
विकास के साथ गौरव का बखान, चित्तौड़ बना राजस्थान की पहचान
चित्तौडग़ढ़.स्वाधीनता के बाद राजपूताना की विभिन्न रियासतों को एकीकृत कर गठित आधुनिक राजस्थान के गठन के 64 वर्ष पूर्ण हो गए है। स्वाधीनता से पहले भी अपनी आन-बान शान के लिए दुनिया में खास पहचान रखने वाले चित्तौडग़ढ़ ने एकीकृत राजस्थान के 64 वर्ष के इतिहास में भी सफलता व विकास के नए पथ पर चलते हुए राजस्थान के नक्शे में खास पहचान बनाई है। चित्तौड़ दुर्ग विश्व विरासत में शुमार है तो बस्सी की काष्ट कला की भी खास पहचान है। यहाां का सीमेन्ट व मार्बल उद्योग हजारो लोगों को आजीविका उपलब्ध कराने के साथ चित्तौडग़ढ़ की राजस्थान में विशिष्ट पहचान बना रहा। मण्डफिया स्थित मेवाड़ का कृष्णधाम सांवलियाजी मंदिर राज्य में आस्था का प्रमुख केन्द्र बन गया है तो चित्तौडग़ढ़ का सैनिक स्कूल गत छह दशक में सैकड़ो शूरवीर देश की सेवा के लिए तैयार कर चुका है। बड़ीसादड़ी क्षेत्र का सीतामाता अभयारण्य देश के प्रमुख वन्य क्षेत्रों में शुमार होकर प्रकृति का उपहार है।
चित्तौड़ दुर्ग यूनेस्को की विश्व धरोहर
भक्ति व शक्ति की धरा चित्तौड़ दुर्ग यूनेस्को की विश्व विरासत में शुमार होकर दुनिया में राजस्थान का गौरव बढ़ा रहा है। पर्यटक सीजन में हर शुक्रवार शाही ट्रेन पैलेस ऑन व्हील्स के माध्यम से देशी-विदेशी पर्यटक यहां आते है। चित्तौड़ दुर्ग पर विकास के लिए वर्ष २०१८-१९ में ही २० करोड़ की राशि केन्द्र सरकार ने स्वीकृत की थी। इनमें से हैरिटेज सर्किट के तहत स्वीकृत ११.५ करोड़ की राशि से बेट्री संचालित गाड़ी, पार्किंग, सोलर लाइट्स ऑन पाथ वे आदि के कार्य होने है। वहीं ९ करोड़ ४० लाख की राशि से दुर्ग पर क्लॉक रूम, कैफेटेरिया आदि के निर्माण होने है।
तैयार हो रहे देश के रक्षक
देश सेवा के लिए समर्पित जांबाजों को तैयार करने में चित्तौडग़ढ़ में स्थापित सैनिक स्कूल की भूमिका अहम है। देश को एक सेना प्रमुख व दर्जनों उच्च सैन्य अधिकारी देने वाले चित्तौडग़ढ़ सैनिक स्कूल की स्थापना केन्द्रीय रक्षा मंत्रालय ने सात अगस्त 1961 को देश में पहले पांच सैनिक स्कूलों की स्थापना के समय राज्य के एकमात्र सैनिक स्कूल के रूप में की थी। चित्तौडगढ़़ सैनिक स्कूल में पढ़कर जनरल दलबीरसिंह सुहाग देश की सेना में सर्वोच्च पद पर पहुंचे। कई लेफ्टिनेट जनरल, ब्रिगेडियर, मेजर, मेजर जनरल, कर्नल, लेफ्टिनेंट कर्नल, कंपनी कमांडर आदि रैंक के करीब 1200 से ज्यादा सैन्य अधिकारी इसी सैनिक स्कूल में पढ़े हैं।
ंसांवलियाजी मंदिर बना मेवाड़ का कृष्णधाम
मण्डफिया कस्बे में मेवाड़ का कृष्णधाम बना श्रीसांवलियाजी मंदिर राज्य के लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का बड़ा केन्द्र है। 19वीं शताब्दी के शुरूआती वर्षो में यहां पर एक छोटे मंदिर का निर्माण किया गया था, उस समय ध्वजादण्ड तथा कलश स्थापना के साथ मंदिर की प्रतिष्ठा भी हुई थी। जलझुलनी एकादशी पर तीन दिवसीय मेला हो गोवर्धनपूजा के दिन अन्नकूट का आयोजन हर मौके पर विभिन्न क्षेत्रों से लाखों श्रद्धालु यहां पहुंचते है।
बस्सी की कावड़ काष्ट कला
बस्सी कस्बे की कावड़ काष्टकला के माध्यम से भारतीय संस्कृति व इतिहास को जीवंत किया गया है। यहां करीब ४०० वर्ष से जांगिड़ ब्राह्मण समाज के कुछ परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी इस कला के रक्षक बन आगे बढ़ा रहे है। कावड पर मीराबाई व राजाजी की कहानी, पांड पांडव के साथ द्रोपद्ी व कुंती, भगवान कृष्ण की बाल लीलाएं, भगवान गणपति की कहानियां, मीरा का कृष्ण से मिलन, हिमालय पर बद्रीनाथ मंदिर में दर्शन आदि से जुड़े चित्रण होते है। कावड़ पर बने ये चित्र कहानी बयां करते है।
रोजगार का आधार बना सीमेन्ट व मार्बल उद्योग
औद्योगिक विकास में भी चित्तौड़ की अहम भूमिका हो गई है। सीमेन्ट व मार्बल उद्योग ने चित्तौडग़ढ़ व निम्बाहेड़ा की प्रगति के द्वार खोले। जिले में दस से अधिक सीमेंंट प्लान्ट के साथ देश की नजर में सीमेन्ट हब बन चुका है। किशनगढ़ के बाद चित्तौडग़ढ़ मार्बल उद्योग की दृष्टि से राज्य का प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र बन गया है। सीमेन्ट व मार्बल उद्योग से सरकार को करोड़ो रुपए की राजस्व आय हो रही है तो जिले में ३० हजार से अधिक लोगों को रोजगार भी इन उद्योगों से मिल गया है।
प्रकृति का वरदान सीतामाता अभयारण्य
विध्यांचल व अरावली पवर्तमाला की गोद में चित्तौडग़ढ़ व प्रतापगढ़़ जिले में करीब ४२३ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला सीतामाता अभयारण्य भी चित्तौडग़ढ़ जिले में प्रकृति का वरदान है। एक नवम्बर १९७९ को स्थापित इस अभयारण्य को राज्य का संरक्षित वन क्षेत्र घोषित किया हुआ है। इस अभयारण्य में १०८ से अधिक तरह के हर्बल औषधियां तैयार करने में सहायक पौधों के साथ ऊंचे-ऊंचे बबूल, पीपल, बरगद,नीम आदि के बड़ी संख्या में वृक्ष है। यहां कई तरह के दुर्लभप्राय: पक्षी, पशु व सर्प की प्रजातियां भी मिल जाती है।
इसलिए भी चित्तौड़ की होती पहचान
- राज्य का एक मात्र परमाणु ऊर्जा संयंत्र चित्तौडग़ढ़ जिले के रावतभाटा में स्थित है।
- चित्तौडग़ढ़ के राशमी क्षेत्र में स्थित मातृकुण्डिया को राजस्थान का हरिद्धार कहा जाता है।
- निम्बाहेड़ा क्षेत्र में निकनले वाला पत्थर निम्बाहेड़ा स्टोन के नाम से पूरे देश में राज्य की पहचान बना है।
Published on:
30 Mar 2020 12:55 pm
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