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चूरू माइनस 02.06, फसलों पर व नलों – घड़ों में जमी बर्फ

शहर में पिछले तीन दिनों से पारा लगातार जमाव बिंदू की ओर खिसक रहा है। रविवार को चूरू प्रदेश में सबसे ठंडा शहर रहा। पारे में हो रही गिरावट के चलते खेतों में फसलों पर ,घरों में घड़ों व पानी के नलों में बर्फजम गई।

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चूरू माइनस 02.06, फसलों पर व नलों - घड़ों में जमी बर्फ

चूरू माइनस 02.06, फसलों पर व नलों - घड़ों में जमी बर्फ

चूरू. शहर में पिछले तीन दिनों से पारा लगातार जमाव बिंदू की ओर खिसक रहा है। रविवार को चूरू प्रदेश में सबसे ठंडा शहर रहा। पारे में हो रही गिरावट के चलते खेतों में फसलों पर ,घरों में घड़ों व पानी के नलों में बर्फजम गई। मौसम विभाग के मुताबिक रविवार को चूरू में पारा सामान्य से 08.04 गिरकर माइनस 02.06 व अधिकतम 20 डिग्री सैल्सियस रहा। इधर, आने वाले दो दिनों में मौसम विभाग ने पाळा पडऩे व शीतलहर चलने का अलर्ट जारी किया है। लगातार सता रही सर्दी के चलते लोगों को दिन में भी धूजणी छूट रही है। खून जमा देने वाली कड़ाके की ठंड के कारण लोगों की दिनचर्या प्रभावित हो रही है। सर्दी की सीजन शुरू होने के बाद 19 दिसंबर को शहर में सबसे ठंडा दिन रहा है। वहीं इलाके में चल रही ठंडी हवा का असर नश्तर चुभो रहा है। अब लोगों को रात के साथ दिन में भी धूजणी छूटने लगी है। सर्दी के प्रकोप ने लोगों को अलाव तापने पर मजबूर कर दिया है। मौसम विभाग के अनुसार पश्चिमी विक्षोभ के सक्रिय होने पर जिले में सर्दी और परवान चढ़ेगी रात के तापमान में भी गिरावट की संभावना है। सर्दी का जोर बढने के साथ ही लोग अलाव के सहारे राहत के जतन कर रहे हैं । सर्दी के कारण शहर के बाजारों में शाम को जल्दी ही वीरानी छा जाती है। व्यापारी भी जल्दी दुकानें बंद करक घरों की ओर लौट जाते हैं।

50 साल पहले ऐसे बचते थे सर्दी से
बदलते समय के साथ हालात व सुविधाएं बदली हैं, वर्तमान में सर्दी से बचने के कई उपाय प्रचलन में आए हैं, खान पान की सुविधाओं सहित चिकित्सा प्रणाली भी मजबूत हुई है। मगर 50 साल पहले सर्दी से बचने के लिए मेहनत करते थे। कपड़ों के नाम पर घर के पुराने कपड़ों से बनी गुदड़ी व रजाई ही प्रमुख साधन होता था। इसके अलावा देशी खानपान जिसमें बाजरा, मोठ व शुद्ध देशी घी खाते थे।
नवाब खां, उम्र 78 वर्ष, चूरू
50 साल पहले आज से ज्यादा सर्दी पड़ती थी, ठंड से बचाव के लिए नाम मात्र के उपाय होते थे। चौपाल पर अलाव जलाकर मोहल्ले के कईलोग बैठकर देर रात तक जागते थे। हालांकि उस जमाने में बीमार कम ही होते थे, फिर भी दवाईयां होती नहीं थी, जुकाम, खांसी, बुखार आदि से बचने के लिए रसाई का ही सहारा था। जावित्री, लौंग, कालीमिर्च तुलसी, ब्रह्मी का काढा बनाकर पीते थे। तिल के तेल के साथ बाजरे की रोटी खाते थे। मेहनत कश लोग होत थे, तो ठंड कम ही लगती थी।
बजरंगलाल शर्मा, उम्र 73 वर्ष, चूरू