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churu history: चूरू के इस भवन में मिलते थे आजादी के दीवाने

इस दौरान देश को आजाद करने के लिए चर्चाएं किया करते थे। इस बात से नाखुश तत्कालीन शासक व अंग्रेज अधिकारी परेशान करने के लिए छापेमारी करते थे। लेकिन देशप्रेम के दीवाने कभी भी उनके दबाव में नहीं आए।

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चूरू

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manish mishra

Oct 31, 2022

churu history: चूरू के इस भवन में मिलते थे आजादी के दीवाने

churu history: चूरू के इस भवन में मिलते थे आजादी के दीवाने

चूरू. देश की आजादी में चूरू के वीरों के शौर्य को भी नहीं भुलाया जा सकता है, उस समय तमाम पांबदियों के बावजूद भी गढ़ चौराहे के पास िस्थत सर्वहितकारिणी सभा में आजादी के दीवाने इकठ्ठा हुआ करते थे। इस दौरान देश को आजाद करने के लिए चर्चाएं किया करते थे। इस बात से नाखुश तत्कालीन शासक व अंग्रेज अधिकारी परेशान करने के लिए छापेमारी करते थे। लेकिन देशप्रेम के दीवाने कभी भी उनके दबाव में नहीं आए।


नगरश्री के श्याम सुंदर शर्मा ने बताया कि वैसे तो संस्थान सामाजिक सरोकार से जुड़ी हुई थी, लेकिन यहां पर आजादी से जुडे हुए दीवाने इकठ्ठा होकर देश को आजाद करने के लिए आंदोलन की रूपरेखा तैयार किया करते थे। इस बात से तत्कालीन बीकानेर के शासक जो अंग्रेजों के काफी नजदीकी माने जाते थे नाराज रहा करते थे। उन्होंने बताया कि सभा भवन के अंदर तत्कालीन समय क्रांती से जुडे क्रांतिकारियों की तस्वीरे लगाई हुई थी, इस पर तत्कालीन बीकानेर के शासक की ओर से अचानक छापेमारी भी करवाई गई थी। उन्होंने बताया कि उस समय समाचार पत्र संदेश पहुंचाने का एक बहुत बड़ा माध्यम हुआ करता था। इस पर अंग्रेजों के आदेश पर तत्कालीन बीकानेर शासक की ओर से समाचार पत्र वितरण पर रोक लगवा दी गई थी, हालांकि चोरी-छिपे समाचार पत्रों का वितरण फिर भी शुरू रहा। क्रांति से जुडे हुए लोग तमाम पाबंदियों के बावजूद सभा में आकर मिला करते थे। उन्होंने बताया कि सर्वहितकारिणी सभा का निर्माण ठीक गढ़ के सामने ही कराया गया। उन्होंने बताया कि सभा भवन की ऊंचाई सोच-समझकर गढ़ से अधिक रखी गई थी।

चूरू का धर्मस्तूप स्वतंत्रता आंदोलन का साक्षी
चूरू उस समय बीकानेर रियासत में था, तब गंगासिंह महाराजा थे। यहां स्वामी गोपालदास के नेतृत्व में आजादी के आंदोलन की योजनाएं बनती थी। चंदनमल बहड़, भालचंद शर्मा महंत गणपतदास उनके साथ होते थे। ये लोग सुबह स्टेशन तक घूमने जाते थे। 26 जनवरी 1930 को देश में पूर्ण स्वराज की घोषणा के बाद जगह-जगह तिरंगे फहराए गए। इसी से प्रेरित होकर यहां चंदनमल बहड़ के नेतृत्व में भालचंद शर्मा गणपतदास ने चूरू में भी तिरंगा फहराने की योजना बनाई। तीनों स्टेशन गए वहां हरे, लाल सफेद कपड़े की व्यवस्था की। तीनों कपड़े जोड़कर तिरंगा तैयार किया था। पेड़ की एक टहनी तोड़कर उसमें तिरंगा डालकर धर्मस्तूप पर चढ़ गए और फहरा दिया। इसका पता बीकानेर रियासत में लगा तो हडकंप मच गया। तत्काल झंडारोहण करने वालोें की धरपकड़ शुरू की गई। आंदोलन के अगुवा स्वामी गोपालदास चंदनमल बहड़ को गिरफ्तार किया गया, इन पर षडयंत्र का आरोप लगाया गया। दोनों को सजा भी हुई। धर्मस्तूप पर तिरंगा फहराने की इस घटना से चूरू का नाम आंदोलनकारियों में सम्मानित हो गया।