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आकोला का भगवान ऋषभदेव जैन मंदिर श्रद्धालुओं के लिए श्रद्धा व आकर्षण का केंद्र

आकोला. चित्तौडग़ढ़ जिला मुख्यालय से करीब 60 किलोमीटर दूरी पर स्थित छीपों का आकोला का प्राचीन ऋषभदेव जैन मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आस्था, श्रद्धा व आकर्षण का केंद्र है। उदयपुर व चित्तौडग़ढ़ जिले की सीमा व बेड़च नदी के किनारे पर ऊंची घाटी पर स्थित जैन धर्म के पहले तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव के प्राचीन मंदिर के बारे कहा जाता है कि यहां विराजित भगवान ऋषभदेव की प्रतिमा बड़ी चमत्कारिक है।यहां सैकड़ों वर्ष प्राचीन भगवान की श्याम पाषाण की 33 इंच ऊंची प्राचीन प्रतिमा विराजित है।

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आकोला का भगवान ऋषभदेव जैन मंदिर श्रद्धालुओं के लिए श्रद्धा व आकर्षण का केंद्र

आकोला का भगवान ऋषभदेव जैन मंदिर श्रद्धालुओं के लिए श्रद्धा व आकर्षण का केंद्र

आकोला. चित्तौडग़ढ़ जिला मुख्यालय से करीब 60 किलोमीटर दूरी पर स्थित छीपों का आकोला का प्राचीन ऋषभदेव जैन मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आस्था, श्रद्धा व आकर्षण का केंद्र है। उदयपुर व चित्तौडग़ढ़ जिले की सीमा व बेड़च नदी के किनारे पर ऊंची घाटी पर स्थित जैन धर्म के पहले तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव के प्राचीन मंदिर के बारे कहा जाता है कि यहां विराजित भगवान ऋषभदेव की प्रतिमा बड़ी चमत्कारिक है।यहां सैकड़ों वर्ष प्राचीन भगवान की श्याम पाषाण की 33 इंच ऊंची प्राचीन प्रतिमा विराजित है।
श्रद्धालुओं को प्रतिमा के सवेरे के समय दर्शन करने पर उनके बाल स्वरूपएदोपहर में उनके युवा स्वरूप व शाम के समय उनके वयस्क स्वरूप के दर्शन होने का आभास कराते है।

मंदिर का निर्माण
करीब साढ़े चार सौ वर्ष पुराने उक्त मंदिर के निर्माण बारे में भारतीय लोककला मंडल के निदेशक पद से सेवानिवृत्त लोक साहित्यकार डॉ. महेंद्र भाणावत एक पुस्तक में लिखते है कि जैन मत में साढ़े चहोत्तर शाह का वर्णन मिलता है। उनमें चित्तौड़ जिले के छीपों का आकोला से सूराशाह एक ऐसे वरेण्य योद्धा थे जिन्होंने यति हजारी भोजक को अपना शीश काटकर दे दिया। यति ने उन्हें पुर्नजीवन दिया और कहा कि यदि वे कोई मंदिर बनायें तो उसके लिए मूर्ति वे स्वयं लायेंगे। सूरशाह ने इस पर इसी आकोला में जैन मंदिर बनाया तब प्रतिष्ठा के लिए हजारी भोजक कहीं से मूर्ति उड़ा लाये । यह प्रतिमा भगवान ऋषभदेव की थी। ऐसा ही भैंसड़ाकला उदयपुर का भींया या भैंसा शाह बड़ा नामी रहा जिसकी परीक्षा से प्रभावित होकर एक यति आदिनाथ का मन्दिर ही कहीं से उड़ा लाया जो आकोला में आज भी स्थापित है। मान्यता है कि ऋषभदेव तथा हरण्य गनेशी देवताओं की आराधना से जैन यति मंदिरों को उड़ाने की विद्या में पारंगत हो जाते थे।मंदिर में एक शिलालेख भी रखा हुआ है लेकिन उस पर अंकित लेखनी अस्पष्टता के कारण अपठनीय है।कुछ लोग मंदिर को एक हजार साल प्राचीन भी बताते है।

जीर्णोद्धार
श्री करेड़ा पाश्र्वनाथ जैन तीर्थ भूपालसागर से 10 किलोमीटर दूर स्थित सैकड़ों वर्ष पुराने आकोला के ऋषभदेव जैन मंदिर का जीर्णोद्धार 26 वर्ष पूर्व 14 अप्रैल 1996 को आचार्य जितेंद्रसूरि महाराज, मुनि पद्मभूषण विजय, मुनि निपुण रत्न विजय, की निश्रा में कराया गया था। मंदिर के जीर्णोद्धार के समय आकोला में तीन दिवसीय भव्य धार्मिक कार्यक्रम आयोजित हुए थे। मंदिर के शिखर पर लगे ध्वजादंड में ध्वजा फहराने के लिए वहां बड़ी संख्या में मौजूद श्रद्धालुओं की उपस्थिति में बोली लगाई गई जिसे आकोला के शंकरलाल, महेंद्रकुमार, ललित कुमार चपलोत द्वारा उच्चतम बोली लगा कर अपने नाम करवाई थी। तब से अभी तक मंदिर में प्रति वर्ष बैशाख बुदी ग्यारस को मंदिर के शिखर पर नई ध्वजा चपलोत परिवार द्वारा ही चढाई जाती है।


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