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बस्सी की स्थापना के समय बना था प्राचीन नरबेश्वर महादेव मंदिर

चित्तौडग़ढ़़. बस्सी. धार्मिक नगरी बस्सी में शिवसागर तालाब की पाल पर स्थित नरबेश्वर महादेव मंदिर बस्सी की स्थापना के समय बना था। प्राचीन मंदिर होने के कारण कस्बे व आसपास के क्षेत्र में मंदिर की काफी मान्यता है। मंदिर करीब 440 वर्ष पुराना है।

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बस्सी की स्थापना के समय बना था प्राचीन नरबेश्वर महादेव मंदिर

बस्सी की स्थापना के समय बना था प्राचीन नरबेश्वर महादेव मंदिर

चित्तौडग़ढ़़. बस्सी. धार्मिक नगरी बस्सी में शिवसागर तालाब की पाल पर स्थित नरबेश्वर महादेव मंदिर बस्सी की स्थापना के समय बना था। प्राचीन मंदिर होने के कारण कस्बे व आसपास के क्षेत्र में मंदिर की काफी मान्यता है। मंदिर करीब 440 वर्ष पुराना है। बस्सी की स्थापना के समय बस्सी के संस्थापक रावत जयमल चुंडावत ने उस दौरान गढ़ की प्राचीर, शिवसागर तालाब, लक्ष्मीनाथ कुंड, लक्ष्मीनाथ मंदिर आदि के निर्माण के साथ प्राचीन नरबेश्वर महादेव मंदिर का भी निर्माण करवाया था। कर्नल रणधीरसिंह ने बताया कि रियासतकाल से ही नरबेश्वर महादेव मंदिर व लक्ष्मीनाथ मंदिर के नाम पर खातेदारी खेती उपयोग की जमीन है। लक्ष्मीनाथ मंदिर एवं नरबेश्वर महादेव मंदिर में पूजा करने वाले पुजारी परिवार दोनों मंदिरों की खातेदारी जमीन से पैदा होने वाली उपज को रखते हैं। मंदिरों में स्थापत्य कला के बेहतरीन नक्काशीदार मंदिरों की तरह नरबेश्वर महादेव मंदिर का भी निर्माण किया गया था। इतने वर्षों बाद भी मंदिर कहीं से भी खंडित नहीं हुआ है। इसके अलावा मंदिर पर इतने वर्षों में कभी भी बारिश के दौरान बिजली नहीं पड़ी है।
अरावली पर्वत श्रृंखला की पहाडिय़ों से बारिश के दौरान बहने वाले झरनों का पानी शिवसागर तालाब में पहुंचता है। मंदिर के अंदर स्थापित शिवलिंग का सावन महीने में प्रतिदिन अलग अलग तरह से शृंगार किया जाता है। शिवलिंग के सामने ही मंदिर के अंदर नंदी विराजमान है। मंदिर के अंदर पार्वती माता की मूर्ति भी स्थापित है। नरबेश्वर महादेव मंदिर के समीप ही हनुमान मंदिर एवं प्राचीन मंशापूर्ण महादेव का मंदिर भी है। सावन में अभिषेक, हवन होते रहते हैं। नरबेश्वर महादेव मंदिर के समीप स्थित लक्ष्मीनाथ भगवान मंदिर की भी क्षेत्र में काफी मान्यता है। यह कस्बे का प्रमुख मंदिर है।
नरबेश्वर महादेव मंदिर के समीप स्थित लक्ष्मीनाथ की बनावट भी बेहतरीन स्थापत्य कला का उदाहरण है। लक्ष्मीनाथ कुंड, बिनोता की बावड़ी और अठाणा के महल एक ही कारीगर ने बनाए थे। लक्ष्मीनाथ कुंड का निर्माण करने वाले हाथों से पत्थरों को काटकर कारीगरी करने वाले कारीगरों के सामने आज के अत्याधुनिक युग में मशीनों से भवन निर्माण करने वाले इंजीनियर भी आश्चर्यचकित हैं। इस कुंड में चारों तरफ कई सीढिय़ां बनी हुई है। जिनको इतना सलीके से एवं बेहतरीन नाप के साथ बनाया गया है कि बारिश के दौरान सभी सीढिय़ों पर पानी एक छोर से दूसरे छोर तक बराबर भरा रहता है। कस्बे में वर्ष पर्यंत कई धार्मिक आयोजन होते रहते हैं। इसीलिए बस्सी को धार्मिक नगरी के साथ साथ छोटी काशी के नाम से भी जाना जाता है। बरसात के दौरान मंदिर के सामने शिवसागर तालाब एवं लक्ष्मीनाथ कुंड में पानी भरने के बाद यह स्थान और भी मनमोहक लगता है।