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चित्तौडगढ़ में पर्यटन व उद्योग को मिले रफ्तार, बेगूं में पानी पहुंचे किसानों के द्वार

Rajasthan Assembly Election 2023: चित्तौडग़ढ़ का नाम लेते ही वीरता की कहानियां मस्तिष्क पटल पर उभर पड़ती हैं। हजारों देशी-विदेशी पर्यटक हर साल यहां इतिहास के पन्नों को पढऩे आते हैं, लेकिन दूसरी ओर कड़वी हकीकत ये भी है कि उसी चित्तौडग़ढ़ से हजारों लोग रोजी-रोटी की आस में हर साल पलायन को विवश हैं।

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वरुण भट्ट

चित्तौडग़ढ़. Rajasthan Assembly Election 2023: हर साल यहां हजारों पर्यटक इतिहास के पन्नों को पढऩे आते हैं, लेकिन दूसरी ओर कड़वी हकीकत ये भी है कि उसी चित्तौडग़ढ़ से हजारों लोग रोजी-रोटी की आस में हर साल पलायन को विवश हैं। सरकारें आईं और चली गईं, लेकिन चित्तौडग़ढ़ के पर्यटन और औद्योगिक विकास के दोष पूरी तरह घोषणा-पत्रों के बाहर ही नहीं आ पाए। बांसवाड़ा से 200 किलोमीटर का सफर तय कर मैं शक्ति व भक्ति की नगरी चित्तौडग़ढ़ पहुंचा। मुख्य मार्ग से प्रवेश के दौरान ही सड़क पर जहां-तहां खड़े मवेशी एवं अतिक्रमण के हालात ने शहर विकास की हकीकत बयां कर दी। शहर के भीतरी मार्ग से आगे बढ़ा तो पन्नाधाय पुल से गंभीरी नदी नजर आई। बेड़च व गंभीरी नदी के संगम स्थल के उपरांत भी विकास के मामले में यह उपेक्षित ही है।

शहर में पाडऩपोल से ७०० एकड़ में फैले विश्व विरासत चित्तौडग़ढ़ दुर्ग की ओर रुख किया। सात दरवाजे पार कर दुर्ग पहुंचने से पूर्व व्यवसायी मनोज वशिष्ठ, सैनिक स्कूल से सेवानिवृत्त एच.एस. राठी, भगवानदास झंवर व अन्य लोगों से चर्चा की तो कहने लगे कि जिले में पर्यटक दुर्ग से आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं। दुर्ग पर मोबाइल नेटवर्क, सफाई का अभाव जैसी कईं समस्याएं दिखीं। दुर्ग से लौटने के बाद शहर से करीब दस किलोमीटर के दायरे में कुछ औद्योगिक इकाइयां नजर आईं। बावजूद इसके यहां औद्योगिक पलायन आम है। आपसी बातचीत में मशगूल वरिष्ठ नागरिकों में शामिल राधेश्याम जोशी व तेजसिंह बापना कहने लगे कि अपार संभावनाओं के बावजूद नई औद्योगिक इकाइयों पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। जिससे सक्षम लोग उद्योग स्थापित करने एवं श्रमिक मजदूरी के लिए अन्य राज्यों में पलायन कर रहे हैं। औद्योगिक क्षेत्र को बढ़ावा देकर अर्थव्यवस्था, रोजगार व विकास को रफ्तार देनी चाहिए। सेवानिवृत्त शिक्षक कन्हैयालाल बराडिय़ा, विनोद जोशी कहने लगे युवा पढ़ाई के लिए मेट्रो सिटी की ओर पलायन कर रहे हैं।
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चित्तौडग़ढ़ के बाद कोटा नेशनल हाईवे से 1921 में बेगार प्रथा के खिलाफ किसान आंदोलन के गवाह बेगूं विधानसभा क्षेत्र की ओर बढ़ा। हाईवे पर जहां-तहां खड़े मवेशियों से कई बार हादसे का भय बना रहा। करीब 65 किलोमीटर के सफर में सड़क किनारे खेतों में काम करते किसानों को देखा तो स्पष्ट हो गया कि यहां के अधिकांश लोगों की आजीविका खेती पर ही निर्भर है। हरिपुरा में परिवार के साथ खेत में खाद डालते हाबुलाल, भीमाजी, शिवलाल कहने लगे कि खाद-बीज मुश्किल से मिलता है। चार साल से फसल खराबे का मुआवजा नहीं मिला है। बिक्री में दाम कम मिलने से नुकसान उठाना पड़ता है।
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लिंबोदा के नारायण सिंह ने भी ऐसी ही समस्या बयां की। बेगूं एवं उसके बाद 66 किलोमीटर तक के रावतभाटा के सफर में किसानों ने कहा कि यहां की धरती सोना उगल रही है। कई ग्रामीण क्षेत्रों में सिंचाई व पेयजल की समस्या है। पाइपलाइन के लिए वन विभाग की एनओसी नहीं मिलने से चंबल का पानी पहुंच नहीं पा रहा है। बेगूं से रावतभाटा के सफर में युवा मुकेशकुमार व ज्ञानमल ने बताया कि कई गांवों में पर्याप्त बिजली नहीं मिल रही है। सोलर एनर्जी के बड़े हब के तौर पर भी क्षेत्र को विकसित किया जा सकता है।


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