
moathers day:अनपढ़ मां ने दिया जीने का हौसला और पढ़ा लिखाकर बना दिया काबिल
चूरू. सन 1999 की बात है। पिताजी लाडनूं में राजकीय सेवा में कार्यरत थे। भरापूरा सुखी परिवार था। मगर होनी को कुछ और ही मंजूर था। एक दिन अचानक बीमारी की वजह से पिताजी की अकाल मृत्यु हो गई।
खबर मिली तो पूरे परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। उस कठिन दौर में खुद को संभालकर मां ने हम चारों भाई-बहनों को ना केवल जीने का हौसला दिया। बल्कि खुद संघर्ष करके हमें पढ़ा-लिखाकर काबिल बनाया। आज हम चारों भाई-बहन राजकीय सेवा में काम करते हुए मां के साथ रहते हैं।
ये कहानी है जिले के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के सहायक निदेशक नरेश बारोठिया और उनकी ५८ वर्षीय मां पाना देवी की। मूलत: बीकानेर जिले की डूंगरगढ़ तहसील के गांव धीरदेसर चोटियान निवासी बारोठिया बताते हैं कि ३९ वर्ष की उम्र में पिताजी बिरमाराम बारोठिया की मृत्यु हो गई। आजीविका का दूसरा कोई जरिया नहीं था। उस समय सबसे छोटा भाई पुनित महज दो साल का था। 12वीं कक्षा में पढ़ रहे युवक नरेश के युवा मन पर भी पिता की मौत का गहरा आघात लगा। मगर पूरे परिवार के उस कठिन दौर में मां ने खुद को संभाला।
वे खुद अनपढ़ थी। मगर शिक्षा का महत्व समझती थी। इसीलिए अपने बच्चों को पढ़ा-लिखाकर काबिल बनाने की ठानी। चूंकि गांव में शिक्षा का माहौल नहीं था। इसलिए सामाजिक वर्जनाओं के बावजूद मां अकेली हमें लेकर रतनगढ़ आ गई। यहां सामाजिक, प्रशासनिक एवं आर्थिक समस्याओं से खुद अकेले जूझते हुए मां हमें जीने का हौसला और संस्कार देती रही। हम पढ़ते चले गए। धीरे-धीरे चारों भाई बहन राजकीय सेवा से जुड़ते चले गए। मां ने सबकी शादी कर हमारे परिवार बसा दिए।
आज मुझे गर्व है कि हम तीन भाई और एक बहन मां के संघर्ष, त्याग और कड़े परिश्रम की बदौलत इस काबिल हैं कि किसी जरूरतमंद की मदद कर सकते हैं। आज सहायक निदेशक बारोठिया के अलावा उनका छोटा भाई डा. पंकज बारोठिया, कृषि महाविद्यालय सूरतगढ़ में प्रवक्ता, छोटी बहन बिंदु थर्मल प्लांट सूरतगढ़ में सहायक अभियंता व छोटा भाई पुनित जोधपुर डिस्कॉम बीदासर में कार्यरत है। पाना देवी की दो बहुएं व दामाद भी राजकीय सेवा में कार्यरत हैं।
Published on:
12 May 2019 04:12 pm
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