
Jain monks: 723 जैन मुनि, साध्वी पढ़ा रहे सत्य व अहिंसा का पाठ, त्यागी सारी सुख-सुविधाएं
भागीरथ सुधार
छापर. तेरापंथ धर्मसंघ के 11 वें अनुशास्ता आचार्य महाश्रमण वर्तमान में ताल छापर कस्बे में चातुर्मास पर हैं। तेरापंथ धर्मसंघ की एक संघ एक संघपति की विशिष्ट पहचान के अनुरूप आचार्य महाश्रमण की धवल सेना में देश के कौने-कौने से जैन संत व साध्वियां सत्य, अहिंसा, नैतिकता व सद्भावना की शिक्षा दे रहे हैं। यही नहीं उन्होंने अपनी सारी सुख सुविधाओं का त्याग करते हुए साधु जीवन को अंगीकार किया और अब वे दूसरों को मानव कल्याण का संदेश दे रहे हैं। जैन संतों की राज्य व जिलेवार जानकारी हासिल की तो इसमें राजस्थान अग्रणी नजर आया।
पूरे भारतवर्ष में कुल 723 जैन मुनि, साध्वी है। जिनमें 160 मुनि, 563 साध्वियां व 52 समणी है।इन सभी में सर्वाधिक अकेले राजस्थान से 523 साधु व साध्वियां है। मुनि कुमार श्रमण ने बताया कि तेरापंथ धर्मसंघ में राजस्थान के 523 जैन मुनि साध्वी है। वहीं चूरू जिले पर नजर डालें तो सबसे आगे है। यहां से 159 मुनि साध्वी धर्मसंघ में सेवा कर रहे हैं। अलग अलग सम्भाग से देखें तो उदयपुर सम्भाग से 43,बीकानेर से 290, जयपुर से 12, अजमेर से 01 व जोधपुर सम्भाग से 177 सहित पूरे प्रदेश में 421 साध्वी व 102 मुनि है।
अब तक 11 आचार्यों में 10 राजस्थान से, इनमें 3 चूरू जिले से
तेरापंथ धर्मसंघ में अबतक 11 आचार्य हुए हैं। जिनमें से 10 आचार्य राजस्थान से हुए हैं, एक अन्य आचार्य डालगणी का जन्म उज्जैन में हुआ। राजस्थान में भी चूरू जिले से तीन आचार्य तेरापंथ धर्मसंघ के अनुशास्ता बने। जिनमें आचार्य मघवागणी बीदासर, आचार्य कालूगणी छापर और वर्तमान में 11 वें आचार्य महाश्रमण सरदारशहर से हैं।
इन राज्यों से भी है प्रतिनिधित्व
देशभर में 723 जैन संतों में सर्वाधिक 523 राजस्थान से है। वहीं हरियाणा से 24, कर्नाटक से 24, महाराष्ट्र से 33, गुजरात से 37, तमिलनाडु से 29, उड़ीसा से 17, मध्यप्रदेश से 08, पंजाब से 03, बिहार से 01, दिल्ली से 09, असम से 06, छत्तीसगढ़ से 02, पश्चिम बंगाल से 03 व यूपी, झारखंड, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना से एक एक मुनि साध्वी है।
ऐतिहासिक पलों में शुमार है छापर कस्बा
तेरापंथ धर्मसंघ में छापर कस्बे के महत्वपूर्ण स्थान रहा है। अष्टमाचार्य कालूगणी की जन्मस्थली भी छापर ही है। तेरापंथ धर्म के 262 वर्षों के इतिहास में अब तक छापर के आठ मुनि व बीस साध्वियों ने दीक्षा ग्रहण कर कस्बे का नाम रोशन किया है। वृद्ध सन्तों का सेवा चाकरी के लिए संचालित भिक्षु साधना केंद्र में 26 मुनियों ने अंतिम समय में यहां साधना कर निर्वाण प्राप्त किया है। वहीं 74 साल के पश्चात दूसरा चौमासा गौरव का पल है।अणुव्रत प्रवर्तक आचार्य तुलसी के अणुव्रत आंदोलन की परिणीति का उद्गम छापर ही है उन्होंने 1949 में इस आंदोलन की रूप रेखा यहां तैयार कर सरदारशहर से घोषणा की।
Published on:
22 Jul 2022 11:22 am
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