्थित बायण माता मंदिर, चतरंग मोरी तालाब की स्थापना भी वैशाख शुक्ल आठम को ही की गई थी। मेदपाट से चित्रकूट और कालान्तर में चित्तौड़ बनने तक के इतिहास में इस वैशाख शुक्ल पक्ष की आठम का विशेष महत्व रहा है। माना जाता है कि चित्तौड़ के स्थापना दिवस चित्तौड़ी आठम पर पहले दुर्ग की तलहटी स्थित मिठाई बाजार,जूना बाजार से लेकर दुर्ग के मुय मार्ग पर मेला लगता था।
एकीकृत राजस्थान के कुछ साल बाद ये मेला बंद हो गया। चित्तौड़ी आठम मनाने का सिलसिला शुरू हुआ जो किन्हीं कारणों से वर्ष 1958 में बंद हो गया था। सातवीं से लेकर 14 वीं सदी तक इस तिथि को दुर्ग पर चतरंग मोरी, सूर्य मंदिर, अन्नपूर्णा मंदिर, मां कालिका की प्रतिमा स्थापना, हमीर की चित्तौड़ विजय जैसे कार्य इसी दिन हुए थे। जय चित्तौड़ चित्तौड़ी आठम महोत्सव समिति की ओर से वर्ष 2008 से ये फिर से मनाया जा रहा है। समिति की ओर से इस मौके पर चित्तौड़ की गौरवमय विरासत की याद दिलाने वाले विभिन्न कार्यक्रम किए जाते हैं।
मुद्रा में भी अव्वल रहा हमारा चित्तौड़
महाराणा स्वरूपसिंह और सज्जनसिंह से लेकर देश की आजादी तक यहां ‘दोस्ती लंदन’ के सिक्के चलते थे। जो चांदी के और 17 आना यानी 100 प्रतिशत से अधिक मानक वाले थे। देशी रियासतों में चित्तौड़ दुर्ग ही ऐसा था, जिसके चित्र को सिक्के पर ढाला गया। ये सिक्के कोलकाता में ढले और सभी रियासतों में बराबर मूल्य पर चले। चित्तौड़ में आज भी दो जगह टकसाल होने का पता चलता है। पटवारी मोहल्ला और हजारेश्वर महादेव मंदिर के पास। सदियों पुराने नगरी के पंचमार्क और चित्तौड़ के महाराणा मोकल, कुंभा, रायमल, सांगा और बनवीर आदि के नाम वाले सिक्के आज भी कइयों के पास मौजूद है।
हैजा फैलने पर लगा दी थी आने पर रोक
वर्ष 1817-18 में जब हैजा मेवाड़ सहित राजपूताना में महामारी का रूप लेने लगा तो महाराणा भीमसिंह और सामंतों ने मुनादी कर गाइडलाइन जारी की थी। देश के किसी भी क्षेत्र से लोगों के यहां आने पर रोक लगा दी थी। यदि किसी राजकीय मेहमान का आना हुआ तो उन्हें बाहर टेंट में ठहराया जाता था। सामाजिक दूरी रखी जाती थी। इसी तरह छप्पनियां के अकाल 1899 ई. में भी यहां के विशेष प्रबंधन पुरानी पीढ़ी को याद हैं। खासकर रेलमार्ग से अनाज भंडारण कार्य हुआ जो अहम था।
चित्तौड़ी आठम पर आज हवन, दीपदान सहित कई कार्यक्रम
चित्तौडग़ढ़ के स्थापना दिवस चित्तौड़ी आठम पर गुरुवार को हवन और दीपदान सहित कई कार्यक्रमों का आयोजन होगा। चित्तौड़ी आठम महोत्सव समिति की ओर से तैयारियों को अंतिम रूप दे दिया गया है। समिति के अध्यक्ष मुकेश नाहटा ने बताया कि गुरुवार को सुबह 7 बजे ध्वजा लेकर कार्यकर्ता कालिका माता मंदिर पहुंचेंगे। जहां विधि विधान के साथ ध्वजा चढ़ाई जाएगी। चित्तौडग़ढ़ की सुख, शांति और समृद्धि के लिए यज्ञ- हवन किया जाएगा। शाम को सुभाष चौक पर रंगोली से जय-चित्तौड़, जय-मेवाड़ लिखकर दीपदान किया जाएगा। कालिका माता, महाराणा प्रताप की तस्वीर पर पुष्प अर्पित किए जाएंगे। आतिशबाजी कर प्रसाद वितरित किया जाएगा। समिति सचिव कुलदीप पारीक ने बताया कि इस बार समिति की ओर से आयोजन का 17वां साल है। कार्यक्रम को लेकर समिति के संरक्षक सुशील शर्मा, धर्मेन्द्र मूंदड़ा, अध्यक्ष नाहटा, राजकुमार कुमावत, मुकेश ईनाणी, नारायण बल्दवा आदि तैयारियों में जुटे हुए हैं।